नदी-नालों के पानी से बुझा रहे अपनी प्यास
बालाघाटPublished: Oct 19, 2021 10:52:33 pm
दूर से ढोकर ला रहे पानी, जिले के आदिवासी अंचलों में पेयजल की बनी है समस्या
नदी-नालों के पानी से बुझा रहे अपनी प्यास
बालाघाट. सिर पर पानी की घघरी और दूर से ढोकर ले जाना। उपर से साथ में कपड़े में बदन पर लटका हुआ बच्चा। यह तस्वीर जिले के आदिवासी अंचल चुकटोला, कोरका की है। पानी के लिए ऐसी जद्दोजहद आदिवासी अंचलों में अब आम हो चुकी है। पानी भी एक ही घघरी नहीं बल्कि पूरे परिवार और निस्तार के लिए रोजाना लेकर जाना। यह किसी एक दिन की स्थिति नहीं बल्कि रोज की स्थिति बनी हुई है। पानी के लिए ग्रामीणों का यह संघर्ष काफी वर्षों से बना हुआ है। बावजूद इसके न तो इस समस्या का समाधान हुआ है और न ही प्रशासन की ओर से कोई प्रयास। आलम यह है कि अब आदिवासियों के लिए यह उनकी दिनचर्या बन गई है। पानी के लिए आदिवासियों की जद्दोजहद जिले के आदिवासी अंचल के चुकटोला, कोरका, जगला, बोंदारी सहित अन्य गांवों में देखी जा सकती है।
जानकारी के अनुसार जिले के आदिवासी अंचलों में पेयजल की समस्या बनी हुई है। अनेक ऐसे गांव हैं, जहां पर पेयजल की आपूर्ति के लिए शासन ने कोई योजनाएं ही नहीं क्रियान्वित की है। जिसके कारण आदिवासी अंचलों में ग्रामीणों को पेयजल के लिए प्राकृतिक स्रोत या फिर अन्य साधनों में निर्भर रहना पड़ता है। इधर, विभाग से मिली जानकारी के अनुसार जिले के 607 ग्रामों में नल-जल योजना से पेयजल प्रदाय किया जा रहा है और 640 ग्राम नल-जल योजना से विहीन है। इन 640 ग्रामों में से 121 ग्रामों की योजना पर कार्य चल रहा है और 519 ग्रामों की नल-जल योजना के डीपीआर 30 अक्टूबर तक भोपाल स्वीकृति के लिए भेज दिए जाएंगे। 15 ठेकेदारों द्वारा जिले में निर्माणाधीन 117 नल-जल योजनाओं के कार्य समय सीमा से बाहर हो चुके है।
नदी-नालों के पानी से बुझाते हैं प्यास
जिले के आदिवासी अंचलों में ग्रामीण अपनी प्यास नदी-नालों के पानी से बुझाते हैं। विडम्बना यह है कि ग्रामीणों को यह पानी भी दूर से ढोकर लाना पड़ता है। नदी-नालों का गंदा पानी भी आदिवासियों के लिए अमृत के समान है। दरअसल, आदिवासी अंचलों में पेयजल की समस्या काफी वर्षों से बनी हुई है। बावजूद इसके लिए क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों और प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा इसे गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है। जिसके कारण समस्या जस की तस बनी हुई है। ऐसा नहीं कि ग्रामीणों ने पेयजल की समस्या को लेकर जनप्रतिनिधियों या फिर प्रशासनिक अधिकारियों के दरवाजे नहीं खटखटाएं हैं। दरवाजे में दस्तक देने के बाद भी पानी की समस्या बरकरार है।
गांवों में हैंडपंप में भी गंदगी का आलम
इधर, जिन गांवों में हैंडपंप हैं वहां पानी की समस्या तो कम ही होती है। लेकिन यहां गंदगी का आलम बना हुआ रहता है। पत्रिका की पड़ताल में ऐसे अनेक गांवों की समस्या सामने आई हैं, जहांं हैंडपंप के पास गंदगी का आलम बना हुआ है। ग्रामीणों का कहना है कि गांव में पानी की समस्या है जिसके कारण हैंडपंप के सहारे ही सब कुछ करना पड़ता है।
इनका कहना है
गांव में पानी की समस्या बनी हुई है। जिसके कारण नदी-नालों से पानी लाना पड़ता है। यह समस्या काफी वर्षों से बनी हुई है। लेकिन इसका समाधान नहीं हो रहा है। कोई भी सुनवाई नहीं करता है।
-समोतिन बाई, आदिवासी महिला
पानी की समस्या के लिए अनेक बार जनप्रतिनिधियों, अधिकारियों को आवेदन दे चुके हैं, लेकिन समस्या का अभी तक समाधान नहीं हो पाया है। योजनाओं का भी संचालन नहीं होता है।
-सुनील सैय्याम, आदिवासी युवक