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सेंधवा की वत्सला बाई का पापड़ और अचार पहुंच रहा है गुजरात और महाराष्ट्र

locationबड़वानीPublished: Apr 11, 2021 09:41:16 am

Submitted by:

vishal yadav

सेंधवा के 100 हाई प्रोफाइल परिवारों को पापड़ और अचार सप्लाय कर सशक्तिकरण, संघर्ष और सफलता का उदाहरण बनी सेंधवा की वत्सला बाई, मजदूरी से लेकर व्यवसाय करने तक संघर्ष की कहानी

Vatsala Bai of Sendhwa is making papad and pickle

Vatsala Bai of Sendhwa is making papad and pickle

बड़वानी/सेंधवा. जिस आयु में बुजुर्ग खुद को असहाय मानकर दूसरों पर आश्रित हो जाते है। वहीं सेंधवा की एक महिला ऐसी भी है, जो जिसका जीवन संघर्ष, सशक्तिकरण और सफलता की कहानी स्वयं कहता है। ये महिला अपने हुनर से परिवार की आर्थिक गतिविधियों का संचालन तो करती ही है। वहीं अन्य महिलाओं को अपने काम करने के जज्बे से प्रेरणा भी दे रही है। बचपन की मजदूरी शुरू करने से लेकर वर्तमान तक सेंधवा की इस महिला का जीवन संघर्ष और स्व प्रेरणा की ऐसी मिसाल बन गया है। जिसने हर मुश्किल को हराकर सफल होने की कहानी गढ़ दी है। हम बात कर रहे है सेंधवा के नया बस स्टैंड परिसर के पीछे कॉलोनी में रहने वाली वत्सला बाई मेवाड की, जिन्होंने संघर्ष कर अपने परिवार को सुचार चलाया और वह संघर्ष आज भी जारी है। ये बुजुर्ग महिला सिर्फ महिलाओं के लिए ही नहीं, बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा बन चुकी है जो समाज और परिवार में विपरीत परिस्थितियों और बुरे समय से हार मानकर बैठ जाते है।
बचपन की मजदूरी से लेकर स्वयं के व्यवसाय तक किया संघर्ष
वत्सला भाई मेवाड़ा 65 ने पत्रिका को बताया कि मेरा जन्म सेंधवा के मोतीबाग क्षेत्र में हुआ था शुरू से ही घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। इसलिए बचपन से ही मां के साथ मजदूरी करने जाया करती थी। तभी से परिवार को सुचारू रूप से चलाने के लिए पैसा किस तरह कमाया जाता है सीख गई थी। लंबे समय तक मजदूरी करने के बाद जब परिवार ने शादी की तो नगर के ही दिनेश गंज ने ससुराल रहा। यहां भी लंबे समय तक मजदूरी की खेत में काम किया और अपने परिवार को सहयोग करती रही। कुछ साल पहले हमारा परिवार नया बस स्टैंड के पीछे स्थित कॉलोनी में आकर रहने लगा यहां पर आकर वत्सला बाई ने हलवाई का काम किया आटा चक्की संचालित की और अपने परिवार की आर्थिक मदद करती रही।
मक्का और चावल के पापड़ ने दिलाई अलग पहचान
करीब 12 साल पहले महिला ने पापड़ बनाने का व्यवसाय शुरू किया बिना किसी ट्रेनिंग या जानकारी के अपने अनुभव के आधार पर मक्कर और चावल के पापड़ बनाने शुरू किए। वत्सला बाई ने बताया कि जब घर वालों को मेरे पापड़ बनाने के निर्णय से अवगत कराया तो सभी ने कहा कि तुम कैसे कर सकती हो। जबकि कोई ट्रेनिंग या औपचारिक प्रशिक्षण नहीं लिया, लेकिन ये महिला नहीं मानी और छोटे स्तर पर व्यवसाय शुरू किया। कई बार असफलता के बाद धीरे-धीरे सफलता मिलने लगी। शुरुआत में कई लोगों को पापड़ सैंपल के तौर पर खाने के लिए देती थी और उसके बाद लोगों की राय लेकर रेसिपी में बदलाव करती थी। ये क्रम लगातार चलता रहा और एक समय ऐसा आया कि इस महिला के पापड़ को नगर में अलग पहचान मिल गई। इसके अतिरिक्त ये महिला टूथपेस्ट के पाउडर की चेकिंग करने का काम भी करती है। वहीं निजी स्कूल में खाना बनाने में भी सेवा देती है। 65 वर्ष में उम्र के इस पड़ाव में भी वत्सला बाई के दिनचर्या को देखकर कई लोग आश्चर्यचकित रह जाते हैं। वत्सला का कहना है कि कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता सिर्फ लगन और कभी ना थकने का जज्बा आपको एक अलग पहचान दिलाता है।
नगर के 100 हाई प्रोफाइल परिवारों को सप्लाई करती है पापड़
वत्सला बाई ने बताया कि 1 साल में 7 महीने तक व्यवसाय चलता है। जिसमें करीब 15 क्विंटल पापड़ बनाकर बेच देती है। मतलब हर महीने सवा से डेढ़ क्विंटल तक पापड़ बना लेती है। सबसे पहले महिला द्वारा सदर बाजार के एक परिवार को पापड़ सैंपल के तौर पर दिए थे। इसके बाद अब सेंधवा के करीब 100 से अधिक हाईप्रोफाइल परिवार इस महिला को पापड़ बनाने का आर्डर देते है। पिछले कई वर्षों से सदर बाजार जवाहर गंज सहित कई परिवारों में मक्का और चावल के पापड़ का सप्लाई वत्सला बाई ही कर रही है। वत्सला ने बताया कि जो पैसा मिलता है। उससे परिवार की हर जरूरत पूरी हो जाती है। इसलिए आज तक कभी किसी से उधार लेने की जरूरत नहीं पड़ी ना ही किसी बैंक से लोन लिया है। उन्होंने बताया कि मेरे पापड़ लोग औरंगाबाद मुंबई नंदुरबार सहित गुजरात तक अपने परिजनों को भेज रहे है। हालांकि उन्होंने ये भी कहा कि अब उम्र अधिक हो गई है। इसलिए शरीर थोड़ा थका हुआ है, लेकिन फालतू बैठना अच्छा नहीं है। जीवन में संघर्ष हमेशा चलते रहता है। यदि प्रशासन ऐसी महिलाओं को प्रोत्साहित करके गृह उद्योग या अन्य महिलाओं को ट्रेनिंग दिलाने का काम करें तो ये व्यवसाय एक अच्छे उद्योग का रूप ले सकता है।

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