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सौ आरोपी भले छूट जाए, पर एक निर्दोष को नहीं होनी चाहिए सजा, दोषी पुलिसकर्मी पर कार्रवाई के दिए निर्देश

locationबालोदPublished: Sep 09, 2018 11:02:53 pm

बालोद न्यायालय के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट अशोक कुमार लाल ने उस वक्त सिद्ध कर दिया जब निर्दोष लोगों को फंसाए जाने के लिए बालोद पुलिस के प्रधान आरक्षक के विरुद्ध कार्रवाई करने का आदेश दिया।

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सौ आरोपी भले छूट जाए, पर एक निर्दोष को नहीं होनी चाहिए सजा, दोषी पुलिसकर्मी पर कार्रवाई के दिए निर्देश

बालोद. सौ आरोपी भले ही छूट जाए, परंतु एक निर्दोष को सजा नहीं होनी चाहिए, यह न्यायपालिका का एक स्थापित सिद्धांत है। इस सिद्धांत को बालोद न्यायालय के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट अशोक कुमार लाल ने उस वक्त सिद्ध कर दिया जब निर्दोष लोगों को फंसाए जाने के लिए बालोद पुलिस के प्रधान आरक्षक के विरुद्ध जिला पुलिस अधीक्षक आइके एलिसेला को पत्र लिखकर कार्रवाई करने के साथी न्यायालय को अवगत कराने का आदेश दिया। न्यायालय द्वारा पुलिसकर्मी के ऊपर कार्रवाई के आदेश के साथ ही आम जनता का न्यायपालिका के प्रति जहां विश्वास जगा है, तो वहीं भ्रष्ट पुलिस कर्मियों के बीच हड़कंप की स्थिति है।

ये हैं मामला
पुलिस द्वारा प्रस्तुत प्रतिवेदन में 23 मई 2016 को ग्राम करहीभदर में मुखबीर की सूचना के आधार पर प्रधान आरक्षक मुरली सिंह बघेल अपने सहकर्मी भूप सिंह तथा सुधीर किस्पोट्टा आरक्षक के साथ मौके पर पहुंचे, जहां आरोपी नरेंद्र कुमार को चाकू लहराकर आम जनता को डराने धमकाने के आरोप में धारा 25 आम्र्स एक्ट के अंतर्गत कार्रवाई की। जनता के हित में कार्य करने वाले पुलिसकर्मियों की बातों पर विश्वास करते हुए न्यायालय ने आरोपी नरेंद्र कुमार को जेल भेज दिया, जिसके कारण आरोपी को 10 दिनों तक जेल की हवा खानी पड़ी, परंतु इस संदर्भ में जब न्यायालीन परीक्षण प्रारंभ हुआ, तो अधिवक्ता भेष कुमार साहू ने पूरे मामले को फर्जी करार देते हुए अपनी दलीलें प्रस्तुत की।

आरोपी की दोषमुक्ति प्रकरण में विवेचना करने वाले अधिकारी का दायित्व अदालत तय करेगी
दलील सुनने के बाद न्यायालय ने घटना को बड़ी व गंभीर घटना करार देते हुए एसपी को पत्र लिखकर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा अपराध प्रकरण 719/16 शासन विरुद्ध नरेंद्र कुमार धारा 25 (1ख) (ख) आयुध अधिनियम में निर्णय पारित कर आरोपी नरेंद्र कुमार को दोषमुक्त कर दिया। उसके बाद मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने अपने आदेश में इस बात का विशेष तौर से उल्लेख किया है कि माननीय उच्चतम न्यायालय का दृष्टांत देते हुए बताया कि स्टेट ऑफ गुजरात बनाम किशन भाई के प्रकरण में प्रतिपादित सिद्धांत के परिपालन के अनुसार आरोपी की दोषमुक्ति प्रकरण में विवेचना करने वाले अधिकारी का दायित्व अदालत तय करेगी। दोषी अधिकारी को दंडित करना भी तय करेगी। इस दृष्टांत के आधार पर न्यायालय ने प्रधान आरक्षक मुरली सिंह बघेल को दोषी मानते हुए भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में संरक्षित प्राण व दैहिक स्वतंत्रता के मूल अधिकार के उल्लंघन के साथ भारतीय दंड संहिता की धारा 167, 191, 192, 193, 196, 211, 220 के अंतर्गत दंडनीय अपराध की श्रेणी में लिया है।

ऐसे हुआ संदेह उत्पन्न
इस पूरे मामले में बालोद के पुलिसकर्मी मुरली सिंह बघेल की पोल उस वक्त खुल गई जब बेबुनियाद तरीके से मामले को गलत जामा पहनाते हुए चाकू बरामदगी में आरोपी नरेंद्र सिंह साहू के विरुद्ध गवाह के रूप में उनके पिता मोहन लाल साहू तथा उनके चाचा गणेश साहू को ही गवाह गवाह बनाने के साथ-साथ अपने साथ गए अन्य पुलिसकर्मियों को भी गवाह बनाया। नियमानुसार पिता एवं चाचा की गवाही परिवार के अलावा अन्य किसी को स्वतंत्र गवाह बनाया जाना था जिसके कारण से मुरली साहू की कारवाही पर प्रथम दृष्टया में ही संदेह उत्पन्न हो गया था।

विभागीय कर्मचारियों ने चाकू बरामदगी से किया इनकार
संदेश उस वक्त और पुख्ता हो गया जब मुरली साहू के साथ जाने वाले अन्य विभागीय कर्मचारियों ने चाकू बरामदगी से इनकार कर दिया। तथ्यों के आधार पर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने निर्दोष आरोपी को बरी करने के साथ ही दोषी पुलिसकर्मी के विरुद्ध कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं।ो

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