scriptआजादी के 75 वर्ष बाद भी गांव में पहुंचने के लिए नाव ही एकमात्र सहारा | Even after 75 years of independence, boat is only way to reach village | Patrika News
बलरामपुर

आजादी के 75 वर्ष बाद भी गांव में पहुंचने के लिए नाव ही एकमात्र सहारा

चुनाव के दौरान नाव के सहारे ही गांव में पहुंचती हैं पोलिंग पार्टियां

बलरामपुरApr 23, 2021 / 04:51 pm

Neeraj Patel

1_6.jpg

पत्रिका न्यूज नेटवर्क

बलरामपुर. जिले में एक ऐसा गांव जो आज भी विकास की मुख्यधारा से कटा हुआ है। आजादी के 75 वर्ष बाद भी इस गांव में पहुंचने के लिए नाव ही एकमात्र सहारा है। चुनाव के दौरान पोलिंग पार्टियां भी नाव के सहारे ही गांव में पहुंचती हैं। उतरौला तहसील के अंतर्गत सिद्धार्थनगर की सीमा पर बसा है गांव भरवलिया। इस गांव तक पहुंचने के लिए 4 किलोमीटर पगडंडी रास्तों का सहारा लेना पड़ता है। पगडंडी खत्म होती है तो सामने राप्ती नदी दिखाई पड़ती है। राप्ती नदी को नाव के सहारे पार कर इस गांव में पहुंचा जा सकता है। लोकतंत्र में चुनाव के महोत्सव होते हैं। पोलिंग पार्टियां भी नाव के सहारे ही इस गांव में पहुंचती हैं। लगभग 3000 की आबादी वाले भरवलिया गांव में सरकारी सुविधाओं का पूरी तरह अभाव है। एकमात्र सरकारी स्कूल को छोड़ दिया जाए तो यहां के लोग तमाम सरकारी सुविधाओं से मेहरूम है।

ग्रामीण बताते हैं कि बरसात के दिनों में जब नदी अपने शबाब पर होती है तो यहां के लोग महीनों तक अपने घरों में कैद रहते हैं। ब्लॉक मुख्यालय, तहसील मुख्यालय या जिला मुख्यालय तक पहुंचना यहां के लोगों के लिए टेढ़ी खीर है। आकस्मिक इलाज की सुविधा न मिलने से असमय लोग काल के गाल में समा जाते हैं। राप्ती नदी की कटान से गांव को भी खतरा हो गया है। गत वर्ष गांव को राप्ती नदी की कटान से बचाने के लिए कार्ययोजना तैयार की गई थी लेकिन वह भी काम अधूरा पड़ा है। नदी के मुहाने पर बने तमाम घर खंडहर हो चुके हैं। कई परिवार गांव से पलायन कर चुके हैं। इस गांव तक पहुंचने के लिए सड़क का कोई संपर्क मार्ग नहीं है।

पंचायत चुनाव हो रहे हैं और ग्रामीणों ने लगातार एक पुल के जरिए इस गांव को तहसील मुख्यालय से जोड़ने की मांग की थी लेकिन वह अभी तक पूरी नहीं हुई। जूनियर हाई स्कूल तक विद्यालय गांव में है। आगे की पढ़ाई के लिए छात्रों को गांव छोड़ना पड़ता है। जो परिवार सक्षम है उनके बच्चे गांव छोड़कर पढ़ाई कर लेते हैं लेकिन जो परिवार सक्षम नहीं है उनके बच्चे पढ़ाई ही छोड़ देते हैं।

विकास के नाम पर एक बदनुमा दाग

21वीं सदी के भारत में भरवलिया गांव की तस्वीर विकास के नाम पर एक बदनुमा दाग ही है जिस को मिटाने के लिए ना तो सरकारी योजनाएं बन रही हैं और न ही यहां के नेता इस ओर ध्यान दे रहे हैं। पिछड़ेपन की दास्तां कह रही भरवलिया गांव की सच्चाई यहां के लोगों की नियति बन चुकी है। जिस की पीड़ा ग्रामीणों के मुख से ही सुनी जा सकती है।

Home / Balrampur / आजादी के 75 वर्ष बाद भी गांव में पहुंचने के लिए नाव ही एकमात्र सहारा

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो