नेपाल के तटवर्ती गांवों से लेकर शहर के प्रमुख गलियों में कच्ची शराब का धंधा कुटीर उद्योग के रूप में फैल चुका है। यही नहीं नेपाल से तस्करी कर शराब यहां सस्ते दामों में बेची जा रही है। आबकारी व पुलिस विभाग रस्म अदायगी तक सिमट कर रह गया है। वहीं मेडिकल स्टोर पर स्प्रिट बेची जा रही है। हालांकि बलरामपुर में शराब से मौत होने का कोई मामला अब तक सामने नहीं आया है।
जिले के 801 ग्राम पंचायतों में करीब 80 गांवों में धंधा कुटीर उद्योग के रूप में फल-फूल रहा है। इसमें महिलाएं भी बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहीं हैं। आबकारी विभाग के एक अफसर की मानें तो संसाधनों व महिला आरक्षी के अभाव में छापेमारी करना दुश्वार हो रहा है। कारण दो वाहनों में एक आए दिन खराब रहता है। आबकारी अधिकारी सहित तीन निरीक्षक, आठ आरक्षी व एक प्रधान आरक्षी की तैनाती है। इसमें एक महिला आरक्षी शामिल है। जिसके अवकाश पर चले जाने पर अभियान के दौरान दिक्कतें आती हैं।
नेपाल के तटवर्ती गांवों से तैयार होने वाली शराब शहर के प्रमुख गलियों व हाट-बाजारों तक पहुंचाई जाती है। इसमें पुलिस की संलिप्तता से इनकार नहीं किया जा सकता है। तुलसीपुर के जरवा कोतवाली क्षेत्र के कुशहवा, जुगुनभरिया, कन्हईडीह, मोहकमपुर, सोनगढ़ा, मुतेहरा, जुगलीपुर में शराब बनाने का धंधा चल रहा है। गैंसड़ी क्षेत्र के बेतहनिया व सगरापुर में शराब बनाने का कार्य किया जाता है। उतरौला के रेहराबाजार थाना क्षेत्र के रघुनाथपुर, मंगुरहवा, मोहम्मदनगर, जाफराबाद, मसीहाबाद, बिलरिया, कुरकुट, उतरौला कोतवाली क्षेत्र के गुमड़ी, गिद्धौर, शिवपुर महंत व टेढ़ी नदी के किनारे अवैध शराब बनाने का कारोबार किया जाता है। शराब तैयार करने के लिए डायजापाम, यूरिया, नौसादर, ऑक्सीटोसिन जैसे हानिकारक रसायनों का प्रयोग किया जाता है। जिला आबकारी अधिकारी नीरज वर्मा का कहना है कि करीब 500 लोगों की गिरफ्तारी की गई है।