बता दें कि जिले में 2 लाख 10 हजार 87 हेक्टेयर में धान की रोपाई का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। किसानों ने समय से नर्सरी भी लगा ली थी लेकिन आधे से अधिक सावन के बीतने के बाद भी अब तक अच्छी बरसात नहीं हुई है। परिणाम है कि अभी भी 25 से 30 प्रतिशत किसान धान की रोपाई नहीं कर पाए हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में समय से नहर में पानी न आना भी लोगों के लिए मुसीबत बना हुआ है। तमाम किसान तो ऐसे हैं जिन्होंने बरसात के आभाव में खेत परती रखने का फैसला किया है।
मौसम की बेरूखी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 15 जून से 15 जुलाई तक जिले में 29.33 मिमी बारिश हुई थी। इसके बाद रविवार तक सिर्फ 20.13 मिमी वर्षा हुई है। जिन किसानों ने किसी तरह धान की रोपाई कर ली है उनकी फसल पानी के आभाव में सूख रही है। बरसात न होने का प्रभाव मक्का, गन्ना, उर्द, मंूग आदि की खेती पर भी पड़ा है। सब्जी का उत्पादन घट गया है। हालत यह है कि किसान परेशान है। लोग बरसात के लिए नमाज और पूजा भी कर रहे हैं लेकिन इसका भी असर नहीं हो रहा है।
प्रगतिशील किसान रामजीत सिंह, अनिल सिंह, अंतिम सिंह, नरेंद्र गुप्ता, राजेश यादव आदि का कहना है कि रबी की फसल में मौसम साथ नहीं दिया था परिणाम था कि गेहूं और सरसों का उत्पादन तीस प्रतिशत तक कम हुआ था। इससे फसल की लागत भी ठीक से नहीं निकल पाई। हमें उम्मीद थी कि बेहतर बरसात होगी तो रबी के नुकसान की भरपाई खरीफ में कर लेंगे लेकिन बरसात न होने के बाद ट्यूबवेल से धान की रोपाई में दो गुनी लागत पड़ रही है। रोपी हुई फसल पानी के आभाव में सूख रही है। ऐसे में हमने रोपाई का क्षेत्रफल भी कम कर दिया है। अगर बरसात नहीं होगी तो हम कर्ज में डूब जाएंगे। हमारे सामने खाद्यान्न का संकट खड़ा हो जाएगा।