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बालाघाट

नक्सल प्रभावित गांवों की नहीं बदल पा रही है तस्वीर

विकास के नाम पर हो रहे करोड़ों रुपए खर्च, मुलभूत सुविधाओं से जूझ रहे बैगा आदिवासी, दक्षिण बैहर के आदिवासी अंचल, नक्सल प्रभावित ग्रामों का मामला

बालाघाटNov 14, 2019 / 08:16 pm

Bhaneshwar sakure

नक्सल प्रभावित गांवों की नहीं बदल पा रही है तस्वीर

नक्सल प्रभावित गांवों की नहीं बदल पा रही है तस्वीर

बालाघाट. न पक्की सड़क न नाले में पुल। कहीं पुल भी बना है तो वो भी अब जर्जर होने लगा है। मार्ग भी ऐसे कि पूरी तरह से पत्थरों में तब्दील। आलम यह है कि बारिश के दिनों में ग्रामीण अपने गांवों में कैद होकर रह जाते है। जब तक बारिश नहीं थमती और नदी-नालों का पानी कम नहीं होता, तब तक ग्रामीण गांवों से बाहर निकल पाना मुश्किल हो जाता है। यह समस्या किसी एक दिन की नहीं बल्कि प्रतिवर्ष की बनी हुई है। बावजूद इसके आज तक समस्या का निराकरण नहीं हो पा रहा है। विडम्बना यह है कि सरकार ऐसे नक्सल प्रभावित ग्रामों के विकास के लिए करोड़ों रुपए खर्च कर रही है। लेकिन समस्या जस की तस बनी हुई है। मामला जिले के दक्षिण बैहर के अंतर्गत आने वाले आदिवासी अंचल, नक्सल प्रभावित ग्रामों का है।
इधर, शासन-प्रशासन द्वारा विकास कार्यों की बात तो कही जाती है। पैसा भी खर्च किया जाता है। लेकिन वास्तविकता में ये निर्माण कार्य कुछ दिन में ही अपनी गुणवत्ता की कहानी बयां कर देते है। आदिवासी नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में इसका नजारा आसानी से देखा जा सकता है। वहीं दूसरी ओर ग्रामीणों की शिकायत के बाद भी किसी ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। जिसके कारण समस्या जस की तस बनी हुई है।
जानकारी के अनुसार जिले के दक्षिण बैहर के अंतर्गत आने वाले ग्राम पाला गोंदी, बम्हनी, कोरका, बोंदारी, सोनगुड्डा, डाबरी, पित्तकोना, दड़कसा, मोहनपुर, मुरुमनाला, बिठली, लांजी क्षेत्र के नक्सल प्रभावित ग्राम सीतापाला, टाटीहल, कट्टीपार सहित किरनापुर व अन्य क्षेत्रों के आदिवासी बैगा आज भी मुलभूत सुविधाओं को तरस रहे है। इनमें से अधिकांश गांवों में पक्की सड़कें तो है, लेकिन वो जर्जर हो चुकी है। कहीं-कहीं तो सड़क के नाम पर केवल गिट्टी से बनी कच्ची सड़क ही नजर आती है, जो आवागमन के लायक नहीं है। कट्टीपार गांव के पास नाला है। यहां बारिश के दिनों में पानी होने पर ग्रामीण न तो गांव से बाहर जा पाते हैं और न ही कोई यहां पहुंच पाता है। यह समस्या काफी वर्षों से बनी हुई है। यहां के ग्रामीणों ने इस मामले की शिकायत भी की। लेकिन अब तक इसका समाधान नहीं हो पाया। ग्रामीण धनीराम कुंभरे, उमेद सिंग, सुंदरल लाल वरकड़े, उत्तम मर्सकोले, शिवलाल धुर्वे, प्रेमलाल पंद्रे, इंदल सिंह उइके, अग्गूलाल मरकाम सहित अन्य ग्रामीणों ने बताया कि कट्टीपार पहुंचने के लिए जंगलों से होकर गुजरना पड़ता है। यह रास्ता पत्थरों में तब्दील हो चुका है। जिसके कारण आवागमन में काफी परेशानी होती है। खासतौर पर बारिश के दिनों में यह परेशानी काफी अधिक बढ़ जाती है।

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