जिला मुख्यालय के सबसे बड़े कार्यलय में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन ही नहीं हो रहा। दिव्यांगों की परेशानी से जिला प्रशासन अंजान है। रोजाना जिला कलेक्टोरेट कार्यालय में दर्जनभर से अधिक दिव्यांग समस्या व मांगों को लेकर समाज कल्याण विभाग आते हैं। उन्हें लेट-बाथ लगने पर शौचालय ढूंढने पड़ते है।
एक ओर शासन-प्रशासन द्वारा दिव्यांगों के सम्मान और हक की बात करते हंै पर यहां के सरकारी दफ्तरों में तो परेशानी ही परेशानी है। दिव्यांगों को उनसे संबंधित विभाग जाने के लिए भी दूसरे मंजिल तक चढऩा पड़ता है।
जिले के सरकारी दफ्तरों में तो महिला और पुरुष प्रसाधन बनाएगए है पर कहीं पर भी दिव्यांगों के लिए अलग से प्रसाधन की सुविधा नहीं है। प्रत्येक सोमवार को भेंट मुलाकत में बड़ी संख्या में दिव्यांग आते हैं। इन दिव्यांगों को अगर शौच लगे तो उनके लायक शौचालय नहीं है, जो है उसका वे उपयोग नहीं कर पाते हैं।
दिव्यांगों के लिए डिसेबल फ्रेंडली शौचालय की जरूरत है। शासन प्रशासन को इस ओर ध्यान देना चाहिए। दिव्यांगों की परेशानी का ताजा उदाहरण गत दिनों देखने को मिला। किसी काम से दोनों पैर से दिव्यांग रमेश को शौच लगने पर उनके साथ सहयोगी उसे उठाकर पार्किंग की तरफ बने शौचालय ले गया, पर वह शौचालय में बैठ नहीं पाया तो उन्होंने अपने बाइक पर बिठाकर जलाशय ले गए। जिला कलक्टोरेट के ऊपरी मंजिल में कमोड सिस्टम है, उसमें दिव्यांगों को बैठने में परेशानी होती है। भेंट मुलाकात कमरे की ओर तो दिव्यांगों के लायक शौचालय ही नहीं है।
जिला कलक्टोरेट कार्यालय में दिव्यांगों के लिए रैम्प तो बनाए गए है पर रैम्प के आसपास व्हीलचेयर की सुविधा ही नहीं है। अगर कोई दिव्यांग समाज कल्याण विभाग जाना चाहेगा तो पहले उसके साथी विभाग के अधिकारी को जानकारी देते है तब व्हीलचेयर नीचे भेजते हैं। फिर दिव्यांगों को रैम्प से कार्यालय ले जाया जाता है।