कटंगी। क्षेत्र की दुसरी सबसे बड़ी मध्यम सिंचाई परियोजना जमुनिया जलाशय भी इन दिनों सूखे की चपेट का सामना कर रहा है। इस जलाशय का वर्षो से गहरीकरण नही हुआ है। इस कारण जलाशय में मिट्टी के ऊंचे टिले बन गए है। पर्याप्त बारिश होने के बाद भी जलाशय में जल संग्रहण नहीं हो पा रहा है। हालाकिं कुछ सालों से अल्पवर्षा की वजह से जल संग्रहण में कुछ कमी आई है, लेकिन जानकारों का कहना है कि जंगल में होने वाली बारिश से जलाशय में जल संग्रहण किया जा सकता है। लेकिन सबसे पहले जलाशय का गहरीकरण होना जरूरी है। बहरहाल, मौजूदा वक्त में जलाशय की स्थिती काफी भयावह है। तेज धूप से प्रतिदिन जलस्तर तेजी से घिर रहा है। अगर इसी तरह गर्मी का कहर जारी रहा तो आने वाले 15 दिनों में जलाशय में नाम मात्र का पानी रह जाएगा। जिससे वन्यप्राणियों एवं पालतु मवेशियों के सामने जलसंकट खड़ा होगा। गौरतलब हो कि जमुनिया जलाशय पर गांव के पालतु मवेशियों के साथ ही वन्यप्राणी पेयजल के लिए आश्रित है। बहरहाल, अभी जलाशय की मुख्य गेट के सामने बोरी बंधान करके जलसंग्रहण किया गया है। 97 साल पुराना जमुनिया जलाशय (बांध) में जलस्तर डेड लेवल के नीचे पहुंच चुका है। वहीं तेजी से गिरते जलस्तर ने मछुआरों और किसानों की नींद उड़ा दी है। हालाकिं अभी भी विभाग चैन की नींद सोया हुआ है। ग्रामीणों ने बताया कि करीब एक दशक से तालाब का गहरीकरण नहीं हुआ है। इस कारण जलाशय की मिट्टी जमा हो चुकी है। जलसंग्रहण क्षमता काफी कम हुई है। विभाग एवं जनप्रतिनिधियों का कई बार ध्यानाकर्षण कराया गया, लेकिन कभी किसी ने गंभीरता नहीं लिया। जिसके चलते 18 सौ एकड़ में सिंचाई के लिए बनाया गया यह जलाशय अब खुद प्यासा नजर आ रहा है। साल 1921 में बना जमुनिया बांध आज से ठीक 17 साल पहले वर्ष 2002 में क्षतिग्रस्त होने के बाद फूटा था। उस वक्त दलीय राजनीति के दलदल में फसने के कारण इस बांध की मरम्मत नहीं हो पाई थी और एक रात यह बांध तड़के 4-5 बजे फूट गया था, जिससे बड़ी त्रासदी हुई थी। करीब 7 गांव के कई परिवार बेघर हो गए थे। हालाकिं इस घटना के बाद बांध तो फिर से बनकर तैयार हुआ, लेकिन अब करीब एक दशक से बांध की उपेक्षा की जा रही है। बता दें कि जब सर्वत्र पानी का घोर अभाव होता है, ऐसे में यह बांध क्षेत्र के किसानों, मछुआरों, पालतु मवेशियों के लिए संजीवनी साबित होता है। मगर, बीते कुछ वर्षों से यह तालाब सर्दी के मौसम में ही सूखते नजर आ रहा है। इस कारण मछली पालन कम होते जा रहा है तथा आसपास के ग्रामीण अंचलों के जलस्तर पर भी इसका व्यापक असर पड़ रहा है।