बालाघाट

दम तोड़ रहे शहर के तालाब, मिट रहा अस्तित्व

शहर की सीमा में सिंघाड़ा तालाब (बड़ा तालाब), मुंदीवाड़ा तालाब (छोटा तालाब) और अर्जुननाला का देवी तालाब है।

बालाघाटApr 01, 2019 / 09:10 pm

mukesh yadav

दम तोड़ रहे शहर के तालाब, मिट रहा अस्तित्व

कटंगी। शहर की सीमा में सिंघाड़ा तालाब (बड़ा तालाब), मुंदीवाड़ा तालाब (छोटा तालाब) और अर्जुननाला का देवी तालाब है। यह तीनों ही तालाब इन दिनों अपनी बदहाली पर आंसु बहा रहे हैं। पिछली सरकार ने नगर के इन तालाबों के सौन्दर्यीकरण के लिए 2 करोड़ रुपए की राशि भी स्वीकृत की है। जिसमें 1 करोड़ रुपए की राशि की प्रशासनिक स्वीकृति भी प्रदान हो चुकी है। मगर, नगर परिषद इन तीनों ही बदहाल तालाबों को आधुनिक युग के हिसाब से हाईटेक नहीं कर पा रही है और ना ही पारंपरिक तालाबों को सहेजने के लिए किसी प्रकार की कोई कार्ययोजना तैयार कर रही है। बताना जरुरी होगा कि आज शहर में पानी के संकट का एक मूल कारण तालाबों की बेपरवाही ही है। बीते कई सालों से इन तालाबों का गहरीकरण एवं सौन्दर्यीकरण नहीं हुआ है। इस कारण तालाबों में मनमानी गंदगी भरी पड़ी है। मुंदीवाड़ा तालाब पर कुछ साल पहले मोटी रकम सौन्दर्यीकरण के नाम पर खर्च भी की गई, लेकिन इस तालाब की हकीकत बंया करती है कि सौन्दर्यीकरण कम और भष्ट्राचार ज्यादा हुआ है।
नगर के इन तालाबों की बर्बाद की एक वजह इनमें फैला अतिक्रमण भी है। जिसे नेता वोट बैक की राजनीति के कारण हटाने से हमेशा ही परहेज करते आए है। राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण के आदेश के बाद भी कभी इन तालाबों में फैले अतिक्रमण को अफसरों ने हटाने की हिम्मत नहीं दिखाई। नतीजा यह हुआ कि तालाब की जमीन पर खेत और ऊंची ऊंची ईमारतों का निर्माण कर लिया गया है। हालाकिं तालाबों पर आश्रित मछुआरों ने तेजी से बढ़ रहे अतिक्रमण का कई बार विरोध कर शिकायत भी की। लेकिन कभी प्रशासन ने इनकी शिकायतों को गंभीरता से नहीं लिया। ताजुब की बात तो यह है कि प्रशासन तालाब का सही नाप-जोप तक नहीं कर पाया है। धन-बल के चलते रसूखदार तालाब पी गए, वहीं अधिकारी कर्मचारी भी उनका समर्थन करते रहे। अब आलम यह है कि कई एकड़ में फैले तालाब चंद एरिया में ही सिमट कर रहे गए है।
बहरहाल, बताना जरूरी है कि हकीकत में तालाबों की सफाई और गहरीकरण अधिक खर्चीला काम नहीं है ना ही इसके लिए मशीनों की जरूरत है। सर्वविदित है कि तालाबों में भरी गाद सालों साल से सड़ रही पत्तियों और अन्य अपशिष्ट पदार्थों के कारण ही उपजी है, जो उम्दा दर्जे की खाद है, रासायनिक खादों ने किसी कदम जमीन को चौपट किया है यह किसान जान चुके हैं और उनका रुख अब कंपोस्ट व अन्य देशी खादों की ओर है। किसानों को यदि इस खाद रूपी कीचड़ की खुदाई का जिम्मेदा सौंप दिया जाए, तो भी आसानी से तालाब का गहरीकण हो सकता है।

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