केन्द्र से लेकर राज्य तक भाजपा सत्ता में है तो उस पर दबाव होना आम बात है। टिकटों के वितरण में देरी का यह भी एक मुख्य कारण रहा है। भाजपा ने लगभग सभी सीटों के लिये अपने प्रत्याशी घोषित करने में थोड़ी शिथिलता दिखाई।आंतरिक कारण चाहे जो भी रहे हों लेकिन टिकट वितरण मे संजीदगी इतनी हावी रही की वार्ड मेम्बर से लेकर अध्यक्ष पदों के लिये उम्मीदवारों के चयन मे इन्टरव्यू और उनका पार्टी के बाहरी टीमों से आंतरिक सर्वे तक कराये गये हैं ।उतरौला के पदासीन रहे नगर पालिका के अध्यक्ष कॊ टिकट के लिये दिन रात एक कर देने पड़े हैं इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है की पार्टी इस चुनाव कॊ किस नजरिये से देख रही है ।हालांकी कूछ सीटों पर उपयुक्त व जिताऊ प्रत्याशी न उतारने के आरोप लग रहे हैं .लेकिन भाजपा हाईकमान इसे गम्भीरता से नही लेते हुये मैदान मार लेने की बात करते हुये इसे विरिधियौ की शजिश करार दे रही है .सपा काँग्रेस बसपा ने अपने प्रत्याशियों कॊ उतारने मे काफी तेजी दिखाई है .इससे यही साफ होता है की ये पार्टियाँ भले ही इस चुनाव कॊ लेकर गम्भीर बयान दे रही हों लेकिन इनपर कोई खास दबाव नही है ।नगर पालिका व पंचायत चुनाव की जन चर्चा इस गुनगुनी सर्दी मे सुबह शाम चाय के होटलों पर आमजन के बीच एक चर्चा का प्रमुख मुद्दा बन चुका है।
अलग अलग राय रखने वाले लोग जातीय आंकडॆ ,उपयुक्त नेता ,घटताबढ़ता जनाधार ,मौहल्लेवार वोटों की गड्ना , प्रत्याशियों के चयन मे पर्टिओ की त्रुटि से लेकर अपने वाले प्रत्याशी कॊ मिलने वाले सटीक वोटों का आंकडा रखते हुये जिताने हराने , उनकी तारीफ मे कोई कौर कसर छोड़ते नही चूकते देखे जा सकते हैं । फिलहाल चुनाव का प्रचार अब अपने शबाब पर आने कॊ है और बुद्धिजीवी मतदाता चुपचाप सबकी सुनकर हामी भरने मे मशगूल हैं। अब इस चुनाव मे कब क्या नया राजनैतिक पैंतरा बदल जाये ये कहना जल्दबाजी होगी लेकिन तुलसीपुर, पचपेड्वा, उतरौला व सदर बलरामपुर के सीटों के लिये किसी भी प्रत्याशी के लिये ये चुनाव आसान नही होगा । सदर सीट पर काफी रोचक चुनावी संग्राम के कयास लगाये जा रहे हैं ।