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VIDEO: धरती के गर्भ से निकला महाभारत काल का धनुष, किसी ने कहा अर्जुन का तो किसी ने बताया कर्ण का, राजकुमारी का कंकाल भी मिला

locationबागपतPublished: May 03, 2019 11:43:35 am

Submitted by:

Ashutosh Pathak

धरती के गर्भ से मिला महाभारत यौद्धाओं का धनुष
सिनौली में शुरू हुआ जीपीएस सर्वे
लंदन से दरहम यूनिवर्सिटी की टीम भी पहुंची

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धरती के गर्भ से निकला महाभारत काल का धनुष, किसी ने कहा अर्जुन का तो किसी ने बताया कर्ण का, राजकुमारी का कंकाल भी मिला

बागपत। महाभारत काल के बारे में अब तक कहानी और किताबों के जरिए ही जानकारी मिलती थी, लेकिन अब धीरे-धीरे इन रहस्यों से पर्दा उठने लगा है। एक बार फिर बागपत की धरती से कुछ राज सामने आए हैं और हजारों साल पहले के रहस्य एक-एक कर सामने आ रहे हैं।
धरती से निकला काष्ठ का धनुष

सिनौली में महाभारत काल का एक दुर्लभ धनुष मिला है, जिसे इतिहास की दुर्लभ घटना मानी जा रही है। जिसके बाद से उत्खनन कार्य चल रहा है। दरअसल सिनौली अर्जुन, कर्ण के शौर्य का प्रतीक कहा जाता है। पूर्व में हुए उत्खनन से युद्ध रथ व शाही ताबूतों के बाद सिनोली की तीसरी सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपलब्धि भारतीय उपमहाद्वीप में मिले काष्ठ निर्मित धनुष को पूरी तरह से सुरक्षित कर लिया गया है। विश्व की सबसे दुर्लभ सिनौली उत्खनन साईट पर जीपीएस सर्वे भी शुरू हो गया है | जिसके लिए लन्दन की दरहम यूनिवर्सिटी ( Durham University ) की टीम भी सिनौली पहुंच चुकी है। लकड़ी का बना होने के कारण इस धनुष की काष्ठ खत्म हो चुकी है, लेकिन शेप अभी भी वैसी ही बरकार है।
धनुष की आंतरिक व बाहरी मिट्टी को अलग करने के लिए कैमिकल यानि रासायनिक प्रक्रियाओं से सुरक्षित कर लिया गया है। ताकी इसके अलावा धनुष का भीतरी हिस्सा/शेप पूरी तरह से सुरक्षित रहे, इसके लिए आंतरिक मिट्टी को ऑलपिन/छोटी धातु से पिरोया गया है, ताकि आंतरिक मिट्टी धनुष को बाहर निकालते समय बाहरी मिट्टी में टूटकर मिल ना जाए। इसके लिए दक्षिण भारत की जानी मानी यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञों की भी मदद ली गयी। इस धनुष को सुरक्षित करने में एएसआई की तकनीकी विशेषज्ञों की टीम भी बारीकी से कार्य कर रही थी जोकि अपनी पूर्णतया को प्राप्त हो गया है। अब यह महाभारत कालीन धनुष रासायनिक प्रक्रियाओं के माध्यम से सुरक्षित कर लिया गया है और इसको हुबहू बाहर निकाल दिल्ली में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ( Archaeological Survey of India ) के मुख्यालय पर ले जाने की तैयारियां तेज़ कर दी गयी है।
पहले भी निकल चुके हैं कई अवशेष

दरहम यूनिवर्सिटी से आई टीम एएसआई के साथ मिलकर हड़प्पा ( Harappa ) कालीन समकक्ष सभ्यता की तलाश में कार्य शुरू कर रही है। लन्दन की इस तीन सदस्य टीम में दरहम यूनिवर्सिटी के डंकन, मार्क और एडम शामिल है | यानि साफ़ है की सिनौली साईट से प्राप्त दुर्लभ पुरावशेषों को अब पूरी दुनिया जानेगी।| ये वही साईट है जहां 2005 में विश्व के सबसे बड़े शोध केंद्र के रूप में जानी गयी थी। इस साईट से युद्ध रथ, शाही ताबूत, बहुमूल्य मरदभांड, मनके, सोने के कंगन, सिराश्र, सैकड़ों कंकाल, ताम्बे की म्यान, ताम्र युक्त तलवारें आदि प्राप्त हो चुकी हैं और अब इसी साईट पर पूरे देश के वरिष्ठ इतिहासकारों और पुरातत्वविदों की नज़रे टिकी हुई है।
राजकुमारी का कंकाल भी मिला

