script

लोग कहते थे पागल पर घरौंदा में ऐसे विकसित हुए कि चलाने लगे कंप्यूटर, नृत्य में भी करते हैं कमाल

locationबालोदPublished: Dec 03, 2020 04:27:37 pm

Submitted by:

Dakshi Sahu

वासीय संस्थान में चिकित्सक व कर्मचारियों के विशेष प्रयास से ये मंदबुद्धि बच्चे अब कम्प्यूटर चलाना सीख गए हैं। सांस्कृतिक कार्यक्रम नृत्य, खेलकूद भी कर रहे हैं।

लोग कहते थे पागल पर घरौंदा में ऐसे विकसित हुए कि चलाने लगे कंप्यूटर, नृत्य में भी करते हैं कमाल

लोग कहते थे पागल पर घरौंदा में ऐसे विकसित हुए कि चलाने लगे कंप्यूटर, नृत्य में भी करते हैं कमाल

बालोद. पूरा विश्व आज दिव्यांगों के सम्मान में विश्व दिव्यांग दिवस मना रहा है।जिला मुख्यालय स्थित राज्य सरकार से संचालित समाज कल्याण विभाग के घरौंदा में निवासरत दिव्यांगों की कहानी कुछ और ही है। यहां 22 ऐसे युवा रहते हैं, जो बचपन से कम विकसित हो पाए। यहां उनका मानसिक विकास कराया जा रहा है। इस अवासीय संस्थान में चिकित्सक व कर्मचारियों के विशेष प्रयास से ये मंदबुद्धि बच्चे अब कम्प्यूटर चलाना सीख गए हैं। सांस्कृतिक कार्यक्रम नृत्य, खेलकूद भी कर रहे हैं। ये युवा लिफाफा बनाना भी सीख रहे हैं। सभी दिव्यांगों को विशेष ट्रेनिंग दी जा रही है। समय-समय पर हर सप्ताह स्वास्थ्य जांच व विशेष खान-पान के साथ हो रही देखभाल से इन दिव्यांगों में धीरे-धीरे मानसिक विकास हो रहा है। घरौंदा के चिकित्सक का कहना है कि आने वाले साल दो साल में ये दिव्यांग पूरी तरह स्वस्थ हो जाएंगे।
लोग गली में उन्हें दौड़ाते थे, आज मंच पर दिखाएंगे अपनी प्रतिभा
घरौंदा के 22 में से 12 दिव्यांगों की कहानी भी मार्मिक है। इन दिव्यांगों का कहना है, जब वे यहां नहीं आए थे, तब गांव की गली में घूमते थे। लोग पागल कहते व दौड़ाते थे। कोई कुछ भी बोलता था, लेकिन घरौंदा में स्पेशल प्रशिक्षण लेकर नृत्य सीखा है। नृत्य की प्रस्तुति विश्व दिव्यांग दिवस पर देकर अपनी प्रतिभा दिखाएंगे। घरौंदा के प्रभारी डॉ. अभिषेक चंदेल (फिजियोथेरेपी) ने कहा कि सरकार ने संभाग स्तरीय घरौंदा की स्थापना फरवरी 2020 में की। वर्तमान में दुर्ग, बालोद, राजनांदगांव व बेमेतरा जिले के 22 मंदबुद्धि हैं। उन्हें पढ़ाई, लिखाई, कम्प्यूटर ज्ञान, पर्सनाल्टी डेवलपमेंट, आत्मनिर्भर बनाने के लिए लिफाफा बनाने सहित गीत-संगीत, नृत्य सिखाया जा रहा है। इनमें सुधार आ रहा है। इन्हें स्वस्थ कर रोजगारमूलक काम भी घरौंदा में रहकर दिया जाएगा। शासन की गाइडलाइन के तहत 60 प्रतिशत मंदबुद्धि दिव्यांग को भर्ती किया जाता है, जिनकी उम्र 16 साल से अधिक हो।
तीन साल से बंद कचांदुर के आवासीय दिव्यांग स्कूल को खुलवाने की जरूरत
फंड के अभाव में तीन साल से बंद कचांदुर के आवासीय दिव्यांग प्रशिक्षण केंद्र को फिर से संचालित करने की जरूत है। इस केंद्र से कई नेत्रहीन कंप्यूटर चलाना सीख चुके हैं। इंग्लिश व हिंदी बोलना सीखा। लेकिन केंद्र के बंद होने से 20 से 25 बच्चों ने जो सीखा था, उसे भूल गए हैं। इसे दोबारा संचालित करने ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
संस्कार ऐसा कि बिना गायत्री मंत्र के नहीं करते भोजन
जानकारी के मुताबिक इनमें से कुछ ऐसे दिव्यांग हैं, जो गांव की गलियों में घूमते थे। उन्हें खाने पीने व घर जाने तक की फुर्सत नहीं रहती थी। फटे पुराने कपड़े पहनकर रहते थे। घरौंदा में आने के बाद इनके जीवन में परिवर्तन आया है। ये सभी बिना गायत्री मंत्र के भोजन नहीं करते जबकि पहले उन्हें ये सब नहीं आता था।

ट्रेंडिंग वीडियो