इस अवसर पर पुलिस अधीक्षक आशीष श्रीवास्तव ने अपने सम्बोधन में कहा कि दूसरे विश्वयुद्ध में उन्होंने भारत छोड़ने का फैसला किया था। वह जर्मन चले गए और वहाँ से फिर 1943 में सिंगापुर गए जहाँ उन्होंने इण्डियन नेशनल आर्मी की कमान संभाली। जापान और जर्मनी की सहायता से उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ने के लिए एक सेना का गठन किया जिसका नाम उन्होंने ‘आजाद हिन्द फौज’ रखा। कुछ ही दिनों में उनकी सेना ने भारत के अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह नागालैण्ड और मणिपुर में आजादी का झण्डा लहराया। उनकी बहादुरी और हिम्मत यादगार बन गयी। आज भी हम ऐसा विश्वास करते हैं कि भारत को आजादी आजाद हिन्द फौज के सिपाहियों की बलिदानों के बाद ही मिली है।