घरौंदा के 22 में से 12 दिव्यांगों की कहानी भी मार्मिक है। इन दिव्यांगों का कहना है, जब वे यहां नहीं आए थे, तब गांव की गली में घूमते थे। लोग पागल कहते व दौड़ाते थे। कोई कुछ भी बोलता था, लेकिन घरौंदा में स्पेशल प्रशिक्षण लेकर नृत्य सीखा है। नृत्य की प्रस्तुति विश्व दिव्यांग दिवस पर देकर अपनी प्रतिभा दिखाएंगे। घरौंदा के प्रभारी डॉ. अभिषेक चंदेल (फिजियोथेरेपी) ने कहा कि सरकार ने संभाग स्तरीय घरौंदा की स्थापना फरवरी 2020 में की। वर्तमान में दुर्ग, बालोद, राजनांदगांव व बेमेतरा जिले के 22 मंदबुद्धि हैं। उन्हें पढ़ाई, लिखाई, कम्प्यूटर ज्ञान, पर्सनाल्टी डेवलपमेंट, आत्मनिर्भर बनाने के लिए लिफाफा बनाने सहित गीत-संगीत, नृत्य सिखाया जा रहा है। इनमें सुधार आ रहा है। इन्हें स्वस्थ कर रोजगारमूलक काम भी घरौंदा में रहकर दिया जाएगा। शासन की गाइडलाइन के तहत 60 प्रतिशत मंदबुद्धि दिव्यांग को भर्ती किया जाता है, जिनकी उम्र 16 साल से अधिक हो।
फंड के अभाव में तीन साल से बंद कचांदुर के आवासीय दिव्यांग प्रशिक्षण केंद्र को फिर से संचालित करने की जरूत है। इस केंद्र से कई नेत्रहीन कंप्यूटर चलाना सीख चुके हैं। इंग्लिश व हिंदी बोलना सीखा। लेकिन केंद्र के बंद होने से 20 से 25 बच्चों ने जो सीखा था, उसे भूल गए हैं। इसे दोबारा संचालित करने ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
जानकारी के मुताबिक इनमें से कुछ ऐसे दिव्यांग हैं, जो गांव की गलियों में घूमते थे। उन्हें खाने पीने व घर जाने तक की फुर्सत नहीं रहती थी। फटे पुराने कपड़े पहनकर रहते थे। घरौंदा में आने के बाद इनके जीवन में परिवर्तन आया है। ये सभी बिना गायत्री मंत्र के भोजन नहीं करते जबकि पहले उन्हें ये सब नहीं आता था।