जानकारी के मुताबिक नगरपालिका क्षेत्र से छह महीने पहले लाखों रुपए की राशि खर्च कर 175 बंदरों को सरिस्का के जंगल में छुड़वाए गए थे, लेकिन आमजन को बंदरों से निजात नहीं मिली, जिसके चलते शुक्रवार को पालिका कार्यालय में बंदरों को पकडऩे की निविदाएं खोली गईं।
स्थिति ये है कि पूर शहर बंदरों से परेशान है। अब तक बंदर दर्जनों की संख्या में लोगों को जख्मी कर चुके हैं। नगरपालिका के अधिकतर वार्डों, गली-मोहल्लों एवं कॉलोनियों में कहीं भी झुंड के रूप में बंदर घूमते नजर आते रहते हैं। कई स्थानों पर तो लोगों को छतों पर जाना तक बंद हो गया। रास्तों में बैठे रहने पर लोगों को रास्ता तक बदलने की नौबत आ जाती है। इससे आमजन, व्यापारी ही नहीं अन्य वर्गों के लोग परेशान हैं।
स्थिति ये है कि पूर शहर बंदरों से परेशान है। अब तक बंदर दर्जनों की संख्या में लोगों को जख्मी कर चुके हैं। नगरपालिका के अधिकतर वार्डों, गली-मोहल्लों एवं कॉलोनियों में कहीं भी झुंड के रूप में बंदर घूमते नजर आते रहते हैं। कई स्थानों पर तो लोगों को छतों पर जाना तक बंद हो गया। रास्तों में बैठे रहने पर लोगों को रास्ता तक बदलने की नौबत आ जाती है। इससे आमजन, व्यापारी ही नहीं अन्य वर्गों के लोग परेशान हैं।
दो हजार में पकड़ा था एक बंदर
पालिका प्रशासन ने जनता की पीड़ा को देखते हुए मार्च, 2018 में इन बंदरों को पकडऩे के लिए निविदाएं आमंत्रित की गई, जिसमें नेशनल रेडियो कम्पनी एवं इलेक्ट्रिकल्स सर्विसेज दौसा की न्यूनतम राशि 7500 रुपए निकली, जिस पर पालिका प्रशासन ने नेगोसेशन करवाकर दो हजार रुपए में एक बंदर पकडऩे का ठेका संबंधित कम्पनी को देने के कार्य आदेश १५ मार्च 2018 को जारी कर दिए। कम्पनी ने तय शर्तों के अनुसार नगरपालिका क्षेत्र से करीब 175 बंदरों को पकड़ा तथा उनको पिंजरों में बंद करके सरिस्का के जंगल में छोड़ा गया, जिसके चलते कम्पनी को करीब साढ़े तीन लाख रुपए का भुगतान भी कर दिया गया।
पालिका प्रशासन ने जनता की पीड़ा को देखते हुए मार्च, 2018 में इन बंदरों को पकडऩे के लिए निविदाएं आमंत्रित की गई, जिसमें नेशनल रेडियो कम्पनी एवं इलेक्ट्रिकल्स सर्विसेज दौसा की न्यूनतम राशि 7500 रुपए निकली, जिस पर पालिका प्रशासन ने नेगोसेशन करवाकर दो हजार रुपए में एक बंदर पकडऩे का ठेका संबंधित कम्पनी को देने के कार्य आदेश १५ मार्च 2018 को जारी कर दिए। कम्पनी ने तय शर्तों के अनुसार नगरपालिका क्षेत्र से करीब 175 बंदरों को पकड़ा तथा उनको पिंजरों में बंद करके सरिस्का के जंगल में छोड़ा गया, जिसके चलते कम्पनी को करीब साढ़े तीन लाख रुपए का भुगतान भी कर दिया गया।
फिर बंदर कहां से आए?
