इलाज के अभाव में आदिवासी युवक की मौत
परिजन ढाई घंटे तक चिकित्सक का करते रहे इंतजार
इलाज के अभाव में आदिवासी युवक की मौत
कटंगी। शहर के सरकारी अस्पताल में चिकित्सक के समय पर नहीं आने की वजह से शनिवार को एक 18 वर्षीय आदिवासी दिव्यांग युवक विशाल कुंभरे की दर्दनाक मौत हो गई। मृतक के परिजनों ने बताया कि वह सुबह करीब 8 बजे विशाल को अस्पताल लेकर आए थे। लेकिन अस्पताल में कोई चिकित्सक मौजूद नहीं था। इसके बाद उन्होनें लगातार अस्पताल के अन्य कर्मचारियों से उपचार करने की मिन्नते की हाथ जोड़े। लेकिन सभी ने चिकित्सक ही उपचार करेंगे कहकर हाथ लगाने से ही इंकार कर दिया। मृतक के पिता श्रीराम ने बताया कि करीब साढ़े 10 बजे विशाल ने अंतिम सांस ली। इस घटना के बाद मॉ लता कुंभरे का रो-रो कर बुरा हाल है। लेकिन फिर भी वह हिम्मत जुटाते हुए कहती है कि एकलौती संतान की मौत सिस्टम की लापरवाही की वजह से हुई है। उनका बेटा तो केवल चलने-फिरने में अक्षम था। लेकिन हमारा पूरा सिस्टम भष्ट्र और अंधा हो गया है। जहां गरीबों के जान की कोई कीमत ही नहीं है।
प्राप्त जानकारी के मुताबिक तिरोड़ी तहसील के हीरापुर गांव के निवासी श्रीराम कुंभरे अपनी पत्नी लता तथा मॉ के साथ बीमार बेटे विशाल का इलाज कराने के लिए सुबह उसे अस्पताल लेकर आए थे। यहां पर मरीज के नाम की पर्ची कटवाने के बाद वह करीब ढाई घंटे तक चिकित्सक के आने का इंतजार करते रहे। लेकिन चिकित्सक नहीं आए। इस बीच उन्होंने कई बार अस्पताल में मौजूद नर्स तथा अन्य कर्मचारियों से उपचार करने के लिए गुहार लगाई। मगर, कर्मचारियों ने इलाज करने से साफ मना कर दिया। कर्मचारियों ने कहा कि डॉक्टर ही ईलाज करेंगें। जब डाक्टर अस्पताल पहुंचे तो मरीज मर चुका था। अस्पताल प्रबंधक ने अपनी गलती से बचने के लिए मरीज के परिवार द्वारा बनाई गई पर्ची तक वापस ले ली गई।
अब आप शायद इस बात का अंदाजा आसानी से लगा सकते है कि उस वक्त उस परिवार पर क्या बीत रही होगी. बहरहाल, जानना जरूरी है कि सरकारी अस्पताल में चिकित्सक के आने का समय सुबह 8 बजे है इसके बाद चिकित्सक को दोहपर 1 बजे तक अस्पताल में सेवाएं देनी होती है लेकिन यहां सरकारी अस्पताल में चिकित्सक अपने मनमर्जी के मालिक है इन्हें राजनैतिक संरक्षण प्राप्त है. वहीं सरकारी अस्पतालों में चिकित्सकों की कमी और सरकार की नाकामी का यह चिकित्सक भरपूर फायदा उठा रहे है, और अपने घरों में मरीजो का उपचार कर आर्थिक लाभ कमा रहे है. जिस ओर शासन-प्रशासन का एक नहीं बल्कि कई बार ध्यानाकर्षण कराया गया लेकिन व्यवस्था नहीं सुधरी. जिसका नतीजा यह हुआ कि सिस्टम की बदइंतजामी के आगे एक आदिवासी युवक की जीवनलीला समाप्त हो गई।
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