विकासखंड में धान की कटाई अभी शुरू हुई है। रबि फसल की तैयारी के लिए किसान कटाई के तुरंत बाद ही धान के अवशेषों को जलाने लगे हैं। शासन ने पर्यावरण सुरक्षा के साथ भूमि की उर्वरा शक्ति को बनाए रखने खेतों में जलाने पर प्रतिबंध लगा रखा हैं। इसके लिए कानून के साथ कड़ी कार्रवाई का प्रावधान भी हैं।
विकासखंड के किसान खरीफ के बाद दलहन तिलहन की फसल लेते हैं। इस वर्ष गंगरेल जलाशय से धान के लिए पानी दिएजाने की घोषणा के कारण किसान अभी से दूसरी फसल की तैयारी करने लगे हैं।
पिछले साल से प्रतिबंध के बाद भी किसानों ने खेतों में बचे अवशेष को बड़े पैमाने पर जला दिएथे। तब कार्रवाई नहीं हुई। कानून बनाकर एवं बैनर-पोस्टर से शासन ने इतिश्री कर ली। किसी के खिलाफ कार्यवाही नहीं की जिससे किसानों को कानून का कोई भय नहीं है।
खेत को खाली कराने एवं अगली फसल की तैयारी के लिए किसानों ने आसान तरीका अपना लिया है। आग लगाने के बाद किसान खेत को अगली फसल के लिए तैयार मान लेते है। आग नहीं लगाने पर किसानों को खेत में पड़े पैरा, धान के ठूठों को हटाने में मजदूरी खर्च और समय भी लगता है जिससे बचनेखेतों में आग देते हैं।
पैरा जलाने से इस वर्ष बारिश में पैरा कुटी की समस्या हो गई थी। कुटी के दाम एक हजार क्विंटल तक पहुंच गया था। वहीं किसानों ने मवेशियों को घरों में न बांधकर खुला छोड़ दिया था जिससे गांव गांव में मवेशियों की संख्या बढ़ गई थी।
कृषि विभाग की मानें तो किसानों में आम धारणा है कि खेतों में अवशेष को जलाने से भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ती है, जबकि ऐसा नहीं है। खेतों में आग लगानेे से खेतों में मौजूद मित्र कीट भी मर जाते हैं जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति कम होने लगती है।
नायब तहसीलदार नीलकंढ जनबंधु ने कहा इसकी जानकारी आप से मिल रही है। खेतों में आग लगाना गलत है। किसानों को समझाया जाएगा एवं आवश्यकता पडऩे पर कार्रवाई भी की जाएगी।