scriptवेदों में कहा गया है जल बिना सब सुन्न, फिर हम सुन्न क्यों? | Said in the Vedas Without water all the numbness, Then why we numb | Patrika News

वेदों में कहा गया है जल बिना सब सुन्न, फिर हम सुन्न क्यों?

locationबालोदPublished: Jul 17, 2018 12:59:18 am

Submitted by:

Niraj Upadhyay

हर साल बढ़ते जल संकट पर समाज के वरिष्ठ करने लगे हैं चिंतन, पर शासन-प्रशासन के कदम अब तक थमे हुए हैं। अब तक तांदुला नदी की दुर्दशा पर जिम्मेदारों को नहीं तरस नहीं आ रहा है।

Efforts of the youth to save the Tadula river

वेदों में कहा गया है जल बिना सब सुन्न, फिर हम सुन्न क्यों?

बालोद. कुछ सालों से गर्मी से पहले ही जिले के दर्जनों गांवों में पानी के लिए जूझना पड़ रहा है। नदी, तालाब, बोखर, कुएं समय से पहले ही सूखने लगे हैं। क्या आपने कभी इस बारे में सोचा है कि ऐसा क्यों होने लगा है? इसके बाद भी हम आज भी नादान बने रहेंगे, तो सोचने के लायक भी नहीं रहेंगे। इस पर हमारे समाज के वरिष्ठ चिंतन कर रहे हैं। वे आज पानी संकट की स्थिति को बेहद दुखद बता रहे हैं। उन्होंने आदिकाल से हमारे पुराणों में उल्लेखित बातों का जिक्र किया। कहा प्रकृति प्रदत्त संसाधनों का सदुपयोग और उसके संरक्षण दोनों ही बातें हमारे धर्म ग्रथों में बताई गई है। पर भी हम आज तक जल संरक्षण के लिए सचेत नहीं हो पाए हैं। जल संकट का बड़ा कारण जरूरत से अधिक दोहन करना माना जा रहा है, उस अनुपात में हम धरती के अंदर पानी पहुंचाने में अनदेखी कर रहे हैं। जल स्रोतों की उपेक्षा कर रहे हैं।
संभालें आदिकाल के संसाधन कुएं, तालाब, नदियां : मोहनलाल
नदियों का तट कोलाहल, मन का वृंदावन सूना है। नदियों की लहरें उदास क्यों? ग्वालों की बंसी तान कहां है, इतना प्यारा मेरा देश अब सुनासुना सा लगता है : उक्त रचना के माध्यम से गुरुर के पूर्व ब्लॉक रिसोर्स को आर्डिनेटर व छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के जिला संयोजक एवं भावताचार्य मोहन लाल चतुर्वेदी ने जल संकट को लेकर वर्तमान स्थिति पर चिंता जाहिर की है। उन्होंने शासन-प्रशासन के साथ आम लोगों को जल के प्रति सचेत हो जाने की बात कही है।
उपेक्षा ही जल संकट पैदा करने का कारण
चतुर्वेदी ने कहा जल है, तो कल है। शास्त्र में कहा गया है कि इसके बिना जीवन अधूरा हो जाएगा। हमको जल की महत्ता समझ कर उसकी पूर्ति के लिए सतत प्रयास करना चाहिए। जल के लिए धरती की छलनी करने वाले संसाधनों पर रोक लगानी चाहिए, नहीं तो भविष्य में यह परेशानी और बढ़ जाएगी। पेड़ों को पानी नहीं मिलेगा। मानव के साथ पशु-पक्षियां जल के लिए तरस जाएंगे। इसलिए जल संवर्धन के लिए आदिकाल के संसाधन कुएं, तालाब, नदियों को संभालना और व्यवस्थित करना हमारी जिम्मेदारी है। इसकी उपेक्षा से इसी तरह के जल संकट पैदा होंगे।
जल की रक्षा के लिए भगवान कृष्ण ने गोपियों को सिखाया था सबक
भगवाताचार्य चुतर्वेदी ने कहा त्रेतायुग में भगवान राम ने वन गमन के समय ही बता दिए थे कि प्रकृति से मिले जीवन संसाधनों का किस तरह उपयोग किया जाए और उसका संरक्षण करें। गंगा पार जाने से पहले भक्त निषादराज ने भगवान के पैर को धोने की जिद की थी, तब गंगा जल से भगवान के पैर धोए गए थे। पुराणों और धर्म शास्त्रों के अध्ययन से पता चलता है कि जल की रक्षा के लिए भगवान कृष्ण ने यमुना नदी में बिना वस्त्र के नहाती गोपियों को किस तरह का सबक सिखाए थे। चतुर्वेदी ने कृषि प्रधान देश में हर हाल में जल के संरक्षण पर जोर दिया है। उन्होंने शासन-प्रशासन के साथ आम लोगों से तांदुला नदी को बचाने की अपील की है।
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