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बांदा

बुंदेलखंड क्षेत्र में जल संरक्षण में बांदा जिले का अधांव गांव बना मॉडल

उत्तर प्रदेश का बांदा हर साल भीषण गर्मी और पानी की कमी से जूझता है। भारत में जब भी जल संकट की बात होती है तो ‘बांदा’ का नाम जरूर आता है।

बांदाJan 03, 2023 / 04:31 pm

Upendra Singh

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गांवों में लगाया जाता है पानी चौपाल
वर्तमान समय में बांदा जनपद में जल संरक्षण के लिए अनूठे प्रयोग किए जा रहे हैं। जल संचयन के लिए पानी चैपाल यानी पानी चौपाल मोहल्ला स्तर में चौपाल लगाकर जल संरक्षण के लिए लोगों को जागरूक किया जाता है।
पूरे बुंदेलखंड में 350 चौपाल लगाया गया
कैसे छोटे-छोटे प्रयासों से पानी की बरबादी को रोका जा सके। बारिश की पानी को एक जगह जमा किया जा सके। अब तक पूरे बुंदेलखंड में 350 पानी चौपाल लगाया गया। पानी पंचायत का आयोजन ग्राम पंचायत का धर्म होता है। इस पंचायत के माध्यम से ग्राम सभा की पीने का पानी और स्वच्छता समिति को सशक्त करने का कार्य किया जाता है।
तालाबों की होती है सफाई
इसके साथ ही साथ गांव सभा के जल के स्रोत जैसे तालाब, पोखर और कुआं आदि के रखरखाव के लिए लोगों को जागरूक और जल के स्रोतों से जोड़ने का काम किया जाता है। अब तक 115 ग्राम पंचायतों में पानी पंचायत का आयोजन किया जा चुका है। इसके साथ ही साथ नियमित रूप से तालाबों की साफ-सफाई की जाती है।
गाद को तालाब से बाहर निकाला जाता है। अधांव गांव में तीन तालाब सुंदर सागर, झलिया सागर देव सागर का जीर्णोद्धार सामाजिक सहयोग, श्रम साधना के माध्यम से किया गया है। इसके साथ ही साथ ही पूरे बुंदेलखंड क्षेत्र में 75 तालाबों का समाज के सहयोग से श्रम साधना के माध्यम से तालाबों का पुनरुद्धार कराया जा चुका है। वहीं जल संरक्षण का ये कार्य सुनियोजित ढंग से करने के लिए जल सेवकों का गठन भी किया गया है।
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1 हजार बीघे से अधिक खेतों में बनाई मेड़
बांदा जिला के बबेरू ब्लॉक में पड़ने वाले अधांव गांव में ‘खेत का पानी खेत में, गांव का पानी गांव में’ अभियान के तहत जल संरक्षण के लिए नया प्रयोग शुरू किया गया है। गांव में 1000 बीघे से अधिक खेतों में मेड़ बनाई है। मेड़ों के माध्यम से बरसात के पानी को संग्रहित किया जा रहा है।

