ब्लॉक मुख्यालय से 18 किलोमीटर दूर ग्राम पेटेचुआ के पास स्थित मां कंकालीन मैया मंदिर भक्तों के लिए आस्था का केन्द्र है। मां कंकालिन के नाम से ही इस गांव का नाम कंकालिन पड़ गया। मां कंकालीन मंदिर खारुन नदी का उद्गम स्थल है, जो चारों ओर जंगलों से घिरा हुआ है, जो मन को मोहित करता है। जानकारों ने बताया कि मां कंकालीन धरती चीरकर प्रकट हुई हंै और सिद्धपीठ है। पहले यह मंदिर खुले आसमान के नीचे स्थित था, बाद में मंदिर बनाया गया।
मंदिर में पितृमोक्ष के बाद प्रथम मंगलवार को देव दशहरा उत्सव मनाया जाता है, जो देश का पहला दशहरा है। इसमें हजारों की संख्या में अपनी मन्नतें लेकर श्रद्धालु पहुंचते हैं और मां कंकालीन से अपनी मुरादें मांगते हैं। मंदिर प्रांगण में सुबह से ही भक्तों की भीड़ लग जाती है। देव दशहरा में आसपास के ग्रामीण बाजे-गाजे, डांग-डोरी लेकर पहुंचते हंै। कहते हैं, जो भी सच्चे दिल से मां कंकालीन से मनोकामना करता है मां उसकी मनोकामना जरूर पूरा करती है।
कंकालीन मंदिर में देश का प्रथम देव दशहरा मनाने के साथ ही सबसे पहले होलिका दहन भी होता है, जो फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष के प्रथम मंगलवार को माता जी का फाग होता है।
गांव के नाम को लेकर जानकारों ने बताया कि पहले गांव का नाम ग्राम पेटेचुआ था। मां कंकालीन की स्थापना के बाद से ग्राम का नाम बदलकर कंकालीन पेटेचुआ किया गया, तब से लेकर अब ग्राम को कंकालीन पेटेचुआ के नाम से जाना जाता है।
समिति एवं ग्रामीणों ने शासन से ग्राम कंकालीन पेटेचुआ में स्थित मां कंकालीन मंदिर को पर्यटन स्थल घोषित करने की मांग की है, क्योंकि यह मंदिर 700-800 साल से आस्था का केन्द्र है। यहां दूर-दूर से मंदिर दर्शन करने हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते है और अपनी मुरादें पुरी करते हैं। पंचमी पर्व पर मां कंकालीन की पूजा पाठ कर विशेष शृंगार किया जाता है। मंदिर प्रांगण में प्रतिदिन माता सेवा पार्टियां भजन गाते हैं।