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20 वर्षों के बाद फिर पार्षदों को मिला नगरपालिका अध्यक्ष चुनने का मौका

locationबड़वानीPublished: Jul 22, 2021 09:53:26 am

Submitted by:

vishal yadav

बाहुबलियों के प्रभाव में होंगे पदों के निर्णय, नपा चुनाव की नई गाइड लाइन की हो रही चर्चा, पार्षदों को 20 वर्षों बाद फिर मिला नगरपालिका अध्यक्ष चुनने का मौका

Councilor will choose Municipality President

Councilor will choose Municipality President

बड़वानी/सेंधवा.
पिछली कमलनाथ सरकार द्वारा जिस तरह नपा चुनावों में पार्षदों के माध्यम से नपा अध्यक्ष के चुनाव कराने की सोच को शिवराज सरकार ने भी यथावत रखा है। अब आगामी नपा चुनाव सहित नगर पंचायतों में जनता द्वारा चुने गए पार्षद ही अपना नेता चुनेंगे। कई वर्षों के बाद ये व्यवस्था फिर लागू होगी। वर्तमान में नगरीय निकायों में पार्षदों की स्थित करीब हाशिए पर है, लेकिन अब नए निर्णय से पार्षदों की ताकत में बढ़ोतरी हो सकेगी। वहीं वे अब अपनी मर्ज का नेता चुन किंग मैकर की भूमिका निभा सकते है। हालांकि इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि पार्षदों द्वारा नेता चुने जाने की प्रक्रिया के दौरान बाहुबल सहित धनबल सब कुछ पहले की तुलना में अधिक बढ़ सकता है।
20 वर्षों के बाद पार्षदों को मिलेगा अपना नेता चुनने का अधिकार
पिछले कई वर्षों के चुनावी प्रक्रिया पर गौर करें तो नपा चुनाव में अध्यक्ष का चुनाव जनता के सीधे वोट से हुआ है। पूर्व नपाध्यक्ष राजेंद्र मोतियानी को जनता से चुना थाञ इसके बाद हर्षा कुमार, शंभू शर्मा और अरुण चौधरी जनता की पसंद बने थे। वर्तमान नपा अध्यक्ष बसंतीबाई यादव को पिछले नपा चुनाव में किसी भी स्तर पर कोई कोंग्रेसी या अन्य पार्टी का नेता चुनौती नहीं दे सका और वे निर्विरोध नपाध्यक्ष निर्वाचित हुई। अब वर्ष 2022 में संभावित नपा चुनाव में एक बार फिर पार्षदों को अपना नेता चुनने का अधिकार मिलेगा। इसके अपने राजनीतिक समीकरण बनते दिख रहे है।
जिले की राजनीति का किला अब दरक रहा
सेंधवा नगर बड़वानी जिले का सबसे बड़ा नगरीय क्षेत्र होने के साथ बेहद संवेदनशील भी है। जिले की राजनीती का केंद्र रहे सेंधवा के नेता जिले की राजनीति की दिशा और दशा तय करते रहे है, लेकिन अब ये किला दरकने लगा है। चर्चा है कि वर्तमान में राजनितिक गलियारों में कई निर्णयों में बड़वानी केंद्र में रहता है। कई नेता हाशिय पर दिखाई देते है। वर्तमान समय में भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियों के कई नेता अब अप्रभावी दिखाई देते है। जानकारों का कहना है कि इन परिस्थितियों का असर आगामी नपा चुनावों में भी देखने को जरूर मिलेगा। भाजपा और कांग्रेस के कई सक्रिय नेता पिछले कई महीनों से अपने अपने स्तर पर राजनीतिक जमीन तैयार करने में जुटे है। वहीं सांसदों, पार्टी अध्यक्षों सहित संपर्क मजबूत करने में लगे हुए है। इसलिए भी आगामी नपाध्यक्ष चुनावों में कई बड़े निर्णय होने की उम्मीद है।
सामाजिक कार्यकर्ताओ और युवा पेश करेंगे चुनौती
नगर पालिका चुनामें पार्षदों को मिलने वाले अधिकारों की वजह से नगर के कई सामाजिक कार्यकर्ताओं सहित युवाओं और राजनीति का मैदान छोड़ चुके लोगों के मन में लड्डू फुट रहे है। कई पुराने पार्षद भी अब सक्रिय होते दिख रहे है। वर्तमान पार्षद भी अपना दावा मजबूत करने में लग चुके है। राजनीति के जानकारों का कहना है कि अब ऐसे लोग भी पार्षद बनना चाहेंगे, जिनके मन में नपाध्यक्ष बनने की लालसा हो सकती है। कई लोग अभी से अपने सामाजिक और राजनीतिक कामों अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में लग गए है।
24 पार्षदों में 20 भाजपा और कांग्रेस के पास सिर्फ 4
नगर में 24 वार्डो में से 20 वार्ड ऐसे है। जहां भाजपा समर्थित उम्मीदवार चुनाव जित चुके है। हालांकि पिछले कुछ महीनों में 4 वार्डों में पार्षदों का विभिन्न कारणों से निधन हुआ है। उनकी सीट रिक्त है, जिन पर उपचुनाव नहीं हुए है। वहीं कांग्रेस की झोली में सिर्फ 4 पार्षद है। सेंधवा में नपा चुनावों में वार्डों की स्थिति भाजपा के पक्ष में अधिक रही है। इसका कारण रहा है कि पिछले करीब 20 वर्षों में सेंधवा विधायकी और सांसद भाजपा के ही रहे है, जिससे कांग्रेस को अपनी राजनीतिक जमीन बचाने के लिए संघर्ष करना पड़ा है। हालांकि वर्तमान कांग्रेस विधायक ने सेंधवा में भाजपा के गढ़ को ध्वस्त किया है, लेकिन नगर पालिका में अभी भी भाजपा ही ड्राइविंग सीट पर है। अब इसका असर आगामी चुनाव पर कितना होगा ये तो समय ही बताएगा।
पार्षदों के बदलते अधिकारों पर ये कहते है विशेषज्ञ
नपाध्यक्ष का पद यदि संसदीय प्रशासन प्रणाली से प्रेरित होता है। मतलब पार्षद जब अपना नेता चुनते है, तो मनोनीत अध्यक्ष पार्षदों के प्रति जवाबदेह होता है, लेकिन वर्तमान में कहीं भी नगरीय निकायों में ऐसा नहीं है। पार्षद मजबूत होंगे। एक सामान विचारधारा के पार्षद जब अपना प्रतिनिधि चुनेंगे, तब निकायों में बेहतर तालमेल से काम होंगे। यदि निकाय का अध्यक्ष विवादित होता है, तो पार्षद उसे अविश्वास प्रस्ताव लाकर हटा सकते है।
-इस्माइल बेग, सेवानिवृत्त प्रोफेसर राजनीति शास्त्र

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