scriptआठ दशक पहले भी आई थी कोरोना जैसी महामारी | An epidemic like corona came even eight decades ago | Patrika News

आठ दशक पहले भी आई थी कोरोना जैसी महामारी

locationबगरूPublished: Mar 22, 2020 11:48:45 pm

Submitted by:

Ashish Sikarwar

कोरोना वायरस सेे विश्वभर में दशहत का माहौल है। हजारों लोगों की मौत हो चुकी है। देश में भी करीब 7 मौत हो चुकी तथा 350 से अधिक लोग संक्रमित हैं। बिलांदरपुर कस्बे में करीब 71 साल पहले भी महामारी ने पांव पसारे थे।

आठ दशक पहले भी आई थी कोरोना जैसी महामारी

कोरोना वायरस सेे विश्वभर में दशहत का माहौल है। हजारों लोगों की मौत हो चुकी है। देश में भी करीब 7 मौत हो चुकी तथा 350 से अधिक लोग संक्रमित हैं। बिलांदरपुर कस्बे में करीब 71 साल पहले भी महामारी ने पांव पसारे थे।

बिलान्दरपुर . कोरोना वायरस सेे विश्वभर में दशहत का माहौल है। हजारों लोगों की मौत हो चुकी है। देश में भी करीब 7 मौत हो चुकी तथा 350 से अधिक लोग संक्रमित हैं। बिलांदरपुर कस्बे में करीब 71 साल पहले भी महामारी ने पांव पसारे थे।
तब इलाज के संसाधन नहीं थे। 15 दिन में 60 लोगों की जान चली गई थी, आसपास के गांव के लोगों ने यहां आना बंद कर दिया था। कस्बा निवासी पंडित राधेश्याम इंदौरिया ने बताया कि 71 साल पूर्व बिलान्दरपुर में विक्रम संवत 2005 सन् 1949 में हैजे का प्रकोप हुआ था। उस समय गांव में 15 दिन के अंतराल में 60 लोगों की मौत हो गई थी। जिससे गांव में डर का माहौल बन गया था। उस दौर में ऐसी कोई चिकित्सा व्यवस्था नहीं थी। जिससे लोगों को बचाया जा सके। इंदौरिया ने बताया कि उनका जन्म विक्रम संवत 1994 व सन 1938 में हुआ था। उस समय उनकी उम्र 11 वर्ष थी और वो भी इसकी चपेट में आ गए थे, तब गांव के वृद्ध वैद्य ने नीम के पत्तों से इलाज कर उनकी जान बचाई थी। उस समय भी गांव में एक महीने तक लोग घरों के अन्दर ही रहे थे। इंदौरिया ने बताया कि कारण कुछ भी रहे हों लेकिन तब ग्रामीणों ने ऐसा माना था कि भगवान नृसिंह की लीला के दौरान भगवान के चेहरे का वजन कम कर दिया गया था। इससे गांव में हैजे की प्राकृतिक आपदा आ गई। (निसं)

 

सांभर में आई थी महामारी, छूने से होती थी
सांभरलेक. दुनिया भर में फैल रही कोरोना महामारी को लेकर सांभर के 90 वर्षीय बुजुर्ग लक्ष्मीनारायण जोशी ने अनुभव साझा करते हुए बताया कि जब वे दस साल के थे तो सांभर में महामारी फैली थी। उस समय यह बीमारी छूने से फैल रही थी तो लोग एक दूसरे से पास आने में गुरेज करने लगे थे। उस समय कस्बे में काफी लोगों की मौत भी हुई थी। मौत के बाद शवों को उठाने के लिए कोई तैयार नहीं होता था। लोगों का डर था कि मृतक को छूने के साथ ही उनको भी बीमारी हो जाएगी। लेकिन एक व्यक्ति था जो कि उस समय करीब 80 साल पूर्व पांच रुपए लेकर शव शमशान तक पहुंचाने की व्यवस्था करता था। जोशी से जब ये पूछा कि उस समय उस महामारी से लडऩे की क्या व्यवस्था थी। उन्होंने बताया कि इतनी दवाएं तो हुआ नहीं करती थी। माता-पिता व परिजन नीम के पत्तों को पानी में उबाल कर स्नान कराते थे। एक-दूसरे से दूर रखा जाता था। कई लोग इसका शिकार भी हुए। उन्होंने बताया 90 साल की जिंदगी में कोरोना जैसी बीमारी नहीं देखी। अब लोग खुद का बचाव कर एक दूसरे की जिंदगी बचा सकते हैं।

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