जानकारी के मुताबिक केरल के कोझीकोड में निपाह वायरस से हुई 6 लोगों की मौत से एक बार फिर देश में निपाह का खतरा बड़ी तेजी के साथ बढ़ गया है। WHO की रिपोर्ट के मुताबिक निपाह वायरस का पहला मामला सन 1998 में मलेशिया में सामने आया था। जिसमें इस बीमारी का संक्रमण सुअरों को माना गया था। भारत में पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी शहर में 2001 में इस वायरस का प्रभाव दिखाई दिया। वहीं दूसरा मामला पश्चिम बंगाल के नादिया जिले में सन 2007 में एक बार फिर दिखाई दिया था। ये दोनों शहर बांग्लादेश बार्डर से सटे हुए हैं। वहीं तीसरा मामला केरल से सामने आने के बाद भारत के तमाम हिस्सों में इस खतरे से निपटने को लेकर हाई अलर्ट घोषित किया जा चुका है। उसके बावजूद बहराइच जिले के स्वास्थ विभाग के जिम्मेदारों की नींद इस खतरे को लेकर नहीं टूट रही है।
देश में निपाह वायरस के खतरे को लेकर सूबे के सभी अस्पतालों में सुरक्षा के मद्देनजर हाई अलर्ट जारी किया गया है। लोगों को इस खतरनाक वायरस से बचाव के लिये प्रचार प्रसार के माध्यम से जानकारी दी जा रही है लेकिन प्रदेश के सरकारी अस्पतालों का प्रबंधन सरकार की तरफ से जारी की गई गाइडलाइन के प्रति कितने संवेदनशील है। इसकी एक सच्ची हकीकत बहराइच जिले में बड़ी आसानी से देखी जा सकती है। जहां एक तरफ जानकारों का कहना है कि निपाह वायरस चमगादड़ व सु-अ-र जैसे गंदे जानवरों से फैलता है और लोगों को इन जानवरों के रहने वाले स्थानों से दूर रहना चाहिए। वहीं जिले के सरकारी अस्पताल जैसे CMO दफ्तर, टीबी अस्पताल, महिला अस्पताल जैसे तमाम संवेदनशील स्थलों पर निपाह बीमारी को फैलाने वाले वाहकों यानी सुवरों के झुंड को घूमते हुये खुली आंखों से साफ देखा जा सकता है। इतना ही नही प्रधानमंत्री के स्वच्छ भारत अभियान की हवा निकालते हुए जिला अस्पताल के अंदर कई जगह लगी भीषण गंदगी का अंबार साफ बता रहा है की जिम्मेदार कितने सजग हैं। अस्पताल में इलाज के लिये आने वाले मरीजों को बेहतर इलाज का दावा करने वाले जिला अस्पताल में जब खुलेआम प्रतिबंधित जानवरों का बसेरा होने के साथ ही गंदगी का अंबार लगा है।