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कृषि विभाग ने किसानों को दी चेतावनी, कहा- धान की फसल ली तो कटेगा पंप कनेक्शन

locationबलोदा बाज़ारPublished: Nov 17, 2017 05:41:18 pm

विभाग के मैदानी अमले द्वारा घूम-घूमकर किसानों को ग्रीष्मकालीन धान की पैदावार ना करने के लिए निर्देशित किया जा रहा है

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बलौदाबाजार. इस वर्ष कमजोर बारिश की वजह से किसानों को ग्रीष्मकालीन धान की फसल का उत्पादन ना करने तथा ग्रीष्मकालीन धान की बजाए दलहन-तिलहन, गेंहू, मक्का तथा अन्य फसलों के उत्पादन पर जोर देने के लिए राज्य शासन ने किसानों को समझाइश दी है।
प्रशासन द्वारा समझाइश देने के बाद भी ग्रीष्मकालीन धान का उत्पादन करने वाले किसानों को चेतावनी देते हुए ग्रीष्मकालीन धान का उत्पादन करने वाले किसानों का पंप कनेक्शन काट दिए जाने का अल्टीमेटम भी दिया है। शासन की मंशा इस वर्ष कमजोर बारिश होने की वजह से आगामी ग्रीष्मकाल के लिए अधिक से अधिक पानी का संरक्षण करना है ताकि आने वाले ग्रीष्मकाल में इसका उपयोग पेयजल के लिए किया जा सके।विदित हो कि अन्य फसलों की तुलना में धान की फसल में अधिक पानी की खपत होती है। जिला प्रशासन भी पानी का संरक्षण करने के लिए संजीदा हो गया है तथा आगामी ग्रीष्मकाल में लोगों को पर्याप्त पेयजल उपलब्ध कराना जिला प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती है। खरीफ फसल का धान जहां मानसून पर पूरी तरह से निर्भर होता है वहीं ग्रीष्मकालीन धान के लिए केवल भूजल का ही उपयोग किया जाता है तथा ग्रीष्मकालीन धान के लिए किसानों द्वारा जमकर भूजल का दोहन किया जाता है। ग्रीष्मकालीन धान की खेती करने की बजाए दलहन-तिलहन, मक्का आदि अन्य फसलों की खेती करने पर जोर दिया गया है तथा किसानों को इसके लिए समझाइश भी दी गयी है। उक्त समझाइश के बाद राज्य शासन के निर्णय के बाद अब जिले में ग्रीष्मकालीन धान की पैदावार करने वाले किसानों को पंप कनेक्शन काटने की चेतावनी दी गयी है।
फसल के लिए एक हेक्टेयर में 50 लाख लीटर पानी की जरूर
एक हेक्टेयर यानि ढाई एकड़ जमीन में धान की खेती के लिए 160 सेमी पानी की जरूरत होती है। जानकारों के मुताबिक इतना पानी लगभग 50 लाख लीटर होता है। मौजूदा समय में जिले में ग्रीष्मकालीन धान का कुल रकबा 3220 हेक्टेयर है जिसके अनुसार ग्रीष्मकालीन धान के उत्पादन के लिए अरबों लीटर भूजल का दोहन किया जाता है। जलस्तर के घटने की यह भी एक प्रमुख वजह मानी जाती है। जिले में पर्यावरणविदों का मानना है कि किसान अगर इस पानी का उपयोग सब्जी या अन्य फायदेमंद फसलों के उत्पादन के लिए करें तो बेहतर होगा। जिले में धान का पर्याप्त उत्पादन खरीद फसल से ही हो जाता है लिहाजा यदि किसान ग्रीष्मकालीन धान के बजाए दलहन-तिलहन, सब्जी, मक्के जैसी अन्य फसलों की खेती करें तो यह गिरते भूजल को बचाने के लिए एक बड़ी पहल साबित हो सकती है।
अन्य फसलों की तुलना में धान में तीन गुना पानी की खपत
जानकारी के अनुसार दलहन-तिलहन तथा अन्य फसलों की तुलना में धान की फसल में तीन गुना अधिक तक पानी की खपत होती है। दलहन तथा तिलहन में प्रति हेक्टेयर में 30.32 सेमी पानी की खपत होती है वहीं गेंहू में 50 सेमी पानी की खपत तथा मक्के की फसल में 60 सेमी पानी की खपत होती है। इन फसलों की तुलना में धान की फसल में 150.160 सेमी पानी की खपत होती है। सामान्य वर्षा तथा बेहतर भूजल होने पर ग्रीष्मकालीन धान की फसल का उत्पादन करना सामान्य होता है परंतु कमजोर बारिश तथा गिरते भूजल की स्थिति में ग्रीष्मकालीन धान की पैदावार करने में भूजल का अत्यधिक दोहन होता है।
दिए हैं निर्देश
शासन द्वारा ग्रीष्मकालीन धान की फसल के बजाए दलहन- तिलहन, मक्का जैसी अन्य फसलों का उत्पादन करने के लिए किसानों को निर्देशित किया गया है। विभाग के मैदानी अमले द्वारा घूम-घूमकर किसानों को ग्रीष्मकालीन धान की पैदावार ना करने के लिए निर्देशित किया जा रहा है, इसके बावजूद जिन किसानों द्वारा ग्रीष्मकालीन धान की पैदावार ली जाएगी उन किसानों के नलकूप का विद्युत कनेक्शन तत्काल काट दिया जाएगा।
एमडी मानकर, उप संचालक, कृषि विभाग, बलौदा बाजार
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