16 हजार हेक्टेयर में लगी है रबी धान की फसल
बालाघाटPublished: Jun 01, 2019 04:47:46 pm
गन्ना 5 हजार हेक्टेयर और 4 हजार हेक्टेयर में मूंग19 नदियों में जगह-जगह किसानों ने कुएं खोदकर मोटर पंप से निकाल रहे पानी
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बालाघाट/खैरलांजी। जिले की छोटी बड़ी जीवन दायिनी 19 नदियों में मई माह के अंतिम में पानी की जगह रेत दिखाई दे रही है। भीषण गर्मी से नदी पूरी तरह से सूखने की वजह से एक माह पूर्व पठार क्षेत्र की बावनथड़ी नदी और कुछ दिन पूर्व बालाघाट की वैनगंगा नदी में पानी छोड़ा गया। लेकिन यह पानी भी कोई काम का नही है। क्योंकि इतने से पानी में नदी किनारे बसे दर्जन भर से अधिक गांवों की कुएं, हैंडपंप रिचार्ज नहीं होने से लोगों की प्यास नहीं बुझ पा रही है। अधिकांश ग्रामों में पेयजल का विकट संकट है। इस साल 16 हजार हेक्टेयर में रबी धान की फसल लगी हुई है और धान की फसल को बहुत ज्यादा पानी की आवश्यकता होने से किसान नदी में अस्थाई कुएं बनाकर मोटर पंप से पानी निकालने में लगे है। इधर, पेयजल की त्राहि-त्राहि मची हुई। बावजूद इसके गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है।
नदी किनारे इन गांवों में पेयजल की आफत
बता दें कि हर साल नदी किनारे के ग्रामों में किसान रबी धान की फसल उगाते है। इस फसल में सबसे ज्यादा पानी की आवश्यकता होती है। इस बार जिले पूरे जिले में 16 हजार हेक्टेयर में रबी धान, 5 हजार हेक्टेयर में गन्ना की फसल और 4 हजार हेक्टेयर में मूंग की फसल लगी है। इनमें से सबसे ज्यादा पानी रबी धान की फसल में सिंचाई करने लगता है। इसके लिए किसान नदी में कुआं बनाकर पानी निकाल रहे है। जिससे नदी किनारे के गांवों में पेयजल संकट पूरी तरह से गहरा गया है। पेयजल की आफत ग्राम अतरी, आरंभा, गुनई, चुटिया, बकोड़ी, घोटी, रामपायली, सोनझरा, मोवाड़, खैरी, टेमनी, भौरगढ़, कुम्हली समेत अन्य ग्राम शामिल है। फिर भी यहां के लोग रबी की धान फसल ले रहे हंै। इसके लिए चाहिए की भीषण गर्मी के दिनों में कम पानी वाली फसल ली जाए। धान की फसल में हमेशा 9 इंच तक पानी रहना जरूरी रहता है तभी यह फसल तैयार हो पाती है। जल संकट के हालत को देखते हुए शासन प्रशासन को इसे गंभीरता से लेने की जरूरत है।
नदियों में रेत खनन ज्यादा
पूर्व जिला पंचायत सदस्य हेमंत लिल्हारे ने बताया कि चंदन नदी, वैनगंगा नदी, बावनथड़ी नदी सहित अन्य नदियों में रेत खनन अधिक हुई है। इस कारण नदियों में पानी की जगह हर साल अप्रैल माह से ही रेत और उसमें गढ्डे ही दिखाई पड़ते है। उन्होंने बताया कि 10 से 15 सालों पूर्व इस तरह के हालात कभी निर्मित नहीं होते थे। इसलिए पेयजल संकट को प्रशासन द्वारा गंभीरता से लेने की जरूरत है। इतना ही नहीं नदियों को बचाने भी बचाने सामने आए। ताकिइस तरह की समस्या आने से बच सके।