अपने लक्ष्य के बारे में जानकारी देते हुए प्रताप गोपेंद्र यादव बताते हैं कि गांव देहात के परिवेश में एडवांस तो कोई नहीं होता था। वहां किसी को पता नहीं होता है कि बड़े होकर क्या बनना है। जो लक्ष्य आम आदमी का होता है ऐसा ही एक आम लक्ष्य था कि कोई सरकारी नौकरी मिल जाए। लेकिन एक जरूर बात थी और वह चाहते थे कि ऐसा काम करें कि लोगों तक पहुंच सकें और लोगों के लिए काम कर सकें। वह बताते हैं कि आईपीएस और आईएएस का तो उन्हें कोई ज्यादा इल्म नहीं था। बीएससी उन्होंने बनारस कॉलेज से की है।बीएससी तक उनका ऐसा कोई सपना नहीं था। उसके बाद प्रश्न उठा कि क्या करना है। तो पूर्वांचल के ज्यादातर कॉलेज के बच्चे इलाहाबाद के लिए ही जाना पसंद करते हैं। उन्होंने भी वहीं जाकर यूपीएससी की तैयारी शुरू कर दी।
कुत्तों से लगता है डर वह बताते हैं कि उन्हें सिर्फ कुत्तों से बहुत डर लगता है। बाकी और किसी जानवरों से डर नहीं लगता। इसके साथ ही बदनामी से भी उन्हें बहुत डर लगता है। ऐसा कई बार होता है कि लोग अच्छा करने के बाद भी दूसरे को छोटा करने के लिए प्रायोजित बदनामी कर देते हैं। उससे बड़ा डर लगता है। कई बार समाज अपने तरीके से चीजों को तोड़-मरोड़ देता है। झूठे आरोप लगाकर दूसरे की प्रतिष्ठा दांव पर लगाना, बस इसी से डर लगता है।
लोगों को देते हैं ये संदेश लोगों को संदेश देते हुए वह कहते हैं कि मानव जीवन बहुत छोटा है और इसे कभी भी घटिया नहीं होना चाहिए। मेरा शुरू से जीवन सूत्र रहा है। बहुत नश्वर जीवन हमारा है। प्रभु ने हमें मानव बना कर भेजा है। इतनी एनर्जी हमें दी है। चेतना दी है। हम लोगों का सहयोग कर सकें और भला कर सकें। अपनी जिंदगी तो जीते ही रहे, साथ ही जिसकी सहायता कर सकते हैं, सहायता भी करें। तभी हमारा समाज और सोसायटी आगे बढ़ सकता है।