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हाट ठेला और बाइक साइकल से ढो रहे पानी

locationबालाघाटPublished: May 15, 2019 07:53:07 pm

Submitted by:

mukesh yadav

महकेपार में भीषण पेयजल संकट

pani ki samasya

हाट ठेला और बाइक साइकल से ढो रहे पानी

कटंगी/महकेपार। क्षेत्र के पठार अंचलों में इन दिनों भारी पेयजल संकट मंडरा रहा है। गर्मी की मार की वजह से महकेपार में पानी के लिए हाहाकार मचा हुआ है। यहां हर साल की तरह इस साल भी ग्रामीणों को आधा किमी. दूर से पीने का पानी जुटाना पड़ रहा है। गांव का जल स्तर कम होने की वजह से नल-जल योजना ने दम तोड़ दिया है। इस कारण गांव के कई ऊंचाई वाले हिस्सों तक पानी नहीं पहुंच पा रहा है। घरों में लगे नलों से बूंद-बंूद पानी टपक रहा है। इस पानी को भी ग्रामीण सहेजकर रख रहे हैं। महकेपार में पानी की किल्लत से हालात कुछ ऐसे बन चुके है कि पेट्रोल से अधिक मंहगा पानी हो चुका है।
ग्रामीणों को बाइक और साईकिल से पानी ढोना पड़ रहा है। पीने का मीठा पानी जुटाने के लिए घर की महिलाओं-पुरुषों के साथ-साथ वृद्धजनों और बच्चों तक को पूरा-पूरा दिन तपती धूप में पानी ढोना पड़ रहा है। ग्रामीणों ने बताया कि गांव में मीठे पेयजल का स्रोत स्कूल के पास ही है, जबकि पूरे गांव में जलस्रोतों से खारा पानी निकलता है। ऐसे में गांव की तकरीबन आधी आबादी स्कूल के पास स्थित एक मात्र हंैडपंप पर आश्रित है।
करीब 5 हजार की आबादी वाले महकेपार में बीते कई सालों से मीठे पीने का पानी की समस्या है। लोग सुबह 4 बजे से उठकर स्कूल के पास हंैडपंप से पानी जुटाना शुरू कर देते हैं। यहां भी पानी के लिए हैंडपंप पर बैठना पड़ता है। गांव के युवकों ने बताया कि पेयजल संकट ने लोगों की दिनचर्चा ही बदल कर रख दी है। लोग सुबह उठकर पानी ढो रहे हैं, रात में भी पानी ढोने का सिलसिला जारी रहता है। पानी की किल्लत होने के कारण लोग साइकिल, बाइक, ठेला आदि से पानी ढो रहे हैं। ग्रामींणो की माने तो गांव में किसी प्रकार का सार्वजनिक कार्यक्रम होने पर काफी किल्लत होती है। टैंकर से पानी ढोया जाता है अगर, टैंकर उपलब्ध ना हो तो मजबूरन खारा पानी ही परोस दिया जाता है। बता दें ग्रामीणों की समस्या को देखते हुए यहां नल-जल योजना मंजूर की गई। लेकिन यह योजना भी ग्रामीणों का गर्मी में प्यास नहीं बुझा पा रही है। लोग मीठे पानी के लिए अब भी चक्कर ही काट रहे है।
गौरतलब हो कि पठार अंचल में भूमिगत जलस्रोत सूखने की सबसे बड़ी वजह बावनथड़ी नदी है। इस नदी पर राजीव सागर बांध के निर्माण के बाद नदी का प्रवाह बंद हो चुका है। इस वजह से बारिश के मात्र 15 दिनों बाद नदी में प्रवाह बंद हो जाता है। जिसका सीधा असर पठार अंचल के गांवों के भूमिगत जल पर पड़ता है। इसके अलावा गर्मी के मौसम में गन्ने की खेती की जा रही है, जिसमें काफी अधिक पानी खर्च हो रहा है। इस फसल को तैयार करने के लिए किसान बड़ी मात्रा में पानी का दोहन करता है। फिलहाल पठार में पेयजल संकट से निपटना प्रशासन और ग्रामीणों के लिए एक बड़ी चुनौती है।
इनका कहना है।
बाइक से पानी ढोना मजबूरी है, गांव में कुएं सूख चुके है और मीठा पानी भी उपलब्ध नहीं है।
शुभम डहरवाल, ग्रामीण
गर्मी के मौसम में हर साल इसी तरह की ग्रामीणों की दिनचर्या बन जाती है। सुबह से लेकर देर रात तक पानी जुटाना पड़ता है।
जयप्रकाश ठाकरे, ग्रामीण

जलस्तर कमजोर होने की वजह से नल-जल योजना से ऊंचाई वाले हिस्सों में पानी नहीं पहुंच पा रहा है। गांव की आधे लोग यहां से आकर मीठा पानी ले जाते है।
राखीचंद ठाकरे, ग्रामीण

गांव में मीठा पानी नहीं है, इसीलिए महिलाओं-पुरुषों के साथ-साथ वृद्धजनों और बच्चों तक को पूरा-पूरा दिन तपती धूप में मजबूरन पानी ढोना पड़ रहा है।
कमलेश बंसोड़, ग्रामीण
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