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यूपी में इस विभाग में हुआ करोड़ो का घोटाला, ऑडिट में हुआ खुलासा, अधिकारियों के उड़े होश

बिना टेण्डर और बिना बिल वाउचर के ही अपने चहेतों से करोड़ों के समान की खरीद की गई और करोड़ों रूपये ट्रांसफर कर दिए गए.

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श्रावस्ती. श्रावस्ती जिले में स्वास्थ्य विभाग में करोड़ो का घोटाला सामने आया है। जहाँ पर बिना टेण्डर और बिना बिल वाउचर के ही अपने चहेतों से करोड़ों के समान की खरीद की गई और करोड़ों रूपये ट्रांसफर कर दिए गए। मामले का खुलासा राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की ऑडिट में हुआ। जिसके बाद स्वास्थ्य निदेशक पंकज कुमार ने स्पष्टीकरण मांगा है। वहीं मामला संज्ञान में आने के बाद पूरे जिले में स्वास्थ्य विभाग के इस भ्रष्टाचार की चर्चायें जोरों पर है।

विभाग ने ऐसे किया घोटाला-

आपको बता दें कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत सरकार द्वारा जिले वासियों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करने के लिए करोड़ों रुपये आवंटित किये गये थे, जो विभागीय अधिकारियों की मिलीभगत से भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई। विभाग ने अपने चहेते फर्मों से बिना टेंडर के ही करोड़ों की खरीद की और पांच करोड़ का भुगतान भी कर दिया।
यही नहीं जिम्मेदार अधिकारियों ने अपने ही विभाग के दस अधिकारियों व कर्मचारियों के खातों में करीब 23 लाख रुपये ट्रांसफर करके बड़ा घोटाला किया है। जिसके बाद राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के निदेशक पंकज कुमार ने जिलाधिकारी तथा सीएमओ को पत्र लिख कर दोषियों पर कार्यवाही करने का निर्देश दिया था, मगर महीनों बीत जाने के बाद भी उक्त मामले में किसी भी दोषी पर कार्यवाही नहीं हुई। जिससे जिले के जिम्मेदार अधिकारियों पर भी सवालिया निशान लग रहे हैं।

दोहरा लाभ मिला-

जिन चहेते 13 फर्मों को करोड़ो भुगतान किए गए उनमें से कुछ जिले के ही हैं, तथा कुछ बाहरी जिले के। वहीं दूसरी तरफ जिन विभागीय अधिकारियों कर्मचारियों को 31 लाख 74 हजार 456 रुपये भुगतान किया गया है। विभाग के पास उस भुगतान का भी कोई बिल बाउचर मौजूद नहीं है। इतना हीं नहीं विभाग में घोटालों का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहाँ के कुशल डाक्टरों द्वारा सुषमा नामक महिला को 22 मई और 17 अक्टूबर तथा मुनीता को 28 जुलाई और 12 सितम्बर को चन्द महीने के भीतर ही दो बार डिलीवरी करा कर जेएसवाई का दोहरा लाभ दिया गया है।

वहीं इस मामले में सीएमओ जांच के बाद रिपोर्ट शासन को भेजने की बात कह रहे हैं। मगर राष्ट्रीय स्वास्थ्य निदेशक का लेटर मिले दो महीने हो गए और जांच अब भी जारी है। इस पर भी सवालिया निशान है। जबकि रिपोर्ट एक हफ्ते में मांगी गई थी।