बालोद जिला मुख्यालय के मरारापारा में लगभग 70 साल पहले जमीन के भीतर से भगवान गणेश के रूप में प्रगट हुए। सबसे पहले स्व. सुल्तानमल बाफना और भोमराज श्रीमाल की नजर पड़ी। बताया जाता है कि पहले बाफना परिवार के किसी सदस्य के सपने में बप्पा आये थे। जिसके बाद दोनों व्यक्तियों ने स्वयं-भू गणपति के चारों ओर टीन शेड लगाकर एक छोटा सा मंदिर बनाया। इसके बाद मंदिर का विस्तार होता गया। 70 सालों से उनके परिवार के सदस्य पूजा-अर्चना करते आ रहे हैं।
नगर के मरारपारा में बप्पा का छोटा सा मंदिर है लेकिन उसके प्रति लोगों की आस्था अटूट है। पहले तो केवल दो-चार लोग ही बप्पा की सेवा व पूजा अर्चना करते थे। लेकिन 2008 से नगर के महिला, पुरूष व युवक युवतियों की टोली बनी। जिसे मोरिया मंडल परिवार नाम दिया गया। जिसके बाद से लेकर अब तक मोरिया मंडल परिवार के सदस्यों के साथ नगर के लोग भी गणेश की सेवा व पूजा-अर्चना करते हैं।
बता दें कि स्वयं-भू श्री गणेश के घूटने तक का कुछ हिस्सा अभी भी जमीन के भीतर है। लोग बताते हैं कि पहले गणेश जी का आकार काफी छोटा था लेकिन धीरे धीरे बढ़ता गया और आज बप्पा विशाल स्वरूप में हैं। गणपति का आकार लगातार बढ़ता देख भक्तों ने वहां पर मंदिर बनाया है। मंदिर में दूर दराज के लोग अपनी मनोकामना लेकर आते हैं।
पूरे वर्ष भर इस मंदिर में भक्तों का आना जाना लगा रहता है। 11 दिनों तक चलते वाले गणेश चतुर्थी पर्व रक दीपावली जैसा माहौल रहता है। गणेश चतुर्थी के पखवाड़े भर पहले तैयारी शुरू कर दी जाती है। 11 दिनों तक शाम 7.30 बजे गाजे-बाजे के साथ पूजा की जाती है। जिसमें सैंकड़ों की सं?या में भक्त उपस्थित होते हैं। 11 दिनों तक अलग अलग तरह के भोग लगाएजाते हैं। 12 सितंबर को हवन पूजन के साथ विशाल भंडारा का आयोजन किया जाएगा। शाम 6 बजे से विशाल शोभा यात्रा निकाली जाएगी।
लोगों का मानना है कि मनोकामना लेकर दर्शन को पहुंचने और सच्ची श्रद्धा विश्वास से पूजा करने पर उनकी इच्छा पूरी होती है। मोरिया मंडल के सदस्य सुनील रतन बोरा ने बताया कि जिले के डौंडी लोहारा विकासखंड के ग्राम कोटेरा निवासी वन विभाग के कर्मचारी गांधी रात्रे का 11 साल से कोई संतान नहीं थी। बड़े-बड़े डॉक्टरों से उपचार के बाद जवाब दे दिया था कि संतान नहीं हो सकता। एक दिन वह सच्ची आस्था के साथ गणेश जी पूजा-अर्चना की और ठीक 11 माह के भीतर एक बच्ची की किलकारी गूंजी।