बंदरों को सरिस्का छुड़वाने के बाद भी को बंदरों से निजात नहीं मिल पाई। सवाल ये है कि फिर ये आए कहां से। इसके पीछे माना जा सकता है कि या तो बंदरों को सरिस्का में नहीं छोड़कर शहर के आस-पास स्थानों पर छोड़ दिया गया हो। यह भी संभावना बनती है कि यदि कम्पनी ने सरिस्का में बंदर छुड़वा दिए होंगे, लेकिन दूसरी जगह के बंदर यहां किसी दूसरे व्यक्ति ने छुड़वा दिए होंगे, क्योंकि वर्तमान में भी बंदरों की संख्या 100-125 से कम नहीं है।
बंदरों को सरिस्का छुड़वाने के बाद भी को बंदरों से निजात नहीं मिल पाई। सवाल ये है कि फिर ये आए कहां से। इसके पीछे माना जा सकता है कि या तो बंदरों को सरिस्का में नहीं छोड़कर शहर के आस-पास स्थानों पर छोड़ दिया गया हो। यह भी संभावना बनती है कि यदि कम्पनी ने सरिस्का में बंदर छुड़वा दिए होंगे, लेकिन दूसरी जगह के बंदर यहां किसी दूसरे व्यक्ति ने छुड़वा दिए होंगे, क्योंकि वर्तमान में भी बंदरों की संख्या 100-125 से कम नहीं है।
छह माह में घटी दर
शुक्रवार को नगरपालिका कार्यालय में खोली गई निविदा में प्रति बंदर पकडऩे की न्यूनतम दर 799 रुपए एक ठेकेदार ने भरी है। दूसरे ने 2000 व तीसरे ठेकेदार ने 2500 रुपए भरी है। खास बात ये है कि पिछली बार एक बंदर पकडऩे की राशि 2000 रुपए थी। छह माह बाद ही एक अन्य ठेकेदार ने 799 रुपए भरी है। पालिका प्रशासन इस ठेकेदार से भी नेगोसेशन करने की तैयारी में है। एक पार्षद का तो यहां तक कहना है कि यूपी में तो 40 रुपए प्रति बंदर के हिसाब से पकड़े जाते हैं। यहां इतना महंगा क्यों।
शुक्रवार को नगरपालिका कार्यालय में खोली गई निविदा में प्रति बंदर पकडऩे की न्यूनतम दर 799 रुपए एक ठेकेदार ने भरी है। दूसरे ने 2000 व तीसरे ठेकेदार ने 2500 रुपए भरी है। खास बात ये है कि पिछली बार एक बंदर पकडऩे की राशि 2000 रुपए थी। छह माह बाद ही एक अन्य ठेकेदार ने 799 रुपए भरी है। पालिका प्रशासन इस ठेकेदार से भी नेगोसेशन करने की तैयारी में है। एक पार्षद का तो यहां तक कहना है कि यूपी में तो 40 रुपए प्रति बंदर के हिसाब से पकड़े जाते हैं। यहां इतना महंगा क्यों।
बनाई जाए मॉनिटरिंग कमेटी
जानकारों का कहना है कि पालिका प्रशासन को बंदर पकड़वाने से पूर्व वार्ड पार्षदों व कार्मिकों की टीम गठित करनी चाहिए, जिनकी देखरेख में कमेटी गठित की जाए, जिससे ये लोग कितने बंदर पकड़े जा रहे हैं और कहां छोड़े जा रहे हैं। इसकी मॉनिटरिंग कर सकें। इससे इनकी जनता के प्रति जवाबदेही भी रहेगी।
जानकारों का कहना है कि पालिका प्रशासन को बंदर पकड़वाने से पूर्व वार्ड पार्षदों व कार्मिकों की टीम गठित करनी चाहिए, जिनकी देखरेख में कमेटी गठित की जाए, जिससे ये लोग कितने बंदर पकड़े जा रहे हैं और कहां छोड़े जा रहे हैं। इसकी मॉनिटरिंग कर सकें। इससे इनकी जनता के प्रति जवाबदेही भी रहेगी।