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आदिवासी वनग्राम कछार में केवल 1 परिवार को मिला पीएम आवास

locationबालाघाटPublished: Dec 11, 2019 09:08:09 pm

Submitted by:

mukesh yadav

50 परिवार कच्चे पुराने मकान में रहने को मजबूर, योजना से दूर

आदिवासी वनग्राम कछार में केवल 1 परिवार को मिला पीएम आवास

आदिवासी वनग्राम कछार में केवल 1 परिवार को मिला पीएम आवास

कटंगी। जनपद कटंगी के अंतर्गत आने वाली ग्राम पंचायत जमुनिया के वनग्राम कछार में प्रधानमंत्री आवास योजना ने दम तोड़ दिया है। 25 जनवरी 2015 से शुरू इस योजना का कछार के केवल एक मात्र ग्रामीण हितग्राही जशवंता अदनसिंह को ही लाभ मिल पाया है। बाकि के शेष आदिवासी परिवार आज भी कच्चे झोपड़ीनुमा मकानों में रहने को मजबूर है। ताजुब की बात तो यह है जनप्रतिनिधि से लेकर प्रशासनिक नौकरशाह भी कभी इस गांव में झांककर नहीं देखते। इस कारण आजादी के 6 दशक बाद भी कछार मुख्यधारा से नहीं जुड़ पाया है। वहीं केन्द्र सरकार ने जिस मंशा से आवास योजना को शुरू किया था, वह कछार के ग्रामीणों से कोसों दूर है। यहां के ग्रामीण कई बार आवास योजना का लाभ दिलाने की मांग करते रहे हैं। मगर, इसके बावजूद ग्रामीणों की सुनवाई नहीं हो रही है।
वन विभाग डालता है बाधाएं-
जनपद के अधिकारियों एवं ग्राम पंचायत प्रतिनिधियों की माने तो वन ग्राम होने की वजह से कछार में सरकार की योजनाओं का सहीं तरीके से क्रियान्वयन नहीं हो पाता। अगर, ग्राम व जनपद पंचायत किसी तरह का निर्माण कराना भी चाहे तो वन विभाग अडंग़े डाल देता है। जबकि वन विभाग ना तो कछार में किसी तरह का विकास करा रहा है और ना ही करने दे रहा है। इधर, वन विभाग बीते कई सालों से विकास कार्य को लेकर फंड के अभाव का ही रट लगाए बैठा है। बहरहाल, इन विभागों की लड़ाई में कछार के ग्रामीणों को उनके मौलिक अधिकार नहीं मिल पा रहे हैं। ग्रामीण बताते हंै कि हर बार चुनाव में नेता उनसे बड़े-बड़े वादे करते है, लेकिन चुनाव जीतने के बाद कोई भी उनकी सुध लेने के लिए नहीं आता।
सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं-
सरकार गांवों तथा ग्रामीणों के विकास के लिए सैकड़ों योजनाएं चला रही है। मगर, कछार के ग्रामीणों को इन योजनाओं का बराबर लाभ नहीं मिल पा रहा है। सरकार की कई योजनाओं की जानकारी तो ग्रामीणों तक पहुंच ही नहीं पा रही है। दरअसल, इसका मुख्य कारण कछार का ग्राम पंचायत से करीब 35 किमी. तथा जनपद से 28 किमी. दूर जंगल के बीच में स्थापित होना है। बता दें कि एक साल पूर्व सीईओ ने सरपंच तथा सचिव को सप्ताह में एक दिन कछार जाने के लिए निर्देशित किया था। शुरूआत में कुछ दिनों तक तो यह सिलसिला चला, लेकिन अब हालत फिर से जस के तस है।
कच्ची शराब पर आश्रित-
वन ग्राम कछार के ग्रामीणों के पास रोजगार के भी साधन नहीं है, इस कारण यहां के लोग जंगल में ही खेती किसानी कर अपना व परिवार का भरण-पोषण करते है। वहीं अन्य साधन जुटाने के लिए लोग कच्ची शराब का व्यापार करते है। यहां कई बार आबाकारी तथा पुलिस छापामार कार्रवाई करती है। लेकिन ग्रामीण इस अवैध कारोबार को नहीं छोड़ रहे हैं। ग्रामीण कहते है कि अगर रोजगार मिल जाए तो वह इस काम को छोड़ देंगेे।
इनका कहना है-
आपके द्वारा वनग्राम कछार की समस्याएं संज्ञान में लाई गई है।इस संबंध में विस्तृत जानकारी ली जाएगी।
रजनी सिंह, जिला पंचायत सीईओ
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