एक हेक्टेयर यानि ढाई एकड़ जमीन में धान की खेती के लिए 160 सेमी पानी की जरूरत होती है। जानकारों के मुताबिक इतना पानी लगभग 50 लाख लीटर होता है। मौजूदा समय में जिले में ग्रीष्मकालीन धान का कुल रकबा 3220 हेक्टेयर है जिसके अनुसार ग्रीष्मकालीन धान के उत्पादन के लिए अरबों लीटर भूजल का दोहन किया जाता है। जलस्तर के घटने की यह भी एक प्रमुख वजह मानी जाती है। जिले में पर्यावरणविदों का मानना है कि किसान अगर इस पानी का उपयोग सब्जी या अन्य फायदेमंद फसलों के उत्पादन के लिए करें तो बेहतर होगा। जिले में धान का पर्याप्त उत्पादन खरीद फसल से ही हो जाता है लिहाजा यदि किसान ग्रीष्मकालीन धान के बजाए दलहन-तिलहन, सब्जी, मक्के जैसी अन्य फसलों की खेती करें तो यह गिरते भूजल को बचाने के लिए एक बड़ी पहल साबित हो सकती है।
जानकारी के अनुसार दलहन-तिलहन तथा अन्य फसलों की तुलना में धान की फसल में तीन गुना अधिक तक पानी की खपत होती है। दलहन तथा तिलहन में प्रति हेक्टेयर में 30.32 सेमी पानी की खपत होती है वहीं गेंहू में 50 सेमी पानी की खपत तथा मक्के की फसल में 60 सेमी पानी की खपत होती है। इन फसलों की तुलना में धान की फसल में 150.160 सेमी पानी की खपत होती है। सामान्य वर्षा तथा बेहतर भूजल होने पर ग्रीष्मकालीन धान की फसल का उत्पादन करना सामान्य होता है परंतु कमजोर बारिश तथा गिरते भूजल की स्थिति में ग्रीष्मकालीन धान की पैदावार करने में भूजल का अत्यधिक दोहन होता है।
शासन द्वारा ग्रीष्मकालीन धान की फसल के बजाए दलहन- तिलहन, मक्का जैसी अन्य फसलों का उत्पादन करने के लिए किसानों को निर्देशित किया गया है। विभाग के मैदानी अमले द्वारा घूम-घूमकर किसानों को ग्रीष्मकालीन धान की पैदावार ना करने के लिए निर्देशित किया जा रहा है, इसके बावजूद जिन किसानों द्वारा ग्रीष्मकालीन धान की पैदावार ली जाएगी उन किसानों के नलकूप का विद्युत कनेक्शन तत्काल काट दिया जाएगा।
एमडी मानकर, उप संचालक, कृषि विभाग, बलौदा बाजार