नदियों का तट कोलाहल, मन का वृंदावन सूना है। नदियों की लहरें उदास क्यों? ग्वालों की बंसी तान कहां है, इतना प्यारा मेरा देश अब सुनासुना सा लगता है : उक्त रचना के माध्यम से गुरुर के पूर्व ब्लॉक रिसोर्स को आर्डिनेटर व छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के जिला संयोजक एवं भावताचार्य मोहन लाल चतुर्वेदी ने जल संकट को लेकर वर्तमान स्थिति पर चिंता जाहिर की है। उन्होंने शासन-प्रशासन के साथ आम लोगों को जल के प्रति सचेत हो जाने की बात कही है।
चतुर्वेदी ने कहा जल है, तो कल है। शास्त्र में कहा गया है कि इसके बिना जीवन अधूरा हो जाएगा। हमको जल की महत्ता समझ कर उसकी पूर्ति के लिए सतत प्रयास करना चाहिए। जल के लिए धरती की छलनी करने वाले संसाधनों पर रोक लगानी चाहिए, नहीं तो भविष्य में यह परेशानी और बढ़ जाएगी। पेड़ों को पानी नहीं मिलेगा। मानव के साथ पशु-पक्षियां जल के लिए तरस जाएंगे। इसलिए जल संवर्धन के लिए आदिकाल के संसाधन कुएं, तालाब, नदियों को संभालना और व्यवस्थित करना हमारी जिम्मेदारी है। इसकी उपेक्षा से इसी तरह के जल संकट पैदा होंगे।
भगवाताचार्य चुतर्वेदी ने कहा त्रेतायुग में भगवान राम ने वन गमन के समय ही बता दिए थे कि प्रकृति से मिले जीवन संसाधनों का किस तरह उपयोग किया जाए और उसका संरक्षण करें। गंगा पार जाने से पहले भक्त निषादराज ने भगवान के पैर को धोने की जिद की थी, तब गंगा जल से भगवान के पैर धोए गए थे। पुराणों और धर्म शास्त्रों के अध्ययन से पता चलता है कि जल की रक्षा के लिए भगवान कृष्ण ने यमुना नदी में बिना वस्त्र के नहाती गोपियों को किस तरह का सबक सिखाए थे। चतुर्वेदी ने कृषि प्रधान देश में हर हाल में जल के संरक्षण पर जोर दिया है। उन्होंने शासन-प्रशासन के साथ आम लोगों से तांदुला नदी को बचाने की अपील की है।