पीएसी ने किया इंकार, जेल प्रशासन तैयार गायों की सुरक्षा के लिए रजामंदी के आधार पर गौशालाएं खोलने का प्रस्ताव गौ-सेवा आयोग ने पहले पीएसी से आग्रह किया था। सांप्रदायिक ठप्पा लगने की आशंका में पीएसी मुख्यालय ने प्रस्ताव को खारिज कर दिया। इसके बाद आयोग ने राज्य पुलिस और जेल प्रशासन के पास प्रस्ताव भेजा। यूपी पुलिस ने फिलहाल जवाब नहीं दिया है, लेकिन जेल प्रशासन ने प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया है। तय किया गया है कि पहले चरण में राज्य की 12 जेलों में गौशालाएं स्थापित होंगी। योजना सफल रही तो अन्य जेलों में विस्तार किया जाएगा।
बंदियों के जिम्मे होगी गायों की जिम्मेदारी जेल प्रशासन के मुताबिक, गौशालाओं की जिम्मेदारी बंदियों को संभालनी होगी। चारे-भूसे के साथ-साथ साफ-सफाई और दूध निकालने का काम कैदी ही करेंगे। कैदियों को गौ-सेवा के लिए आकर्षित करने के लिए तय किया गया है कि गौशालाओं का दूध तथा अन्य पंच-गव्य को बाजार में बेचा जाएगा। इसके जरिए हुई कमाई पर सिर्फ गौ-सेवा करने वाले बंदियों का हक होगा। कमाई की रकम को गौशालाओं में तैनात बंदियों के खाते में सीधे स्थानांतरित कर दिया जाएगा। इसके साथ-साथ गौशाला में सेवा करने के एवज में मेहनताना अलग से मिलेगा।
सडक़ दुर्घटनाओं में कमी की कवायद राज्य के कारागार राज्यमंत्री जयप्रकाश सिंह जैकी ने बताया कि इस योजना का पहला असर तो कैदियों के आचरण पर पड़ेगा। गायों की सेवा से उनके मन में आध्यात्मिक भाव पैदा होंगे। इसके अतिरिक्त आवारा गायों के कारण होने वाली सडक़ दुर्घटनाओं में कमी आएगी। गौरतलब है कि एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2017 में आवारा जानवरों के कारण यूपी में सवा लाख हादसे हुए, जिसमे 19819 लोगों की मौत हुई, जबकि 36682 लोग गंभीर रूप से जख्मी हुए थे। जेल मंत्री कहते हैं कि इस योजना के तहत सडक़ से पकड़ी गई गायों को वापस नहीं किया जाएगा। ऐसे में दूध निकालने के बाद गायों को छुट्टा छोडऩे की प्रथा पर भी लगाम कसेगी।
मेरठ से शुरुआत, बुंदेलखंड पर ध्यान जेलों में गौशालाओं की शुरुआत मेरठ के चौधरी चरण सिंह कारागार से होगी। इसके अलावा बुंदेलखंड के झांसी, बांदा, ललितपुर और जालौन जिला जेल में भी पहले चरण में गौशालाएं स्थापित करने का फैसला हुआ है। गौरतलब है कि फिलहाल आगरा , मुरादाबाद, लखनऊ और इलाहाबाद जेल में पहले से गौशालाएं स्थापित हैं।