बड़े तालाब का पानी हुआ दूषित, मर रही मछलियां
लंबे समय से तालाब का गहरीकरण की उठ रही मांग-

कटंगी। शहर के बड़े तालाब का पानी अब इतना दूषित हो गया है कि तालाब में मौजूद मछलियां मरने लगी है। वहीं इस तालाब को खाली करने के लिए मछुआरे लगातार तालाब से पानी बहा रहे हैं। मछुआरों का कहना है कि प्रशासन शीघ्र ही इस तालाब का गहरीकरण और सौंदर्यीकरण करवाएं। दरअसल, राज्य सरकार ने इस तालाब का जीर्णोद्वार करने के लिए 1 करोड़ रुपए की राशि स्वीकृत कर रखी है। लेकिन नगर परिषद तालाब के जीर्णोद्वार के लिए जानबुझकर डीपीआर तैयार नहीं कर रही है। चुकिं डीपीआर तैयार करने के पहले नगर परिषद को तालाब का अतिक्रमण हटाना होगा और तालाब की सीमा पर रसूखदारों ने अतिक्रमण कर रखा है तथा इन रसूखदारों के संबंध राजनैतिक दलों के नेताओं से है समय आने पर यह रसूखदार अधिकारियों को भी अपने सामने घुटने टेकने पर मजबूर कर देते है जैसा कि पूर्व में देखा भी गया है। बताना जरूरी है कि करीब 6-7 साल पहले तालाब का अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई शुरू हुई थी। लेकिन अचानक से यह कार्रवाई प्रशासन ने बंद कर दी। प्रशासन ने कार्रवाई क्यों बंद की और अतिक्रमण क्यों नहीं हटाया गया, यह बात प्रशासन ने कभी सार्वजनिक तो नहीं की। लेकिन जनचर्चा में कई तरह की अटकलें लगाई गई। यहां तक सुनने में आया कि रसूखदारों ने अफसरों को ही रिश्वत देकर खरीद लिया है और तालाब वाली जमीन के सरकारी रिकार्ड में छेड़छाड़ की गई है।
बड़े तालाब पर करीब 2 सौ से मछुआरे आश्रित है। यह सभी इस तालाब में मछली पालन तथा सिंघाड़ा उत्पादन कर अपना परिवार चलाते हैं। मगर, बीते कुछ सालों से मछुआरे लगातार घाटे में चल रहे हैं। मछुआरों की माने तो तालाब में गाद होने की वजह से जल संग्रहण क्षमता कम हो गई है। जिसका असर मत्स्य पालन और सिंघाड़ा उत्पादन पर पड़ रहा है। गर्मी का मौसम आते-आते पानी कम हो जाता है और दूषित पानी होने की वजह से मछलियां मर रही है। वहीं सिंघाड़े का उत्पादन भी नहीं हो पा रहा है। बहरहाल, यह मछुआरे की समस्या एक अलग बात है। लेकिन इस तालाब की बदहाली का असर शहर के भूमिगत जलस्तर पर भी पड़ रहा है। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता। नगर परिषद के जिम्मेदार अफसर तालाब के गहरीकरण पर सवाल पूछे जाने पर कहते हंै कि तालाब का अतिक्रमण मुसीबत बना हुआ है। फिलहाल जिम्मेदार अफसर के इस जबाव से ऐसा लगता है वह भी रसूखदारों के सामने हार मान कर बैठे हैं। मगर, इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि शासन-प्रशासन के पास असीम प्रशासनिक ताकत है, अगर दृढ़ इच्छाशक्ति से प्रशासन अतिक्रमण हटाकर तालाब का गहरीकरण करने का प्रयास करें तो मुश्किल कुछ भी नहीं है।
इस तालाब पर आश्रित मछुआरों ने बताया कि वह पुन: तालाब का गहरीकरण कराने की मांग को लेकर विधि अनुसार अनुविभागीय अधिकारी राजस्व एवं कलेक्टर को ज्ञापन सौंपेगें तथा अगर यहां न्याय नहीं मिलता और तालाब का जीर्णोद्वार नहीं कराया जाता है तो वह सभी अपनी जीविका का साधन बचाने के लिए एनजीटी और न्यायालय की शरण लेंगे।
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