वहीं सिनौली गांव में चल रहे उत्खनन कार्य में महाभारत कालीन राजकुमारी का कंकाल कुछ दिन पहले ही प्राप्त हुआ। 15-16 साल की राजकुमारी के कंकाल के हाथ-पैर में स्वर्णाभूषण (कडे़), गले में एक हसली की तरह स्वर्ण हार जो कि तांबे के मोटे तार पर लिपटा हुआ था। जो कि ताबूत की ऊपरी सतह पर मौजूद है। इस ताबूत के पास में ताम्र निर्मित लघु तलवार, दुर्लभ मिट्टी व तांबे के बर्तन भी प्राप्त हुए हैं। इतिहासकार डॉ अमित राय जैन के अनुसार ताबूत व इसके आसपास बारीकी से किए जा रहे कार्य में अब एक और अद्भुत एवं अत्यधिक दुर्लभतम उपलब्धि के रूप में अर्जुन के शौर्य का प्रतीक ‘धनुष’ प्राप्त हुआ है। काष्ठ यानि लकड़ी से बना यह धनुष वैसे तो सैंकड़ों वर्षों से जमीन में दफन होने के कारण मिट्टी बन चुका है, लेकिन मिट्टी में इस धनुष की शेप/आकृति उसी प्रकार अभी भी मौजूद हैं।
2005-06 में हुए उत्खनन में भी खुले कई राज

इस बारे में इतिहासकार डॉ. अमित राय जैन, निदेशक-शहजाद राय शोध संस्थान के अनुसार वर्ष 2018 में हुए उत्खनन में सिनौली से आठ मानव कंकाल एवं उन्हीं के साथ दैनिक उपयोग की खाद्य सामग्री से भरे मृदभांड, उनके अस्त्र-शस्त्र, औजार एवं बहुमूल्य मनकों के साथ-साथ अभी तक की सबसे बड़ी उपलब्धि के रूप में महाभारत कालीन युद्ध रथ, यौद्धाओं के शाही ताबूत, ताम्र निर्मित तलवारें, ढाल, यौद्धा का कवच, बाणाग्र (तीर के आगे का हिस्सा) हेलमेट/शिराश्र भी यहां से प्राप्त हुए। इससे पहले सिनौली से डॉ. डीवी शर्मा के निर्देशन में 2005-06 में हुए उत्खनन के दौरान 117 मानव कंकाल, दो तांबें की तलवारें, एक तांबे की म्यान, चार सोने के कंगन, एक सोने से बना मनके का हार, एक सोने की लघु मानवाकृति, सैंकड़ों मनकें, समेत अन्य पुरावशेष प्राप्त हुए थे।
सिनौली में उत्खनन के समय खेत से अब दीवार के साथ एक भट्ठी निकली है। लगभग दो फुट चौड़ी और इतनी ही गहरी इस भट्ठी को निखारा जा रहा है। वर्ष 2005 में भी इसी तरह की एक भट्टी प्राप्त हुई थी। जमीन के अंदर भट्ठी का मिलना यहां मानव बस्ती होने की पुष्टि करता है। ऐसी भट्टी 2005-06 के उत्खनन में भी मिल चुकी है। इसका प्रयोग शवाधान केंद्र पर ही दाह संस्कार के रूप में किया जाता था।
तीसरे चरण की चल रही है खुदाई

गौरतलब हो कि पुरातत्व विभाग ने 15 जनवरी को खुदाई के लिए पूजा अर्चना कर विधिवत रूप से सिनॉली में तीसरे चरण के उत्खनन कार्य का श्री गणेश कर दिया गया था। साइट से 2005 और 2018 में खुदाई के दौरान मानव कंकाल, रथ, शाही ताबूत, ताम्र तलवारे, मृदभांड, मनके, दुर्लभ पॉट और अन्य वस्तुएं मिली थी जिन्हें साइट से उठाकर पुरात्तव विभाग की टीम ने दिल्ली भिजवा दिया था। फ़िलहाल चल रहे तीसरे चरण के उत्खनन से राजकुमारी के कंकाल के पास में ही अब अर्जुन के शौर्य का प्रतीक कहे जाने वाले धुनष का यहां से मिलना इतिहास की दुर्लभतम घटना साबित कर रहा है। ताबूत व इसके आसपास बारीकी से किए जा रहे कार्य में अब एक और अद्भुत एवं अत्यधिक दुर्लभतम उपलब्धि के रूप में अर्जुन के शौर्य का प्रतीक ‘धनुष’ प्राप्त हुआ है। काष्ठ यानि लकड़ी से बना यह धनुष वैसे तो सैंकड़ों वर्षों से जमीन में दफन होने के कारण मिट्टी बन चुका है, लेकिन मिट्टी में इस धनुष की आकृति उसी प्रकार अभी भी मौजूद हैं। इस धनुष को सुरक्षित करने में एएसआई की तकनीकी विशेषज्ञों की टीम भी बारीकी से कार्य कर रही है। हालाकि ये धनुषनुमा आक्रति है जिसपर अभी एएसआई द्वारा रिसर्च चल रही है |
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