scriptये तस्वीर किसी गांव की सडक़ की नहीं बल्कि नेशनल हाइवे की है, जिम्मेदारों को ये देखकर शर्म भी नहीं आती | NH: This picture is not of any village but of National highway | Patrika News

ये तस्वीर किसी गांव की सडक़ की नहीं बल्कि नेशनल हाइवे की है, जिम्मेदारों को ये देखकर शर्म भी नहीं आती

locationबलरामपुरPublished: Jul 07, 2020 11:54:09 pm

National Highway: छत्तीसगढ़ को झारखंड से जोडऩे वाले नेशनल हाइवे पर ऐसे कई बड़े-बड़े गड्ढों ने ले लिया है तालाब का रूप, 50 किमी अतिरिक्त दूरी तय करने को विवश हैं लोग

ये तस्वीर किसी गांव की सडक़ की नहीं बल्कि नेशनल हाइवे की है, जिम्मेदारों को ये देखकर शर्म भी नहीं आती

National Highway road

रामानुजगंज. चौंकिये मत, यह कोई तालाब या नाला नहीं जिसे पार करने के लिए नाव या पुलिया की जरूरत हो। यह रामानुजगंज-अम्बिकापुर का नेशनल हाइवे 343 (National Highway) है। इसी नेशनल हाइवे 343 से होकर रामानुजगंजवासी सहित सैकड़ों वाहन प्रतिदिन अंबिकापुर आना जाना करते हैं।
विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों को ये नजारा देख शर्म भी नहीं आती। अब तो ऐसी स्थिति निर्मित हो गई है कि रामानुजगंज वासियों को अंबिकापुर जाने के लिए 110 किलोमीटर की जगह 160 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ रही है। मजबूरी में अब रामानुजगंज वासी वाड्रफनगर होकर अंबिकापुर आना-जाना कर रहे है।
इस प्रकार अतिरिक्त 50 किलोमीटर का सफर तय करना मजबूरी हो गई है। सबसे बुरी स्थिति गम्भीर रूप से बीमार या घायल व्यक्तियों की हो जाती है। यदि इलाज के लिए अम्बिकापुर या आगे जाना हो तो समय से पहुंच पाएंगे या नही इसका भय बना रहता है तो वहीं पड़ोसी राज्य झारखंड या उत्तरप्रदेश इलाज के लिए जाते हैं तो उसके बाद कोरोना की चपेट में आने का भय बना रहता है।
यदि पड़ोसी राज्यों से सही सलामत आ भी गए तो अपने यहां 14 या 28 दिन का क्वारेंन्टाइन होना पड़ेगा, इसका भी भय बना रहता है। आम जनो के साथ एक तरफ कुआं और दूसरी तरफ खाई वाली स्थिति निर्मित हो गई है।

गौरतलब है कि नेशनल हाइवे (National Highway) 343 की स्थिति पिछले वर्ष तक बलरामपुर एवं राजपुर के बीच अत्यंत जर्जर थी, जबकि बलरामपुर से रामानुजगंज तक रोड ठीक ठाक थी परंतु अब बलरामपुर से रामानुजगंज तक की रोड की भी स्थिति अत्यंत दयनीय हो गई है।
पहले जहां लोग राजपुर से निकलने के बाद जर्जर सडक़ पार करते हुए बलरामपुर तक पहुंचते थे तो वह राहत महसूस करते थे कि अब रामानुजगंज तक अच्छी सडक़ मिलेगी परंतु अब तो बलरामपुर से राजपुर तक जैसे ही बलरामपुर रामानुजगंज के बीच के रोड की स्थिति हो गई है। इस रोड में लोग अब सफर करने से डरने लगे हैं।
नेशनल हाइवे 343 की स्थिति अत्यंत जर्जर होने के बाद भी नेशनल हाइवे के अधिकारी इसे देखने तक की जहमत नहीं उठाते। यदि नेशनल हाइवे के अधिकारी चाहे तो कम से कम गड्ढा तो भरवा ही सकते हैं। सडक़ की बदतर स्थिति के कारण आम जनता में आक्रोश बढ़ता जा रहा है।
समय रहते यदि प्रशासन ने इस ओर पहल नहीं की तो कभी भी जन आक्रोश भडक़ सकता है। बलरामपुर-रामानुजगंज जिले का मुख्यालय बलरामपुर में स्थित है जहां कार्यरत अधिकांश कर्मचारी रामानुजगंज में निवास करते हैं। वही जिले के सभी वरिष्ठ अधिकारियों का भी आवागमन होता रहता है परंतु इस ओर किसी का ध्यान नहीं जाना समझ से परे है।

मुख्यमंत्री की भी नहीं सुनते अधिकारी
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जब पहली बार बलरामपुर रामानुजगंज जिले के ग्राम तातापानी में पहुंचे थे तो लोगों ने उन्हें नेशनल हाइवे 343की जर्जर स्थिति के बारे में अवगत कराया था।
इस पर उन्होंने नेशनल हाइवे के अधिकारियों निर्देश देते हुए कहा था कि एक माह के अंदर जितने भी गड्ढे हैं उन्हें भरें, परंतु नेशनल हाइवे के अधिकारियों के कान में जूं तक नहीं रेंगी। आज भी स्थिति जस की तस है।

दो-दो फीट तक हो गए हैं गड्ढे
नेशनल हाइवे 343 पर राजपुर से रामानुजगंज के बीच कई ऐसी जगह है, जहां पर सडक़ पर दो-दो फीट के गड्ढे हो गए हैं। अनजान या बाहरी व्यक्ति जब इस सडक़ से जाता है तो उनके लिए बहुत ही मुश्किल खड़ी होती है। ऐसा कोई दिन नहीं जिस दिन इन गड्ढों के कारण कोई न कोई दुर्घटना न घटती हो।

इलाज के लिए पड़ोसी राज्यों का रुख
नेशनल हाइवे 343 की ऐसी जर्जर स्थिति हो गई है कि जब रामानुजगंज वासियों को इलाज के लिए अंबिकापुर जाना होता है तो वह जाने से परहेज करते हैं। इलाज के लिए पहले जहां आम आदमी अंबिकापुर, बिलासपुर, रायपुर जाते थे, वहीं अब लोग सडक़ की दुर्दशा के कारण पड़ोसी राज्यों का रूख कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में गंभीर रूप से बीमार मरीज या गंभीर घायल व्यक्तियों की जान पर आफत बन आती है।

गड्ढे तो भरवा दे विभाग
नेशनल हाइवे की किस्मत जब सुधरे तब सुधरे, परंतु जो जगह-जगह बड़े-बड़े गड्ढे हो गए है कम से कम विभाग उन्हें तो भरवा ही सकता है। प्रत्येक वर्ष सडक़ के मरम्मत के नाम पर राशि आती है परंतु अधिकारियों द्वारा खानापूर्ति कर पूरी राशि का बंदरबांट कर दिया जाता है। अधिकारियों को इन गड्ढों को भरवाना तो दूर देखने तक की फुर्सत नहीं है।
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