अंबेझरी नल-जल योजना ठप्प-
बालाघाटPublished: Apr 27, 2019 08:31:32 pm
गांव में पेयजल संकट
अंबेझरी नल-जल योजना ठप्प-
कटंगी। जनपद पंचायत कटंगी अंतर्गत आने वाली ग्राम पंचायत अंबेझरी के ग्रामीण इन दिनों पेयजल संकट का सामना कर रहे हैं। दरअसल, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग की नल-जल योजना के माध्यम से घरों तक पानी पहुंचाने की योजना यहां काफी समय पहले ही दम तोड़ चुकी है। हालाकि विभाग के दस्तावेजों में यह अब भी सुचारू रुप से ही संचालित हो रही है। ग्रामीणों ने बताया कि आधे घरों में पानी पहुंच पा रहा है, जबकि बड़ी संख्या में लोग हंैडपंप तथा कुओं पर ही आश्रित है, जिनका जलस्तर काफी कमजोर हो चुका है। अंबेझरी में लाखों रुपए की लागत से नल-जल योजना शुरू की गई थी। लेकिन देख-रेख के अभाव में इस योजना का एक साल भी ग्रामीणों को लाभ नहीं मिला। गर्मी में हालत ऐसी है कि सुबह से दोपहर तक दैनिक दिनचर्या के लिए पानी ढोना पड़ता है। ग्रामीणों ने प्रशासन का ध्यानाकर्षण कराते हुए इस समस्या से राहत दिलाने की मांग की है।
ग्रामीणों के मुताबिक करीब 6 साल पहले गांव में नल-जल योजना का काम पूर्ण हुआ। घर-घर में पानी पहुंचाने के लिए कनेक्शन लगाए गए तथा जगह-जगह टंकी का निर्माण किया गया। इसके बाद विभाग ने पानी भी चालू कर दिया। करीब एक साल तक सभी ग्रामीणों के घर पानी भी पहुंचा लेकिन देख-रेख के अभाव में योजना ने साल भर में ही दम तोड़ दिया। पंचायत ने अब कुछ मरम्मत कराई है। जिसके बाद केवल आधे गांव में ही पानी पहुंच रहा है। आधे गांव में पेयजल पर ग्रहण लगा हुआ है। इधर, योजना के तहत निर्माण की गई पानी टंकी और नल टूट-फूट चुके हैं। वहीं पंचायत ने इस मामले में सफाई देते हुए बताया की ग्रामीणों के द्वारा प्रतिमाह पेयजल का शुल्क नहीं अदा किया जा रहा है, जिस वजह से योजना के संचालन में परेशानी हो रही है।
आग उगलते सूरज की तपिश के कारण बीते 1 महीने में तकरीबन दो दर्जन से भी अधिक गांवों में जलस्तर तेजी से गिर गया है। राजीव सागर बांध के नजदीकी गांवों में बहुत बुरा हाल है। इससे ही सटा अंबेझरी गांव भी है, यहां भी जलस्तर धीरे-धीरे गिरते जा रहा है। जलस्तर गिरने की वजह से पठार अंचल की करीब 15 हजार की आबादी के सामने जल संकट की स्थिति पैदा हो गई है। गर्मी और चढ़ते पारे के कारण जलापूर्ति करने वाले जलस्रोतों का पानी तेजी से सूख रहा है। इस साल कम बारिश होने से जलस्रोत रिचार्ज नहीं हो पाए। बढ़ती गर्मी के साथ ही लगातार इन स्रोतों का पानी कम होता गया।