गणपति महोत्सव में पीओपी व अन्य खतरनाक रसायनों से निर्मित भगवान गणपति की मूर्ति के स्थान पर इस बार गाय के गोबर से निर्मित भगवान गणेश की प्रतिमाएं विराजित होंगी। गणपति की प्रतिमाओं का निर्माण आसलपुर ग्राम की धेनुकृपा गोशाला में पं. विष्णु दत्त शर्मा के सान्निध्य में पं सुरेश चन्द दाधीच ने गाय के गोबर से प्रथम गणपति का निर्माण कर किया।
शास्त्र सम्मत नहीं हैं पीओपी की मूर्ति
शर्मा ने बताया कि पीओपी से मूर्तियों का निर्माण करना शास्त्र सम्मत नहीं हैं। सनातन धर्म में देवताओं की प्रतिमाओं के निर्माण के लिए धातुओं में सोना,चांदी, तांबा, पीतल व लकडी, पत्थर, मिट्टी, पंचगव्य आदि की मूर्तियों की स्थापना व पूजन का उल्लेख है लेकिन पीओपी से भगवान की मूर्ति बनाने का उल्लेख नहीं है। भगवान गणेशजी का सर्वोत्तम एवं सर्वमान्य स्वरूप गोबर से निर्मित गणेश है, जिसे ‘संकल्प सिद्ध गणेश कहा जाता है । गोबर में श्री लक्ष्मी का निवास होने से इन्हें अग्रपूज्य माना जाता है।
गोशालाओं में दिया प्रशिक्षण
गोबर से गणेश बनाने को लेकर शनिवार को पं. विष्णुदत्त शर्मा ने क्षेत्र की विभिन्न गोशालाओं के संचालकों को प्रशिक्षण दिया, जिसमें गौमाता के पवित्र गोबर में गाय का घी, दही, दूध ,गौमूत्र, शहद मिलाकर गौभक्तों ने गणपति का निर्माण किया तथा हल्दी व दूध चढ़ाकर पूजन किया। गणेश महोत्सव के लिए आसलपुर में भी 300 गणेश प्रतिमाएं तैयार करने का निर्णय लिया गया। इन प्रतिमाओं का विसर्जन गणपति महोत्सव के दौरान हनुमानगढ़ के नोहर जिले से होगा। जहां गोगाजी महाराज को गोबर की राखी बांधकर यात्रा प्रारम्भ होगी।
नोहर में बन चुकी हैं 300 प्रतिमाएं
हनुमानगढ़ जिला सहित सीकर, चूरू, गंगानगर जिले में दी जाने वाली 300 मूर्तियां का निर्माण नोहर में पूर्ण हो चुका है। जयपुर, भीलवाडा, अजमेर, उदयपुर, चित्तौड़, बांसवाड़ा, अलवर, भरतपुर में मूर्तियां आसलपुर से उपलब्ध कराई जाएंगी । इस अवसर पर बेगस गोशाला के प्रहलाद शर्मा ने कहा कि गोशालाओं को स्वावलम्बी बनाने का यह उत्तम मार्ग है। अब लोगों को इस बारे में जागरूक किया जाएगा।
पीओपी है हानिकारक (Harmful pop)
ज्ञात रहे कि पीओपी की मूर्तियां पानी में नहीं गलती और जिस जलाशय में विसर्जित की जाती हं, उस पानी को भी प्रदूषित करती हैं। ऐसे में गोबर से तैयार प्रतिमाएं विसर्जित होकर कुछ ही घंटों में पानी में मिल जाएगी और जल प्रदूषण भी नहीं होगा।