जैविक, प्राकृतिक खेती में लागत कम मुनाफा अधिक
बालाघाटPublished: Oct 16, 2022 09:12:23 pm
जिले में 4 हजार से अधिक किसान कर रहे हैं चिन्नौर की जैविक खेती
जिले में 70 वर्ष से अधिक समय से हो रही है चिन्नौर की खेती


जैविक, प्राकृतिक खेती में लागत कम मुनाफा अधिक
बालाघाट. जैविक, प्राकृतिक खेती में लागत कम मुनाफा अधिक है। इतना ही नहीं जैविक, प्राकृतिक खेती स्वास्थ्य के दृष्टि से भी अच्छी मानी जाती है। जबकि रासायनिक उर्वरकों का उपयोग कर फसल का उत्पादन लेने से मानव स्वास्थ्य पर विपरित प्रभाव पड़ रहा है। जिले में मौजूदा समय में अलग-अलग विकासखंड के ग्रामों के 4 हजार से अधिक किसान जैविक पद्धति से चिन्नौर की खेती कर रहे हैं। एक जिला एक उत्पाद के तहत चिन्नौर को जीआई टेग भी मिला हुआ है। जिसके चलते चिन्नौर की मांग राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अधिक है।
जानकारी के अनुसार चिन्नौर का उत्पादन जैविक या प्राकृतिक खेती के रुप में ही किया जा सकता है। रासायनिक खाद का उपयोग करने पर न केवल चिन्नौर की गुणवत्ता प्रभावित होती है। बल्कि फसल की रंगत, चमक, स्वाद भी बदल जाता है। उत्पादन कम होने के चलते जिले में चिन्नौर की फसल का दायरा कम हो गया था। लेकिन प्रशासन के प्रयास, फार्मर फस्ट योजना के तहत चिन्नौर की प्रजाति को जीवित रखा गया। मौजूदा समय में जिले में अलग-अलग विकासखंडों में चार हजार से अधिक किसान चिन्नौर की खेती कर रहे हैं। जिले में पूर्व में वारासिवनी क्षेत्र के कायदी, कोस्ते, लेंडेझरी सहित अन्य गांवों में ही इसकी खेती होती थी। जीआई का प्रमाण पत्र मिल जाने के बाद से बालाघाट के चिन्नौर की पहचान राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होने लगी है। वर्तमान समय में बाहर के बाजार में इसकी बहुत अधिक मांग है जिसके कारण इसका दाम अन्य धान की तुलना में बहुत ज्यादा रहता हैं।
जिले में चिन्नौर धान 5000 से 6000 रुपए प्रति क्विंटल बिक रहा है। जिसका सीधा फायदा किसानों को हो रहा है। खरीफ वर्ष 2021 में किसानों को चिन्नौर का प्रति एकड़ 8-10 क्विंटल का औसत उत्पादन मिला था। जिससे किसानों को अधिक फायदा हुआ था। प्राकृतिक तरीके से उगाए जा रहे चिन्नौर की उत्पादन में लागत कम है। वर्तमान में व्यापारियों के अलावा केंद्र पोषित योजना द्वारा गठित वारासिवनी और लालबर्रा विकासखंड के एफपीओ बड़े स्तर पर चिन्नौर धान की खरीदी कर रहे है।
जैविक खेती के लिए मिशाल बने जियालाल
बालाघाट जिले में वैसे तो धान की परंपरागत खेती की जाती है। लेकिन किरनापुर विखं के ग्राम बगड़मारा निवासी किसान जियालाल राहंगडाले जैविक खेती को बढ़ावा दे रहे हैं। वे जैविक खेती के लिए मिशाल बने हुए है। जैविक खाद व कीटनाशक के भरोसे ही फसलों का उत्पादन ले रहे हैं। जैविक खेती के लिए वे उड़ीसा, महाराष्ट्र, मप्र, गुजरात सहित अन्य राज्यों में सम्मानित भी हो चुके हैं। जियालाल ने बताया कि पूर्व में उसने गर्मियों में बैगन, टमाटर, मिर्च, लौकी, ककड़ी, बरबटी की फसल लगाता था। जिससे उसे अच्छी आवक होती थी। जियालाल ने बताया कि उसके द्वारा जैविक खाद के रूप में केंचुआ खाद, बरगद के पेड़ के नीचे की मिट्टी, किसी भी दाल का बेसन, गौमूत्र, गोबर का उपयोग जैविक खाद के रूप में करते है। कीटनाशक के रूप में बेशरम, आकड़े, सीताफल, धतूरा, बेल की पत्ती, लहसून को गौमूत्र में मिलाकर 10 से 15 दिन तक सड़ाने बाद स्प्रे किया जाता है। उन्होंने बताया कि कम समय में अधिक मुनाफा कमाने के लिए रासायनिक खाद और कीटनाशकों के ज्यादा प्रयोग से खेती को नुकसान हो रहा है। मिट्टी की उर्वरा शक्ति कम हो गई है और खेतों में पैदा होने वाले अनाज में जहर घुलता जा रहा है। धीमे जहर के रूप में यही अनाज आज जनता खा रही है। लोग असमय जानलेवा बीमारियों की चपेट में आ रहे हंै। रासायनिक उर्वरक और दवाओं की बढ़ती कीमतों ने भी खेती को घाटे का सौदा बना दिया है।