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क्या कारण है कि यहां के दो जवानों को न शहीद का दर्जा मिला न परिजन को अनुकंपा नियुक्ति

locationबालोदPublished: Jul 26, 2019 11:52:06 pm

देश कारगिल विजय दिवस की 20वीं वर्षगांठ मना रहा है। 26 जुलाई 1999 का वो दिन कभी नहीं भुलाया जा सकता, जब कश्मीर के कारगिल में 60 दिन तक चले वार में भारतीय सेना और वायुसेना ने पाकिस्तान के कब्जे वाली जगहों पर हमला किया और पाकिस्तान को सीमा पार वापस जाने को मजबूर कर दिया।

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क्या कारण है कि यहां के दो जवानों को न शहीद का दर्जा मिला न परिजन को अनुकंपा नियुक्ति

बालोद @ patrika . देश कारगिल विजय दिवस की 20वीं वर्षगांठ मना रहा है। 26 जुलाई 1999 का वो दिन कभी नहीं भुलाया जा सकता, जब कश्मीर के कारगिल में 60 दिन तक चले वार में भारतीय सेना और वायुसेना ने पाकिस्तान के कब्जे वाली जगहों पर हमला किया और पाकिस्तान को सीमा पार वापस जाने को मजबूर कर दिया।

शहीद जांबाजों को याद कर आखें हो जाती है नम
आज भी इस दिन को याद कर सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है, तो वहीं कारगिल विजय में शहीद जांबाजों को याद कर आखें भी नम हो जाती हैं। ऑपरेशन विजय के तहत देश के वीर सपूतों ने अपनी जान की बाजी लगाकर कारगिल युद्ध में पाकिस्तान पर विजय हासिल की। इनमें बालोद जिले के भी सपूत थे, जो देश पर प्राण न्यौछावर कर गए।

कारगिल युद्ध की तैयारी व ड्यूटी करते वक्त हो गए थे शहीद
जिले के गुंडरदेही ब्लॉक के देवरी (ख) के वीर जवान 23 वर्षीय दुर्वाशा निषाद कारगिल युद्ध की तैयारी करते वक्त शहीद हो गए थे। वहीं किशन लाल साहू 26 साल भी कारगिल में ड्यूटी के वक्त शहीद हो गए। @ patrika . देश का कानून और सेना का नियम ऐसा कि जिले के दो जवानों को न तो शहीद का दर्जा मिला और न ही परिजन को अनुकंपा नियुक्ति मिली। इस शहीद के परिवार को तो आज तक जवान बेटे किशन की शहादत के बदले अनुकंपा नौकरी नहीं मिली।

गांव से जाने के 15 दिन बाद हो गए शहीद
जिले के गुंडरदेही ब्लॉक के ग्राम देवरी ( ख) दुर्वाशा लाल निषाद पिता मुनि लाल निषाद 23 साल 1993 में आर्मी में नौकरी लगी। जिसके बाद देश की सेवा करते रहे। पिता मुनि लाल ने बताया कि बेटे आर्मी में गया तो बोले पापा देश के लिए जीना और देश के लिए ही मरना है। बेटे की देश प्रेम की इस जज्बे को देखकर आंखें भर आई थी। आज भी बेटे पर गर्व है जो देश की रक्षा के खातिर शहीद हो गए।

युद्ध के लिए सामग्री एकत्र करते हुए शहीद
पिता मुनि लाल ने बताया कि कारगिल युद्ध के 6 दिन पहले ही वह रक्षा बंधन की छुट्टी पर गांव आया था। उन्होंने उस समय कहा था कि पाकिस्तान व भारत के बीच युद्ध होना संभावित है और तैयारी करनी है। छुट्टी से वापस जाने के बाद 4 सितंबर 1998 को कारगिल युद्ध के लिए सामान इकठ्ठा करते वक्त अचानक स्वास्थ्य बिगड़ गया और कारगिल में ही शहीद हो गया।

आज तक नहीं मिली परिवार को अनुकंपा नौकरी
गुरुर विकासखंड के ग्राम बालोदगहन के किशन लाल सन् 2006 में कारगिल युद्ध में शामिल नहीं हुए लेकिन ड्यूटी के दौरान उनकी शहादत हुई। जब भी कारगिल युद्ध व विजय दिवस की याद आती है तो उनकी भी याद आ जाती है। @ patrika . किशन लाल के बड़े भाई चुन्नू लाल साहू ने बताया कि छोटे भाई सन 2000 में आर्मी में शामिल हुए और उनकी ड्यूटी कारगिल में रही। शहादत के बाद भी अनुकंपा नहीं मिली।

मां-बाप को शहीद बेटे पर गर्व
शहीद के भाई चुन्नु लाल ने बताया की जब जब राष्ट्रीय पर्व और कारगिल शहादत व विजय दिवस का आयोजन होता है तो मां अमृता (55 साल) और पिता सेउक राम (60 साल) भावुक हो जाते हैं। आज भी इन दोनों शहीद के किसान पिता व मां सहित पूरे परिजन और गांव को इन वीर सपूतों पर गर्व है।

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