बाढ़ जिले के लिये एक त्रासदी बन चुकी है। 02 जून के पहले आयी बाढ़ ने जिला प्रशासन को उसकी तैयारियों से अवगत करा दिया। तुलसीपुर तहसील के महराजगंज तराई इलाके की खरझार पहाड़ी नाले में आने वाला सैलाब भयानक त्रासदी मचाता है। गत वर्ष 2017 में जिले में आयी बाढ़ ने अपने पिछले सारे रिकार्ड तोड डाले थे। हजारों एकड़ फसले तबाह हो गयी। सैकडों लोग बेघर हो गये और तीन दर्जन जिन्दगियां बाढ की भेंट चढ गयी। बाढ़ पीड़ितों का दर्द यही था कि खरझार पहाडी नाले पर एक तटबन्ध बना दिया जाय। गतवर्ष की त्रासदी के बाद तमाम अधिकारी नेता आये आश्वासनो का दौर चला और बाँध निर्माण का वादा किया गया लेकिन अब फिर यह पूरा इलाका बाढ के मुहाने पर खड़ा है लेकिन तटबन्ध नहीं बना।
देर से शुरू हुए कार्य ने अधूरी की योजनाएं राप्ती नदी के तटवर्ती इलाको में बसे सैकडों गांव कटान की चपेट में आते हैं। इनको बचाने के लिये राप्ती नदी पर तटबन्ध बनाये गए हैं। चन्दापुर का तटबन्ध वर्ष 2014 में कटा था, जिसके कारण 200 से ज्यादा गाँव प्रभावित होते हैं। उतरौला तहसील का वभनपुरा में तटबन्ध न होने से भी गलभग 150 गाँव प्रतिवर्ष बाढ की चपेट में आते थे। सरकार ने इन दोनों से थाना पर नदी को डायवर्ट करने की योजना बनाई। लेकिन देरी से शुरु हुये कार्य से यह दोनो ही योजनाए अभी तक पूरी नहीं हो सकी है। जहाँ तटबन्ध बनाये भी गये, वो मानक के अनुरुप नहीं बने और पहली ही बारिश में तटबन्ध में दरारे आ गयी। मिट्टी के साथ ही बोल्डर भी जगह-जगह से धँस गये। बाढ पीड़ितों का कहना है कि अभी तो यह शुरुआत है, जिस तरह राप्ती नदी का जल प्रलय कहर बरपाते है उनके जल प्रवाह को रोक पाना इन तटबन्धो के बस की बात नही।
बाढ़ से प्रभावित 17 स्थानों को किया गया चिन्हित वर्ष 2017 की बाढ को दृष्टिगत रखते हुये जिला प्रशासन और बाढ़ खण्ड ने 17 अति संवेदनशील स्थान चिन्हित किये थे। इनमें से 09 योजनाओं को सरकार की मंजूरी मिली थी धन आवंटन और कार्य में देरी के चलते मंजूर परियोजनाए भी अभी अधूरी है। जिला अधिकारी भी मानते है कि कार्य शुरु होने में देरी हुई जिसके चलते तटबन्धो के निर्माण और नदी के रुट डायवर्जन का कार्य अभी तक पूरा नही हो सका है। शासन से मंजूरी न मिलने पर कई परियोजनाएं जिला प्रशासन अपने दम पर कराने का दावा कर रहा है, लेकिन जो कार्य हुये है उनकी गुणवत्ता पर भी प्रश्नचिन्ह लग रहे हैं। खरझार पहाड़ी नाले पर चार करोड़ की लागत से बना तटबन्ध इसका जीता जागता उदाहरण है, जो पहली ही बारिश में दगा दे गया। ऐसी स्थिति में आने वाली बाढ से निपट पाना जिला प्रशासन और सरकार के लिये एक चुनौती है।