पहले वाहन चालकों द्वारा प्यास बुझाने के लिए छागल का उपयोग किया जाता था। अधिकांश वाहनों में छागल बंधा रहता था। लेकिन अब छागल के बदले मिनरल वाटर (Mineral Water) की बोतलें गीले कपड़ों में लिपटी दिखाई पड़ती है। बाजार से मटका व छागल की मांग कम हो गई है। वहीं मटके की पूछ परख धीरे-धीरे कम हो रही है। ठंडे पानी का पाउच व मिनरल वाटर (Mineral Water) व दूसरे शीतल पेय पदार्थो का प्रचलन इतना बढ़ गया है कि लोग ठंडे पानी (Chilled Water) के लिए छागल रखना पसंद ही नहीं करते हैं। वहीं घरों में मटकों की जरूरत फ्रीज पूरी कर रही है।
कुम्हारों के रोजी-रोटी पर पड़ रहा प्रभाव
छोटी मटकी 30 से 40 रुपए प्रति नग, बड़ा मटका 50 से 70 रुपए, नल की मटकी 100 रुपए, बड़ी नांद 400 रुपए में बिक रही हैं। बुजुर्गों का कहना है कि मिट्टी के बर्तनों में पीने का पानी शुद्ध (Pure drinking water) और अत्यधिक ठंडा रहता है। इस पानी से सर्दी जुकाम खांसी जैसी बीमारियां नहीं होती है। वहीं कारोबारियों के कहना है कि वर्तमान में नगर के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्र की दुकानों में भी चिल्ड पानी की कैनों का क्रेज बढ़ गया हैं। अधिकतर दुकानदार इसका उपयोग कर रहे हैं। इसके चलते देशी फ्रीज का चलन कम होने लगा है। कु्हारों के रोजी रोटी पर प्रभाव पड़ रहा है।
Chhattisgarh से जुड़ी
Hindi News के अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें
Facebook पर Like करें, Follow करें
Twitter और
Instagram पर ..
CG Lok sabha election Result 2019 से जुड़ी ताज़ातरीन ख़बरों, LIVE अपडेट तथा चुनाव कार्यक्रम के लिए Download करें
patrika Hindi News