चौमूं (जयपुर). 21वें कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत हर रोज गोल्ड मेडल जीत रहा है। अब तक जीते 26 गोल्ड सहित 66 मेडलों में से ज्यादातर मेडल महिला प्लेयर के नाम हैं। कभी शूङ्क्षटग, तो कभी बैडमिंटन में। कभी वेटलिफ्टिंग, तो कभी बॉक्सिंग में। हर गेम में महिला खिलाड़ी परचम लहरा रही हैं। इंटरनेशनल स्तर पर जहां देश की महिलाएं मेडल जीत रही हैं, वहीं चौमूं उपखंड में स्पोट्र्स में कॅरियर बनाने की इच्छा रखने वाली गल्र्स अपनों से ही ‘बोल्डÓ हो रही हैं। उपखंड की विभिन्न स्पोट्र्स एकेडमी में बॉयज के मुकाबले गल्र्स प्लेयर की संख्या नाममात्र की है। यहां फैमिली का सपोर्ट नहीं मिलने से ‘लाडोÓ खेल नहीं पा रही हैं। उपखंड के चौमूं शहरी क्षेत्र सहित ग्रामीण अंचलों में संचालित विभिन्न सरकारी-निजी स्पोट्र्स एकेडमी में बॉयज के मुकाबले गल्र्स प्लेयर की संख्या आधी से भी कम है। बैडमिंटन, क्रिकेट, कबड्डी जैसे कुछ गेम्स छोड़ दें, तो अन्य में दो से तीन गल्र्स प्लेयर ही प्रैक्टिस करती नजर आती हैं, जबकि यहां सभी बैचों में बॉयज की संख्या काफी है। कई एकेडमी में तो बॉयज के मुकाबले गल्र्स की संख्या एक चौथाई भी नहीं है।
कोच और खुद गल्र्स प्लेयर की मानें, तो फैमिली सपोर्ट नहीं मिलने से गल्र्स प्लेयर की संख्या कम होती जा रही है। उपखंड में वैसे तो कोई सरकारी स्पोट्र्स एकेडमी नहीं है। सरकारी विद्यालयों के बच्चे चौमूं और गोविंदगढ़ स्टेडियम या फिर अपने विद्यालय के ग्राउंड पर ही प्रैक्टिस कर लेते हैं। इसके अलावा निजी स्तर पर तीन बड़ी एकेडमी हैं। इनमें से दो चौमूं और एक जैतपुरा में संचालित है। यहां भी गल्र्स प्लेयर्स की संख्या कम है।
बॉयज के मुकाबले ज्यादा अच्छी है परफॉर्मेंस जयपुर रोड स्थित स्पोट्र्स एकेडमी के कोच और डायरेक्टर विजय ढिल्लन बताते हैं कि बॉयज के मुकाबले गल्र्स ज्यादा मेहनत और अनुशासन से खेलती हैं। कभी ऐसा नहीं लगता कि वे कहीं से कमजोर और गैरजिम्मेदार है। यही वजह है कि चौमूं से जिस गल्र्स का स्टेट और नेशनल के लिए चयन हुआ, उनमें से अधिकांश मेडल जीतकर ही आई हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे में चौमूं में यदि गल्र्स प्लेयर की संख्या बढ़े, तो परिणाम बहुत अच्छे होंगे। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मेडलों की संख्या बढ़ेगी। वहीं मंगलम सिटी स्थित स्पोट्र्स एकेडमी के डायरेक्टर बलवीर सिंह बताते हैं कि यहां जो गल्र्स प्लेयर प्रैक्टिस के लिए आती हैं, उनमें से अधिकांश ने बड़ी मुश्किल से अपने अभिभावकों को राजी किया है। इसलिए अभिभावकों को इस दिशा में सोच बदलनी होगी।
फैमिली का नहीं मिलता सपोर्टऐसा नहीं है कि कस्बे की गल्र्स खेलों में कॅरियर बनाने की इच्छा नहीं रखती, लेकिन उनकी इच्छा घर में ‘अनुमतिÓ आस में अधूरी रह जाती है। निजी एकेडमी में आने वाली गल्र्स ने बताया कि हमारी कई फ्रैंड्स हैं, जो यहां खेलने आना चाहती हैं, लेकिन उनके पेरेंट्स इजाजत नहीं देते। कई गल्र्स ने बताया कि जब परिजनों से खेलने की बात कही, तो उन्हें या तो डांटा गया या फिर ‘पढ़ाई में
ध्यान देने की नसीहत मिली। जैतपुरा एकेडमी के कोच और डायरेक्टर विनोद कुमार सेठी ने बताया कि कई गल्र्स से बात होती है, तो खेलना चाहती हैं, प्रैक्टिस करना चाहती हैं, लेकिन उन्हें अभिभावक सपोर्ट नहीं करते।