बता दें कि जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर हमेंशा से सपा और बसपा का वर्चश्व रहा है। सपा यहां चार तो बसपा दो बार अपना अध्यक्ष बना चुकी है। बीजेपी को आज तक जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव में जीत नहीं मिली है। इस चुनाव में सपा 84 में से 25 सीटों पर जीत हासिल कर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। वहीं बसपा 14 सीटों के साथ दूसरे नंबर पर है। बीजेपी को मात्र 11 सीट मिली है। सर्वाधिक 27 सीटों पर निर्दलियों को सफलता मिली है। इसके अलावा अपना दल, उलेमा कौंसिल, सुभासपा, एआईएमआईएम, कांग्रेस आदि दलों को एक एक सीट मिली है। यहां निर्दलियों को किंग मेकर माना जा रहा था लेकिन बीजेपी ने कई सदस्यों का समर्थन हासिल कर अपने सदस्यों की संख्या 24 पहुंचा ली है।
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यदि देखा जाय तो बीजेपी बहुमत से अभी 19 व सपा 18 कदम दूर है। बसपा ने अब तक अपने उम्मीदवार की घोषणा नहीं की है जबकि भाजपा ने संजय निषाद और सपा ने विजय यादव को एक पखवारा पूर्व ही मैदान में उतार दिया है। बसपा पहली बार इस चुनाव में चुप्पी साधे है। वहीं दूसरी तरफ पार्टी के निष्कासित 11 सदस्यों सपा मुखिया अखिलेश यादव से मुलाकात के बाद पार्टी के टूटने का खतरा बढ़ गया है। राजनीति के जानकारों का कहना है कि बसपा मुखिया चुप जरूर है लेकिन उनकी बेचैनी बढ़ी हुई है।
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आजमगढ़ में उनके पास इतना संख्या बल नहीं है कि अपने दम पर चुनाव जीत सके। जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव जीतने के लिए कम से कम 43 सदस्यों का समर्थन चाहिए। बसपा के पास 29 सदस्य कम हैं। अगर सारे निर्दलीय बसपा के साथ चले जाय तब भी वह बहुमत हासिल नहीं कर पाएगी। ऐसे में माना जा रहा है कि मायावती चुनाव से दूरी बना सकती है। कारण कि वे विधानसभा चुनाव से पहले नहीं चाहेंगी कि पार्टी को हार का सामना करना पड़े। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि बसपा के 14 सदस्य किसके साथ खड़े होंगे।
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वर्तमान परिस्थिति में सपा मुखिया अखिलेश यादव जिस तरह से बसपा को कमजोर करने में जुटे है उससे यह माना जा रहा है कि बसपा किसी भी हालत में सपा के साथ खड़ी नहीं होगी। अखिलेश यादव को वह उन्हीं के संसदीय क्षेत्र में मात देने के लिए अंदरखाने से बीजेपी का समर्थन कर सकती है। अगर ऐसा हुआ तो जिले में पहली बार बड़ा उलटफरे देखने को मिल सकता है।