कछार में नहीं मिल रहा पीएम आवास का लाभ
वन विभाग ग्रामीणों को नहीं दे रहा आवासीय पट्टे
कछार में नहीं मिल रहा पीएम आवास का लाभ
कटंगी। प्रधानमंत्री आवास योजना को शुरू हुए लगभग 4 साल पूरे होने जा रहे हैं। इस योजना के तहत वर्ष 2022 तक सभी को पक्का घर उपलब्ध कराना है। मगर, यहां जनपद पंचायत कटंगी अंतर्गत आने वाली ग्राम पंचायत जमुनिया के अनुसूचित जनजाति बाहुल्य वनग्राम कछार में ग्रामीणों को इस योजना का लाभ नहीं मिल रहा है। बीते 4 वर्षों में कछार के एक मात्र हितग्राही अनिल भलावी को ही इस योजना का लाभ मिला है। लेकिन इसका आवास भी आज तक अपूर्ण ही है। कछार की बड़ी आबादी आज भी कच्चे मिट्टी के मकानों में रहने को मजबूर है। दरअसल, वनग्राम होने की वजह से अन्य विभागों की तमाम सरकारी तमाम योजनाओं का संचालन होने पर वन विभाग अडंग़ा डाल देता है। ग्रामीणों के मुताबिक करीब 100 बरस से कछार में निवास करने के बाद भी विभाग ने आवासीय पट्टे प्रदान नहीं किया है। इस वजह से प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ भी नहीं मिल पा रहा है।
जानकारी अनुसार प्रकृति की गोद में बसे वनग्राम कछार में करीब 35 परिवार पीढिय़ों से गुजर बसर कर रहे हैं। इन परिवारों के पास आज भी मुलभूत सुविधाएं नहीं पहुंच पाई है। रोजगार का भारी अभाव, गांव के बच्चे आठवीं के बाद शिक्षा अर्जित नहीं कर पा रहा है। इसके अलावा भी और कई समस्याएं है। लेकिन इस वक्त सबसे प्रमुख समस्या आवास की है। चुकिं प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत गांव-गांव में पक्के मकानों का निर्माण हो रहा है। लेकिन कछार के वांशिदों इस योजना से वंचित है। ग्रामीण श्यामसिंह उइके, शिवकुमार उइके, बीरनबाई मड़ावी, संगीता मड़ावी, भानसिंह उइके, रामप्रसाद टेकाम, दुर्गाप्रसाद मड़ावी, लखन उइके, गीता मड़ावी, दिवान उइके, सुखचंद मड़ावी, यशवंत भलावी, शंभुलाल मड़ावी, शेरसिंह भलावी, राजकुमार मड़ावी, अमरसिंह उइके सहित अन्य ग्रामीणों ने आवास का लाभ दिलाने की मांग की है।
उल्लेखनीय है कि वनग्राम कछार को ना तो 2006 में बने वनाधिकार अधिनियम के तहत राजस्व गांव बनाया जा रहा है और ना ही अनुसूचित जनजाति तथा अन्य पारम्परिक वन निवासी अधिनियम, 2006 आदिवासियों और वन निवासियों के अधिकार को अमल में लाया जा रहा है। वन निवासी अधिनियम, 2006 का ऐतिहासिक कानून को जंगलों में रहने वाले अनुसूचित जातियों एवं अन्य पारंपरिक वन निवासियों को उनका वाजिब अधिकार दिलाने के लिए जो पीढिय़ों से जंगलों में रह रहे हैं। लेकिन जिन्हें वन अधिकारों तथा वन भूमि में आजीविका से वंचित रखा गया है, लागू किया गया है। इस अधिनियम में न केवल आजीविका के लिए स्व-कृषि या निवास के लिए व्यक्ति विशेष या समान पेशा के तहत वन भूमि में रहने के अधिकार का प्रावधान है, बल्कि यह वन संसाधनों पर उनका नियंत्रण सुनिश्चित करने के लिए कई अन्य अधिकार भी है। इनमें स्वामित्व का अधिकार, संग्रह तक पहुंच, लघु वन उपज का उपयोग व निपटान, निस्तार जैसे सामुदायिक अधिकार, आदिम जनजातीय समूहों तथा कृषि-पूर्व समुदायों के लिए निवास के अधिकार ऐसे किसी सामुदायिक वन संसाधन जिसकी वे ठोस उपयोग के लिए पारंपरिक रूप से सुरक्षा या संरक्षण करते रहे हैं, विरोध, पुनर्निर्माण या संरक्षण या प्रबंधन का अधिकार शामिल है।
इनका कहना है-
कछार में आवास योजना का लाभ किन कारणों से नहीं मिल रहा है। इस बारे में जानकारी ली जाएगी। शायद वनग्राम होने की वजह से आवासीय पट्टा नही होने के कारण लाभ नहीं मिल रहा होगा।
देवेश सराठे, मुख्य कार्यपालन अधिकारी