इस इलाके के खेतों में बरसात का पानी रुकता नहीं था। बारिश में जो पानी बरसाता भी था, वो बहता हुआ नालों के माध्यम से यमुना में चला जाता था। जिस कारण से बारिश का पानी गांव में रुक नहीं पाता था बारिश के बाद गांव में पानी की समस्या होने लगती थी और गांव के लोग धान भी नहीं बो पाते थे।
इस समस्या के समाधान के लिए सबसे पहले मैंने रामबाबू तिवारी 7 हजार रुपये खर्च करके अपने खेत में मेड़ बनवाई। इस कार्य के साथ गांव के लोगों को जोड़ने की सोची। गांव के युवाओं के साथ बातचीत की और योजना को लागू करने के लिए रणनीति बनाई। गांव के अन्य लोगों को इस बारे में बताया तो वें सहमत हो गए। सहमत होना लाजमी भी था, क्योंकि भीषण जल संकट के बीच गांव में फसल उत्पादन समस्या बन गया था। इसके बाद अन्य लोगों/किसानों ने भी अपने खेतों में मेड़ बनाई। इस अभियान को लोग बिना किसी समस्या के स्वीकार करते गए और अब तक 1000 बीघा से ज्यादा खेतों में मेड़ बनाई जा चुकी है।
खेतों में बढ़ी नमी
योजना के फायदा यह है कि खेत में बरसात का पानी भर जाने के बाद से खेत में नमी बढ़ी है, बारिश का पानी गांव में रुका है, भूजल का रिचार्ज बढ़ा है, लोग धान की खेती करने लगें है। बरसात के दौरान खेतों को अब पहले की अपेक्षा ज्यादा पानी मिल रहा है। यानी एक व्यवस्थित तरीके से खेती हो रही है।
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर चुके हैं सराहना
फसल उत्पादन बढ़ा है। किसानों में समृद्धि और संपन्नता आई है। जिससे इस क्षेत्र में पलायन कम हुआ है। इस अभियान की सराहना भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने मन के बाद के कार्यक्रम में 27 जून 2021 को सराहना भी कर चुके हैं। गांव में पानी की उपलब्धता या जल संरक्षण के प्रति लोगों को जागरुक करने के लिए विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जा रहा है।
तालाब महोत्सव का आयोजन बुंदेलखंड क्षेत्र में विलुप्त हो रहे तालाब और तालाब संस्कृति को बहाल करने के उद्देश्य से किया जाता है। बुंदेलखंड क्षेत्र में प्रथम तालाब महोत्सव की शुरुआत बांदा जनपद के अधांव के बजरंगबली आश्रम के तालाब से कार्तिक पूर्णिमा 2016 से शुरुआत की गई है।
अब यह तालाब महोत्सव बुंदेलखंड के अन्य गांव में भी मनाया जाने लगा है। तालाब महोत्सव के माध्यम से तालाब के किनारे के समाज को तालाब के प्रति जोड़ने का कार्य किया जाता है। तालाब महोत्सव में तालाब का पूजन विधि-विधान एवं मंत्रोच्चार के साथ किया जाता है, जिससे ग्रामीणों का धार्मिक रूप से तालाबों से जुड़ाव हो सके। गांव की कन्याओं का पूजन भी तालाब किनारे किया जाता है।
तालाब किनारे मानव श्रृंखला बनाकर तालाब संरक्षण संवर्धन के लिए शपथ भी दिलाई जाती है। तालाब के किनारे स्थानीय लोक परंपराओं से संबंधित गतिविधियां भी होती हैं। जैसे- दंगल, दिवारी नृत्य, लोक संगीत आदि के माध्यम से स्थानीय जनमानस को तालाब संरक्षण संवर्धन का संदेश भी दिया जाता है।
जल संचयन के किए गए छोटे-छोटे प्रयासों के माध्यम से इस क्षेत्र में काफी सकारात्मक बदलाव आया है, जो इस प्रकार से है।
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भूजल का स्तर बढ़ा है
बुंदेलखंड क्षेत्र पर जिन गांव में जल संरक्षण का कार्य हुआ है उस गांव का भूजल का स्तर बढ़ा है

ईंधन की खपत कम हुई है
गांव में ट्यूबेल समरसेबल के माध्यम से सिंचाई की जाती थी अब वहां कुछ तालाबों के माध्यम से भी सिंचाई की जाती है जिससे तालाब से पानी निकालने में ईंधन की खपत कम हुई है
कार्बन उत्सर्जन की मात्रा कम हुई है
ईंधन की खपत कम होने से कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन भी कम हुआ है जिससे प्रकृति में जलवायु परिवर्तन का प्रभाव कम हुआ है।

