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गंगा जमुनी तहजीब रखने वाला बलरामपुर में मोहर्रम का अलग महत्व

locationबलरामपुरPublished: Oct 01, 2017 05:00:49 pm

Submitted by:

Ruchi Sharma

गंगा जमुनी तहजीब रखने वाला बलरामपुर में मोहर्रम का अलग महत्व

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बलरामपुर. बलरामपुर एक जिला जो पूरे प्रदेश में गंगा जमुनी तहजीब का एक अनूठी मिशाल पेश करता है। किसी भी धर्म का त्यौहार क्यों न हो सभी धर्मो के लोग उस त्यौहार को एक साथ मिलजुल कर मनाते है।इसी तरह बलरामपुर का मोहर्रम ऐतिहासिक होता है। जिले में मोहर्रम के दौरान रखी जाने वाली ताजिया देखने लायक होती है। नायाब कारीगरी से बनी ताजियां लोगों का आकर्षण का केन्द्र होती है। इसमें सबसे बड़ी खूबी यह होती है कि इस त्योहार को हिन्दू भी बड़े अकीदत के साथ मनाते है। बलरामपुर जिले में होने वाली ताजियादारी में अपने घर के दरवाजे में ताजिया रखने वालों में हिन्दुओं की संख्या कम नहीं रहती।

बलरामपुर जैसी ताजियादार हिन्दुस्तान के किसी भी हिस्से में देखने को नहीं मिलती। नक्काशी बेलबूटों की नायाब कारीगरी यहां की ताजियों में देखने को मिलती है। यहां ऊंची से ऊंची ताजिया रखने की परम्परा है, सदर विकास खण्ड बलरामपुर के ग्राम पखिया में 150 फिट ऊंची ताजिया रखी जाती है। इसके अलावा 50 से 70, 80, 100 फिट की ताजियों की कोई गिनती नहीं रहती। अपनी अकीदत व मनौती के अनुसार यहां ताजिया खरीदने में जरा भी कंजूसी नहीं दिखाते, खासतौर से ग्रामीण क्षेत्रों में रखी जाने वाली ताजियों की कीमत अधिक होती है।
पांच सौ से लेकर डेढ़ लाख तक ताजियों की कीमत अदा करके लोग अपने गांव व घर पर रखते है। मोहर्रम की 9वीं तारीख को रखी गई ताजियों एहतराम ने पूरी रात जागकर गुजारते है। मोहर्रम की 10वीं को रंजीदा माहौल में ताजियों को मसनूई कर्बला पर ले जाकर सुपुर्देखाक करते है। इस जी खोलकर तबररूकात की तकसीम होती है। कोई ऐसा लोआजमात नहीं बचता जो नजरे हुसैन के नाम पर तकसीम न होता हो।
तकसीम की जाने वाले तबररूकात को अच्छी लागत से तैयार किया जाता है। विगत 15 से बीस सालों से रौजे मुबारक मस्जिदों की नकल बनाने का ज्यादा प्रचलन हो गया है मनौती में रखी जाने वाली ताजियों के अतिरिक्त ऐसाल सबाव के लिये रौजे मुबारक व मस्जिदों की नकल बनाने वालों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई है, दुनिया की शायद कोई भी खूबसूरत मस्जिद या बुर्जुगानेदीन के रौजे मुबारक बचता हो जिसका हूबहू नक्शा न बनाया जाता है।
ऐसी परम्परा के चलते अब बलरामपुर मोहर्रम में और भी रौनक आ गई है। मोहर्रम की 9वीं को यहां मनौती के बिना पर पायग बनने की परम्परा है। हजारों की तादाद में मोहर्रम की नवीं को लोग कमर बंद के साथ घुघरू घंटी बांधकर हाथ में मुरछल लेकर पूरी रात सारी ताजियों पर हाजिरी लगाते है। पूरी रात भ्रमण करने के उपरान्त 10वीं को पूरे एहतराम के साथ ये पायग अपना कमर बन्द उतार कर अपनी मनौती को पूरा करते है। शिया समुदाय द्वारा भी मोहर्रम बड़ी अकीदत के साथ मनाया जाता है।
मोहर्रम की पहली तारीख से इनके घरों में नोहा ख्वानी का सिलसिला चलता है जो चहेल्लुम तक जारी रहता है। शिया समुदाय के हर घर में इमामबाड़े में ताजिया रखी जाती है। 10वीं की सुबह सीनाकोबी करते इनका जुलूस निकलता है जो इनके मखसूस स्थान पर जाकर खत्म होता है। जिले के उतरौला तहसील में शिया समुदाय की संख्या ज्यादा होने से इनका मोहर्रम यहां खास तौर से आकर्षण का केन्द्र रहता है।
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