बता दें कि आजमगढ़ जिले में कुछ एक मौकों को छोड़ दिया जाय तो बीजेपी ने कभी अच्छा प्रदर्शन नहीं किया है। वर्ष 1991 की राम लहर में बीजेपी ने यहां दो विधानसभा सीट सरायमीर और मेंहनगर जीती थी। उस समय यह दोनों ही सीटें सुरक्षित थी। इसके बाद वर्ष 1996 में बीजेपी ने लालगंज विधानसभा सीट जीती थी। फिर उसे 2017 तक इंतजार करना पड़ा। इस चुनाव में बीजेपी ने यूपी में प्रचंड बहुमत हासिल किया लेकिन आजमगढ़ में खास प्रदर्शन नहीं कर सकी। बीजेपी को दस में से सिर्फ एक सीट फूलपुर मिली। अतरौलिया और लालगंज सीट पार्टी मामूली अंतर से हार गयी। इसके पीछे प्रमुख कारण गुटबाजी रही। उस समय अतरौलिया प्रत्याशी और गोपालपुर प्रत्याशी ने तो बाकायदा प्रदेश और राष्ट्रीय अध्यक्ष को पत्र लिखकर वर्तमान जिलाध्यक्ष कई अन्य नेताओं पर बसपा की मदद का आरोप लगाया था।
रहा सवाल लोकसभा चुनाव का तो बीजेपी आजमगढ़ सीट 2009 व लालगंज सीट 2014 में जीतने में सफल रही थी। वर्ष 2019 में पार्टी ने आजमगढ़ सीट से दिनेश लाल यादव निरहुआ को मैदान में उतारा तो लगा कि पार्टी दोनों ही सीटों पर फिल्म स्टार के ग्लैमर का फायदा उठाएगी। इसका पूरा प्रयास भी किया गया लेकिन फिर पार्टी की गुटबंदी सामने आ गयी। जिन नेताओं पर 2017 में गंभीर आरोप लगे थे उनमें से कई को संगठन में पद तो पहले ही मिल गया था लेकिन चुनाव में भी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दे दी गयी। यहीं नहीं पिछड़े अति पिछड़े कार्यकर्ता और पदाधिकारियों को नरजअंदाज किया गया।