पूरी करते हैं मनोकामना ग्रामीणों की मान्यता है कि मिट्टी के बने घोड़े चढ़ाने से हरदे लाल उनकी मनोकामना पूरी करते हैं। इस बार के देव दशहरा में भी करीब दो सौ से ज्यादा लोगों ने घोड़े चढ़ाए। इस क्षेत्र के ग्रामीणों ने हरदेलाल को भगवान का दर्जा दिया है। मन्नत पूरी होने के बाद ही वे देव दशहरा को मिट्टी का घोड़ा लेकर हरदेलाल को भेंट करने पहुंचते हैं। घोड़ा चढ़ाने के लिए डेंगरापार अ., नवागांव, घीना, कसहीकला, गड़ईनडीह, लासाटोला गांव से सेवा गाते हुए डांग डोरी लेकर रैली के रूप ग्रामीण मंदिर पहुंचे। जहां देव दशहरा पर्व धूमधाम से मनाया गया। लोगों ने यहां पूजा-अर्चना की। जिनकी मनोकामना पूरी हुई उन्होंने मिट्टी से बने घोड़े चढ़ाए। यह परंपरा लंबे समय से चली आ रही है। मन्नत पूरी होने पर यहां लोग दोबारा आते हैं।
महिलाओं का प्रवेश वर्जित महिलाओं का मंदिर में प्रवेश वर्जित है। महिलाओं का प्रसाद भी खाना वर्जित होता है। यदि कोई गर्भवती है तो उसके पति को भी प्रसाद खाने की मनाही होती है। डेंगरापार में अलग से दशहरा नहीं मनाया जाता, न ही रावण मारा जाता है। बताया गया कि इस मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।
घोड़ा चढ़ाने की परंपरा सौ साल पुरानी ग्रामीण ईश्वर साहू, गोलू देवांगन ने बताया कि करीब सौ साल से यह परंपरा चली आ रही है। जब से होश संभाले हैं, तब से हरदेलाल बाबा के मंदिर में मिट्टी का घोड़ा चढ़ाने वालों को देख रहे हैं। अब तक हजारों की संख्या में श्रद्धालु मिट्टी के घोड़े चढ़ा चुके हैं।
घोड़े की सवारी कर आए थे हरदेलाल ग्रामीण जग्गूराम साहू का कहना है कि हरदेलाल घोड़े में सवार होकर यहां आए थे और लोगों का दुख-दूर करते थे। उनके समय के लोगों ने उन्हें देवता स्वरूप मान लिया। करीब 80 साल पहले जब घीना बांध बना तब लोगों ने हरदेलाल का मंदिर बनवा दिया।
पूरी हुई मांगी गई मन्नत घीना के धिराजी राम साहू ने पोते की मन्नत मांगी थी। उनके घर पोते का जन्म हुआ। चार साल से प्रतिमा चढ़ा रहे हैं। घीना के ही रेवाराम तारम ने संतान सुख की कामना की थी। वह पूरी हुई। सुंदरा (राजनांदगांव) की फूल बाई सिन्हा ने संतान सुख मांगा था, उसे वह सुख मिला। वह भी तीन साल से प्रतिमा चढ़ा रही है। बोरगहन के फूलबाई ठाकुर आए दिन वह बीमार रहती थी। उसने स्वास्थ्य लाभ के लिए मन्नत मांगी थी, जो अब बिल्कुल स्वस्थ हो गई है। वह भी मेले में घोड़ा चढ़ाने आती है।