वर्षों की इस परम्परा के अनुसार शनिवार को गांव में धूमधाम व उत्साह के साथ दिवाली मनाई जाएगी। जिले के दर्जनभर गांव के ग्रामीण भी शामिल होकर इस अनोखी दिवाली के गवाह बनेंगे। जिसकी तैयारी ग्रामीणों ने कर ली है। यहां गांव के सिदार देव मंदिर में विशेष पूजा कर पर्व मनाएंगे। बताया जाता है कि दिवाली, होली, हरेली व पोला त्योहार एक सप्ताह पहले ही मनाया जाता है। ऐसा क्यों होता है इस का सही जवाब ग्रामीणों के पास भी नहीं है। वर्षों की परंपरा को आज भी ग्रामीण आस्था व विश्वास के साथ जीवित रखे हुए हैं।
ग्रामीण रामावतार ने बताया कि उनके पूर्वजों ने भी कभी उन्हें इस परंपरा की शुरुआत से परिचित नहीं कराया। शायद उन्हें भी परंपरा के समय का अनुमान नहीं हो। अब हम भी इस परंपरा से अपने बेटे, नाती-पोतों को परिचित करवा रहे हैं, ताकि परंपरा सदियों तक जीवित रहे।
ग्रामीण मदन लाल व अन्य लोगों के मुताबिक यहां कई सालों पहले सिदार नाम के एक बुजुर्ग रहने आए थे। उनकी चमत्कारिक शक्तियों एवं बातों से गांव के लोगों की परेशानियां दूर होने लगीं। लोगों में उनके प्रति आस्था व श्रद्धा का विश्वास उमडऩे लगा। समय गुरजने के बाद सिदार देव के मंदिर की स्थापना की गई। मान्यता है कि किसी किसान को स्वप्न देखकर सिदार देव ने कहा था कि प्रतिवर्ष दीपावली, होली, हरेली व पोला ये चार त्योहार हिंदी पंचांग में तय तिथि से एक सप्ताह पूर्व मनाए जाएं, ताकि गांव में उनका मान बना रहे। तब से ये चार त्योहार प्रतिवर्ष ग्रामदेव के कथनानुसार मनाते आ रहे हैं।
यह गांव बालोद जिले की सीमा पर लगे होने के कारण गुरुर विकासखंड के ग्राम अरकार, जोरातराई सहित दर्जनभर से अधिक गांव के लोग अनोखी दिवाली को देखने सेमरा जाते हैं। इस दिन घरों के सामने रंगोली बनाकर दीपोत्सव का स्वागत करते हैं।