scriptजयपुर जिले के ये गांव ऐसे जहां तपती धूप में 1.5 किमी. दूर पानी भरने जाती हैं महिलाएं, पैरों में पड़ जाते हैं छाले | Drinking water serious crisis in jaipur | Patrika News

जयपुर जिले के ये गांव ऐसे जहां तपती धूप में 1.5 किमी. दूर पानी भरने जाती हैं महिलाएं, पैरों में पड़ जाते हैं छाले

locationबगरूPublished: Jun 06, 2020 10:14:44 pm

Submitted by:

Kashyap Avasthi

– कुएं पर दिनभर पानी के लिए मारामारी, पानी के जुगाड़ में ही बीत जाता है दिन

जयपुर जिले के ये गांव ऐसे जहां तपती धूप में 1.5 किमी. दूर पानी भरने जाती हैं महिलाएं, पैरों में पड़ जाते हैं छाले

जयपुर जिले के ये गांव ऐसे जहां तपती धूप में 1.5 किमी. दूर पानी भरने जाती हैं महिलाएं, पैरों में पड़ जाते हैं छाले

जयपुर. सरकार चाहे गांव-गांव पानी पहुंचाने और जलदाय योजनाओं पर करोड़ों रुपए खर्च कर हर हलक तक पानी पहुंचाने के दावे करती हो लेकिन जयपुर जिले के सांभर उपखंड में ही कई गांव ऐसे हैं, जहां हालात बाड़मेर से कम नहीं हैं। ऐसा नहीं है कि जिम्मदारों को इसकी जानकारी नहीं है लेकिन आश्वासनों के ठंडे छींटों के अलावा लोगों को कुछ नहीं मिला। हालात ये हैं कि डेढ़ किलोमीटर दूर से महिलाएं सिर पर पानी लेकर आती हैं। कुएं पर इतनी भीड़ रहती है कि बारी आने के बाद घर पहुंचने में ही पूरा दिन बीत जाता है । महिलाओं के पैरों में छाले तक पड जाते है।

सांभरलेक उपखंड के कोच्या की ढाणी, झपोक सहित कई गांवों में पेयजल संकट बेहद गंभीर है। महिलाओं को तपती बालू में डेढ़ किलोमीटर दूर से पानी लाना पड़ रहा है। गांव की पेयजल टंकी में सांभरलेक जलदाय विभाग से पाइप लाइन के जरिए सप्लाई की जाती थी। लेकिन चार-पांच वर्ष पूर्व ही सप्लाई बंद हो गई। अब पेयजल टंकी भी क्षतिग्रस्त हो गई है। दो वर्ष पूर्व बीसलपुर योजना के तहत लगे पानी के पीएसपी पॉइंट भी गर्म हवा फेंकते हैं। अब पानी का और कोई स्रोत भी नहीं है। एक मात्र कुआं है जो निजी खातेदार का है। वह भी डेढ़ किलोमीटर दूर है। वहां तक जाने का मार्ग भी सुगम नहीं है। करीब दो हजार की आबादी इस कुएं पर निर्भर है।

नंबर आने तक गाती हैं लोकगीत


यह कुआं अभी सौ फीट गहरा है। लेकिन ज्यादा गहराई करते ही पानी खारा आता है। अभी जो पानी मिल रहा है भी पूरी तरह स्वच्छ नहीं है। इसलिए जैसा भी पानी आ रहा है वहीं पीना पड़ रहा है। अगर निजी खातेदार पानी भरने से मना कर दे तो कोई रास्ता नहीं। इस कुएं पर भी महिलाओं को पानी के लिए घंटों इंतजार करना पड़ता है। अपनी बारी आने तक महिलाएं समूह में बैठकर गीत गाती हैं। बारिश के लोकगीत गाकर इंद्रदेव को रिझाने का प्रयास करती हैं। इस गांव के हालात रेगिस्तान से कम नहीं है। महिलाओं ने बताया कि पूरा दिन ही पानी के जुगाड़ में बीत जाता है। लेकिन गला तर करने के लिए महिलाओं व बेटियों के पैरों में छाले तक पड़ जाते हैं।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो