यहां की होली देखने के लिए आसपास के ग्रामीण भी आते हैं। फागुन मास आरंभ होते ही डंडा नाच की गूंज सुनाई देने लगती है। डंडा नाच के कलाकारों में हरीराम साहू, कोमल साहू, महात्मा यादव, केवल साहू, फत्तेलाल साहू, डामन सोनवानी, चुमन साहू, शेखर साहू, रविकांत यादव, मोरध्वज साहू, आशाराम साहू, मूलचंद साहू, मस्तराम शांडिल्य, देहार साहू, डामन साहू, देवनारायण साहू, दीनूराम सोनवानी हैं।
गांव के बुजुर्ग देहार साहू ने बताया आज के युवा वर्ग अपनी संस्कृति व परम्परा को भूलते जा रहे हैं। ऐसे में हमारी संस्कृति खत्म होती जा रही है। लोगों को जागरूक करने यहां गांव की वर्षों पुरानी परंपरा को बचाने ही डंडा नृत्य कर होली मनाते हैं। इस विलुप्त होती डंडा नाच की परम्परागत शैली को संरक्षण एवं आगे बढ़ाने में शिक्षक किरण कटेन्द्र अपना योगदान दे रहे हैं। डंडा नाच के कलाकारों को संगठित कर इनकी कला व इस प्राचीन नृत्य को प्रदेश के विभिन्न जिलों में प्रस्तुतिकरण कराकर जीवित रखने का प्रयास कर रहे हैं।
डंडा नाच मंडली के अध्यक्ष फागूराम सोनवानी बताते हैं कि यह विधा वर्षों से चली आ रही है। इस विधा को गांव के बड़े बुजुर्गों ने शुरू किया था, तब से यह पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है। 86 वर्ष के हनुमान साहू को डंडा नाच के गुरु माना जाता है। गांव के युवाओं को डंडा नृत्य सिखाया जा रहा है, ताकि आने वाली युवा पीढ़ी भी इस परंपरा को जिंदा रखे। डंडा नाच की नृत्य एवं गायन शैली बहुत पुरानी है। सभी गीतों में देवी-देवताओं की कथा के साथ चारों युग महासतियों की गाथाओं का वर्णन है। डंडा नाच सात प्रकार के गीतों पर किया जाता है, जिसमें जोहरनी, छर्रा, टिनटेहरी दउंड़छर्रा, समधी भेंट, फूलगूंथ एवं खोलछर्रा प्रमुख हैं।
डंडा नृत्य में कुल 20 सदस्य हैं, जिसमें से आधा दर्जन कलाकार 60 वर्ष से ज्यादा उम्र के हैं। बाकी कलाकार 40 वर्ष से कम के हैं। जब इनकी पहली प्रस्तुति युवा महोत्सव में हुई तो इसका चयन राज्य स्तरीय युवा महोत्सव के लिए हुआ। जहां मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी इस डंडा नृत्य कलाकारों की तारीफ भी की थी।