यह मॉडल मार्गदर्शक शिक्षक धर्मेन्द्र कुमार श्रवण के मार्गदर्शन में तैयार किया था। केवल हार्वेस्टर मशीन धान या गेहूं की फसल काटने के बाद मिंजाई की प्रक्रिया होती है, जिसमें अनाज व पुआल या पैरा अलग-अलग होता है। हार्वेस्टर मशीन मेंं यह देखा जाता है कि पैरा को अलग कर खेत मेें गिरा दिया जाता है, उस पैरा को किसान या तो पशुधन को खिलाने अपने घर ले आते हैं या खेत पर ही जला देते हैं। खेत मेंं पैरा जलाने पर निकलने वाला धुआं पर्यावरण को प्रदूषित करता है। सूखा पैरा को खिलाने से पशुधन को नुकसान भी पहुंचता है क्योंकि सूखे पैरा मेंं पौष्टिकता खत्म हो जाती है।
कंबाइन हार्वेस्टर मशीन से पैरा को और भी छोटे-छोटे टुकड़ों मेेंं काटा जाता है, जिसे आम भाषा में पैरा कुट्टी कहा जाता है। मॉडल के माध्यम से बताया गया कि यदि 50 लीटर पानी, 100 किलोग्राम पैरा कुट्टी एवं 4 किलोग्राम यूरिया को अच्छी तरह से मिलाकर परत दर परत बिछाकर एक माह तक ढंक दिया जाता है तो उसका रंग सुनहरा हो जाता है फिर पशुधन को थोड़ा-थोड़ा अन्य पशु आहार के साथ खिलाने से पौष्टिकता का गुण और बढ़ जाता है, जिसे पशुधन स्वाद के साथ खाते हैं। इससे दुधारू पशु के दूध मेें वृद्धि होती है। खेती कार्य मेंं काम आने वाले बैल व भैंसे भी हष्ट-पुष्ट हो जाते हैं। इस तरह तैयार किया गया आहार पशुधनों के लिए निरोग व ताकतवर होता है। इन सबसे किसान की आमदनी बढ़ती है। पैसे की बचत होती है।
प्रतिभागी 9वीं में अध्ययनरत छात्र नेमचंद है, जो बेहतर ढंग से मॉडल के बारे में जानकारी देने में सफल रहा। प्राचार्य एस जॉनसन सहित शिक्षकों व कर्मचारियोंं ने 27 अगस्त को बेहतर प्रदर्शन की कामना की है।