एसीएमओ व जिला प्रतिरक्षण अधिकारी डा. अरूण कुमार ने बताया कि लिवर ट्रांसप्लांट के लिए आने वाले अधिकतर मरीजों में बीमारी का कारण हेपेटाइटिस सी है। बीमारी के शुरूआत में मरीज में कोई लक्षण दिखाई नहीं देते इसीलिए संक्रमण का पता नहीं चलता है। लोग जांच भी नहीं कराते जिसके कारण संक्रमण छिपा रह जाता है। गर्भवती महिलाओं की प्रसव पूर्व जांच (गर्भावस्था के दौरान होने वाली जांच), विदेश जाने के लिए वीजा लेते समय, ऑपरेशन कराने या फिर रक्तदान के समय हेपेटाइटिस बी व सी की जांच की जाती है। इस संक्रमण के हाईरिस्क ग्रुप में संक्रमित मां से बच्चे, चिकित्सा पेशे से जुड़े लोग, ऐसे मरीज जिन्हें रक्त चढ़ाया गया हो, सिरिंज से ड्रग लेने वाले आते हैं। इसलिए संक्रमण का पता लगाने के लिए जांच सबसे जरूरी है।
जिला कार्यक्रम प्रबंधक शिवेन्द्र मणि ने बताया कि हेपेटाईटिस का संक्रमण दूषित रक्त के संर्पक में आने और असुरक्षित यौन संबंध से भी फैलता है। संक्रमित व्यक्ति के साथ रहने से सामान्य व्यक्ति में किसी भी तरह से संक्रमण की आशंका नहीं रहती है। हेपेटाइटिस बी वायरस से बचाव का एक मात्र उपाय टीकाकरण है। अब ऐसे टीके आ गए है, जिससे हेपेटाइटिस बी बचाव संभव है। जागरूकता के अभाव में 30 प्रतिशत से भी कम लोगों को इस बीमारी के बारे में जानकारी है।
क्या है हेपेटाइटिस
हेपेटाइटिस लिवर से संबंधित बीमारी है। जब हेपेटाइटिस वायरस का संक्रमण हो जाता है तो लिवर से अधिक मात्रा में एंजाइम्स निकलने लगते हैं। शरीर के विषैले तत्व भी बाहर नहीं निकलते, जिससे शरीर को नुकसान पहुंचता है। हेपेटाइटिस बी और सी रक्त के संक्रमण से होने वाली बीमारी है। इस वायरस के संक्रमण का शिकार बच्चे बहुत तेजी से हो रहे हैं, दोनों रोगों में संक्रमण के शुरुआती लक्षण नहीं दिखते हैं। यदि गर्भवती मां को हेपेटाइटिस बी हो तो पैदा होने वाले बच्चे को भी संक्रमण होने की आशंका होती है।
हेपेटाईटिस बी का इलाज संभव
जिन लोगों को हेपेटाइटिस सी के संक्रमण के बढ़ने से लिवर सिरोसिस होता है, उन्हें लिवर कैंसर होने का भी अधिक खतरा होता है। लिवर सिरोसिस के लगभग 20 फीसदी रोगियों को बीमारी के अंतिम चरण में कैंसर हो सकता है। सी वायरस शरीर में ही पलता रहता है तो मरीज की स्थिति गंभीर हो जाती है। खून की जांच से इस रोग का पता लगाया जा सकता है। भारत में सी वायरस जीनो टाइप थ्री का इलाज 24 हफ्ते में और जीनो टाइप वन का इलाज 48 हफ्ते में हो जाता है। इस बीमारी के 80 फीसदी रोगियों को ठीक किया जा सकता है। हेपेटाइटिस बी वैक्सीन वायरस के प्रभाव को रोकने में और इस संक्रमण के होने की संभावना को कम करती है। टीकाकरण से इससे बचाव किया जा सकता है। वहीं, एंटी वायरल दवाओं द्वारा हेपेटाइटिस सी का उपचार संभव है, लेकिन इस संक्रमण से बचाव के लिए वैक्सीन उपलब्ध नहीं है।