फसल का उत्पादन बढ़ा है
बुंदेलखंड सूखाग्रस्त क्षेत्र माना जाता है जिन गांवों में जल संरक्षण का कार्य हुआ वहां तालाब पानी से लबालब भरा होने के चलते वहां की ट्यूबवेल बोरवेल में पानी आसानी के आने के चलते वहां के खेतों मे सिंचाई सरलता से हो जाती रही है जिससे खेती में फसल का उत्पादन बढ़ा है।
किसानों में समृद्धि आई है
बुंदेलखंड के किसान सूखा ग्रस्त होने की वजह से व्यापारिक फसलों का उत्पादन नहीं कर पाते थे लेकिन पानी की समस्या दूर होने से वहां व्यापारिक फसलों जैसे धान गेहू आदि का भी उत्पादन किए हैं जिससे वहां के किसानों में समृद्धि आई है। अकाल का प्रभाव कम हुआ है। बुंदेलखंड क्षेत्र में तालाबों के माध्यम से भूजल का स्तर बढ़ना गांव में नमी आना खेती में समृद्धि आना आदि के चलते वहां अकाल जैसी समस्याओं से सामना कम करना पड़ा।
पीने के पानी की समस्या कम हुई है
बुंदेलखंड क्षेत्र में एक कहावत हुआ करती थी पानी के संकट को दर्शाते हुए
धौरा तेरा पानी गजब करी जाए
गगरी न फूटे खसम मर जाए
क्षेत्र में भावना नाम की तालाब से महिलाएं पानी लाती थी उस तालाब के एक मटके पानी की कीमत अपने पति से अधिक मानती थी तभी इस कहावत को पानी लाते वक्त वहां की महिलाएं कहा करती थी इतनी विकट समस्या के सामना यहां की स्थानीय नागरिक करते हैं पेयजल की समस्या जल संरक्षण से दूर हुई है।
पलायन कम हुआ है
बुंदेलखंड क्षेत्र में पलायन की समस्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। यहां खेती किसानी में लाभ ना होने की वजह से कोई रोजगार का स्थाई साधन ना होने की वजह से यहां के युवा बड़ी संख्या में अपने मां-बाप बुजुर्ग बच्चों को छोड़कर चले जाते थे। जल संरक्षण समर्थन का कार्य होने के बाद गांव में किसानों ने व्यापारिक फसलों के उत्पादन किया। कुछ बागवानी किए। किसानों से संबंधित रोजगार का सृजन किया, जिससे यहां पलायन कुछ हद तक कम हुआ है।
जल की प्राकृतिक स्रोतों के प्रति लोगों का सम्मान बढ़ा है
बुंदेलखंड क्षेत्र में जल साक्षरता अभियान के बाद गांव-गांव तालाब महोत्सव का आयोजन किया गया। इस तालाब महोत्सव से गांव में लोगों की तालाबों के प्रति संवेदना बड़ी है। कल आप से संबंधित जो संस्कृति वापस आई है। जल के प्राकृतिक स्रोत कुआ तालाब आदि के संरक्षण संवर्धन में युवाओं एवं स्थानीय निवासियों में जागरूकता बढ़ी है।
जल के प्रति जागरूकता बढ़ना
जल साक्षरता पानी चौपाल पानी पंचायत के माध्यम से जल संरक्षण संवर्धन हेतु लोगों में जागरूकता बढ़ी है यहां की स्थानीय लोगों में छोटे-छोटे बदलावों से जल की बर्बादी को रोकने का कार्य किया है एवं चल हमारे लिए कितने महत्वपूर्ण हैं उसके प्रति लोगों का सम्मान बढ़ा है
जल संरक्षण संवर्धन के लिए एक टीम के रूप में काम करना
तालाब संरक्षण संवर्धन में सामूहिक श्रमदान के माध्यम से सामाजिक सहभागिता एवं सामाजिक सहयोग की भावना बढ़ी है। गांव के किसानों द्वारा एवं गांव के नागरिकों द्वारा जब अपने गांव की तालाब का प्रचार करने के लिए तालाब पूजन के बाद फावड़ा श्रमदान साधना एवं आपकी सहयोग से गांव के तालाब का पुनरुद्धार करते हैं, जिससे गांव के लोगों में आपस में सामाजिक समरसता का माहौल बनता है एवं सहयोग की भावना बढ़ी है।
गोविंद बल्लभ पंत सामाजिक विज्ञान संस्थान इलाहाबाद विश्वविद्यालय के शोध छात्र रामबाबू तिवारी ने लिखकर भेजा है। उन्होंने पानी की समस्या को दूर करने का प्रयास किया है। अगर आप भी अपने क्षेत्र की समसस्याओं पर काम किया है या उत्तर प्रदेश की समस्‍याओं पर लिखना चाहते हैं। तो हमें वाट्सएप नंबर 9899441204 और इमेल आईडी- upendra.singh.patrika@gmail.com पर भेजा सकते हैं। पत्रिका आपकी आवाज बनेगी।

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